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Saturday, September 15, 2007

सुनील सिंह की 'प्रेरणा'


अगस्त माह की 'यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता' में तीन कविताओं को ११वाँ स्थान मिला था। इस स्थान की २ कवितओं को हम पहले ही प्रकाशित कर चुके है। आज हम लेकर आये हैं सुनील कुमार सिंह की कविता 'प्रेरणा' को।

कविता- प्रेरणा

कवयिता- सुनील कुमार सिंह ("तेरा दीवाना"), बेंगलूर


आज तन्हा कोने में खुद को टूटा हुआ पाया है
जिस खिड़की पर पड़ी निगाहें बस अंधेरा छाया है
ऐ काले-सून गगन पर चमकते हुए चाँद सितारों
ऐ चंचल नदिया के शांत उजड़े हुए किनारों
मेरे मन मष्तिस्क हृदय को कुछ सम्वेदना दो
आज मुझे तुम प्रेरणा दो, आज मुझे तुम प्रेरणा दो

वो बादल है जिसको धरती की अरदास पता है
सूखे में तपन से टूटन का अहसास पता है
ऐ पर्वत के अन्तरमन की पत्थर चट्टानो
ऐ काली स्याही से रचे हुए सात आसमानो
मेरे दिल सेहरा को प्रेम-अमृत का कोई झरना दो
आज मुझे तुम प्रेरणा दो, आज मुझे तुम प्रेरणा दो

मन गुलशन उजड़ गया, दिल आँगन हुआ है वीरां
अरे बिन रंगत और खुशबू जीना भी क्या है जीना
ऐ आज़ाद वादियों में महकने वाले पागल फूलों
ऐ धरती के स्वर्ग पर बेमोल बिकने वाली दुकूलों
मेरे श्वेत कोरे प्राण प्रष्ठ पर रंगों का बिखरना दो
आज मुझे तुम प्रेरणा दो, आज मुझे तुम प्रेरणा दो

बहुत हूँ टूटा बहुत हूँ बिखरा, बहुत सहता आया हूँ
बिन मंज़िल इतनी दूर तक बस यूँही बहता आया हूँ
ऐ बीच जीवन-सागर में, उठते हुए मन के तूफानों
ऐ काल-भँवर का साथ निभाते क्रोध-लहर के ऊफानों
चाहे मुझको अब तट तक पहुँचाओ या यहीं मरना दो
आज मुझे तुम प्रेरणा दो, आज मुझे तुम प्रेरणा दो


रिज़ल्ट-कार्ड
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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७॰२५, ८॰९६०२२७
औसत अंक- ८॰१०५११३
स्थान- पंद्रहवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-७, ८॰१०५११३(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰५५२५५६
स्थान- दसवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-शब्दों का संयोजन (?) एकदम प्रतिकूल है। एक सुंदर गुलदस्ते के लिए जहाँ-कहीं के फूलों को भर देना ही प्रयाप्त नहीं होता है। उनका सुंदर संयोजन ही असल बात होती है। कविता को शाब्दिक विलास का साधनमात्र समझना गलत ही होगा। बहुत अभ्यास शेष हैं।
अंक- ४
स्थान- ग्यारहवाँ
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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत हूँ टूटा बहुत हूँ बिखरा, बहुत सहता आया हूँ
बिन मंज़िल इतनी दूर तक बस यूँही बहता आया हूँ

बहुत अच्छा लगा सुनील जी आपकी रचना पढ़ के

शोभा का कहना है कि -

सुनील जी
अच्छी कविता लिखी है । जीवन में अनेक बार ऐसी निराशा जागृत हो जाती है । कविता उस समय
उस आवेग की निवृति का स्रोत बन जाती है । आपके जीवन में सदा आशावादिता रहे यही कामना है ।
शुभकामनाओं सहित ।

RAVI KANT का कहना है कि -

सुनील जी,
अच्छा लिखा है।

मन गुलशन उजड़ गया, दिल आँगन हुआ है वीरां
अरे बिन रंगत और खुशबू जीना भी क्या है जीना

ये पसंद आया।

विपिन चौहान "मन" का कहना है कि -

कविता के लिये कवि ने जो प्रयास किये हैं वे सराहनीय हैं
कविता अच्छी है पर शब्द चयन की द्रष्टि से लगभग हर स्थान पर बहुत मेहनत करने की आवश्यक्ता है
तुकात्मक कविता की रचना करते समय बहुत ध्यान देना पडता है
एक जैसे शब्दों का चुनाव करना पडता है
जहाँ कहीं भी कविता का तुकान्त हुआ है वहाँ कविता की टूटन दिखाई देती है
प्रयास कीजिये सम्भावनायें आप में बहुत हैं मित्र
बहुत बहुत आभार

Unknown का कहना है कि -

जी आप सभी के प्यार के लिए धन्यवाद |
एक बात कहना चाहुँगा कि मैं दरसल 'प्रेम' अथवा 'श्रंगार' पर ही कविता लिखता हूँ | ये कविता एक अपवाद थी | मेरी आगामी कविताएँ आप ज़रूर पढेंगें ऐसी आशा के साथ एक बार फिर आप सभी के प्यार के लिए धन्यवाद देता हूँ |

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

बहुत हूँ टूटा बहुत हूँ बिखरा, बहुत सहता आया हूँ
बिन मंज़िल इतनी दूर तक बस यूँही बहता आया हूँ
ऐ बीच जीवन-सागर में, उठते हुए मन के तूफानों
ऐ काल-भँवर का साथ निभाते क्रोध-लहर के ऊफानों
चाहे मुझको अब तट तक पहुँचाओ या यहीं मरना दो
आज मुझे तुम प्रेरणा दो, आज मुझे तुम प्रेरणा दो

आपमें अपार संभावनायें हैं। अच्छी रचना।

*** राजीव रंजन प्रसाद

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

सुनील जी,

आपकी यह पंक्तिया 'बहुत हूँ टूटा बहुत हूँ बिखरा, बहुत सहता आया हूँ' डॉ॰ कुमार विश्वास की कोई दीवाना कहता है की 'बहुत टूटा बहुत बिखरा, थपेड़े सह नहीं पाया' की विस्तार लगती हैं। फ़िर भी कहूँगा प्रयास सराहनीय है।

आगे के लिए शुभकामनाएँ।

गीता पंडित का कहना है कि -

सुनील जी
कविता अच्छी है ।

"आज तन्हा कोने में खुद को टूटा हुआ पाया है
जिस खिड़की पर पड़ी निगाहें बस अंधेरा छाया |"

"वो बादल है जिसको धरती की अरदास पता है
सूखे में तपन से टूटन का अहसास पता "

आपमें बहुत संभावनायें हैं।

आभार

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