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Friday, December 28, 2007

ऋतुराज रोज़ अख़बार पढ़ते हैं


यद्यपि हिन्द-युग्म नवम्बर माह की यूनिकवि प्रतियोगिता से २०वें स्थान तक की कविताओं को प्रकाशित कर चुका है, लेकिन स्थाई पाठकों को याद होगा कि हमने तीसरे स्थान के कवि ऋतुराज की कविता नहीं प्रकाशित की थी। हमें ऋतुराज का परिचय प्राप्त नहीं हुआ था। परिणामों की उद्‌घोषणा के १० दिनों के बाद इनका परिचय हमें मिला भी तो ऐसे फॉरमैट में जिसे किसी भी एप्लिकेशन से पढ़ पाना असम्भव था। हमने दुबारा परिचय भेजने के लिए ऋतुराज से निवेदन किया। कल हमें इनका परिचय मिल ही गया। और हमें खुशी है कि इनकी कविता सभी जानकारियों के साथ दिसम्बर माह की समाप्ति से पहले प्रकाशित कर रहे हैं।

कवि ऋतुराज बिहार के सीतामढ़ी जिले के एक छोटे से गाँव बैरगनियाँ के रहने वाले हैं। कविताओं से इनकी दोस्ती १९९४ से ही है। विभिन्न पत्रिकाओं में इनकी कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्होंने कई कवि सम्मेलनों में भाग लिया है। हाल ही छपी 'योग से आरोग्य तक' पुस्तक का सम्पादन इन्होंने किया है। इनके द्वारा संपादित कुछ अन्य किताबें भी प्रकाशित होने वाली हैं। फिलहाल ये फ़िल्म-लेखन की पढ़ाई कर रहे हैं।

संपर्क-
एफ़-८९, बी-११,
कटवारिया सराय
नई दिल्ली-११००१६
मो॰- ९९९९९६५६४१
ईमेल- poetrituraj@gmail.com

पुरस्कृत कविता- मैं रोज़ अख़बार पढ़ता हूँ

मैं आजकल रोज अखबार पढ़ता हूँ
अखबार में आए लेख दो-चार पढ़ता हूँ
चोरी, कत्ल, बेईमानी, शेयर बाज़ार का गिरना
हर रोज होता है कुछ बलात्कार पढ़ता हूँ
मैं आजकल रोज अखबार पढ़ता हूँ

देश में हो रहा तेज़ विकास पढ़ता हूँ
उठ रहा भरोसा, कम होता विश्वास पढ़ता हूँ
सड़ रहा सरकारी गोदामों में अनाज
भूख से बिलखते बच्चे हज़ार पढ़ता हूँ
मैं आजकल रोज अखबार पढ़ता हूँ

दहेज लोभ में बहुएं फिर जलाई गईं
फिर कश्मीर में आंतकियों की मार पढ़ता हूँ
वोट की खातिर दिया जा रहा आरक्षण
नौकरशाहों, नेताओं की भ्रष्टाचार पढ़ता हूँ
मैं आजकल रोज अखबार पढ़ता हूँ

गुजरात के शहरों मे होता सांप्रदायिक हिंसा
कश्मीर में निर्दोषों की चीत्कार पढ़ता हूँ
न रहेगी भूखमरी, न ग़रीबी, न अन्याय ही
नेताओं की ऐसी भाषण दमदार पढ़ता हू¡
मैं आजकल रोज अखबार पढ़ता हूँ

अर्थव्यवस्था में तेज़ी, किसानों द्वारा आत्महत्या
छाई हर ओर ग्लोबलाइजे़शन की बहार पढ़ता हूँ
ईरान के एक बम से दुनिया पड़ जाएगी खतरे में
अमेरिका में ऐसे बमों का भंडार पढ़ता हूँ
मैं आजकल रोज अखबार पढ़ता हूँ

नैतिकता, सही, ग़लत कुछ नहीं है दुनिया में
हर ओर बेईमानों की भरमार पढ़ता हूँ
मैं आजकल रोज अखबार पढ़ता हूँ
मैं आजकल रोज अखबार पढ़ता हूँ

जजों की दृष्टि-


प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰४, ७
औसत अंक- ६॰७
स्थान- चौथा


द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰१५, ६॰७५, ५॰४, ६॰७ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰७५
स्थान- नौवाँ


तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-कविता अपने वर्तमान का सजग बयान प्रस्तुत करती है।
मौलिकता: ४/३ कथ्य: ३/२॰५ शिल्प: ३/२॰५
कुल- ८
स्थान- दूसरा


अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता में खबरों के माध्यम से पाठकों को राष्ट्रीय समस्याओं से जोडने और व्यवस्था पर आघात करने का अच्छा प्रयास है। कवि आजकल ही क्यों अखबार पढ़ने लगा? क्या पहले अखबार नहीं पढ़ता था?.....कवि को "आज-कल" और "रोज" से समसामयिकता का जो रिश्ता जोडना था वह स्थापित नहीं हुआ..संपूर्णता में एक अच्छी रचना।
कला पक्ष: ६॰५/१०
भाव पक्ष: ७/१०
कुल योग: १३॰५/२०


पुरस्कार- प्रो॰ अरविन्द चतुर्वेदी की काव्य-पुस्तक 'नक़ाबों के शहर में' की स्वहस्ताक्षरित प्रति

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

विजयशंकर चतुर्वेदी का कहना है कि -

kavita kee ek laain bhee nazar naheen aayen. jinhone puraskaar diya; unkee akl par taras khaane ke alaavaa kiyaa hee kyaa jaa sakataa hai?

Nikhil का कहना है कि -

विजयजी,
ऐसा भी नहीं है की कविता की एक भी पंक्ति दिखे बगैर इसे कविता प्रतियोगिता में जगह मिली...आप पुरस्कार देने वालों की अक्ल पर तरस मत खाएं, हो सके तो उचित मार्गदर्शन दें....तरस खाने वालों की तादाद देश में बढ़ रही है और ये बहुत बड़ी बीमारी है...तरस खाने के अलावा बहुत कुछ किया जा सकता है....एक बार कोशिश तो कीजिये.... मेरा आपसे कोई परिचय नही है, मगर इतनी गुजारिश है की युवाओं के इस प्रयास को सराह नही सकते तो कम से कम सही दिशा तो दें...अब मुझे आप पर तरस आ रहा है...

ऋतुराज भाई...
समाज की नब्ज पकड़ने की अच्छी कोशिश है...मगर कविता में व्याकरण-दोष भी है....चौथा पारा फ़िर से लिखे जाने की जरूरत है....अन्य पंक्तियों में भी मात्रा दोष है...कवि ऋतुराज जी, कहाँ गायब थे आप इतने दिनों से.....आप तृतीय विजेता हैं और ऐसे नदारद हैं....आपको पुरस्कृत होना रास नही आया क्या.....
शुभकामनायें,
निखिल

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

अखबार के जरिये
संसार दिखाने वाले
सृजन की शक्ति से
पुरस्कार पाने वाले
मान्यवर ऋतुराज
बडे दिनो बाद
दिखे हो आज
कहाँ थे भाई
बहुत बहुत बधाई

Anonymous का कहना है कि -

are mere kalam ke sher kahan kho gaye the?itne dinon se akhbar padhne ki bechaini me gujare.khair, tritiy sthan pane ke liye hamari taraf se dher saari shubhkamnayein.
apne akhbaar ko thoda aur paina kariye fir dekhie shayad vijay ji ko bhi bolne ka mauka na mile.
bahut tagadi prastuti
alok singh "sahil"

Alpana Verma का कहना है कि -

रितुराज जी पुरुस्कार के लिए बधाई.
आप की कविता आज की स्थिति का दर्पण है.आप जो अखबार पढ़ते हैं वोही सभी पढ़ते हैं लेकिन उसको महसूस आप ने बखूबी किया है.
मैं एक आम पाठक की तरह कहूँ तो -यह कविता ,कवि सम्मेलन में सुनायी जाए तो खूब तालियाँ मिलेंगी-क्यूंकि विषय और कविता काफ़ी प्रभावशाली है.
सही नब्ज पडी है आपने सुनने वालों की.
अच्छी रचना।

शोभा का कहना है कि -

रितुराज जी
अप सही कह रहे हैं. आजकल अखबार मैं यही होता है. काश कुछ ऐसी खबरें होती जिनको पढ़ कर आम आदमी मैं विश्वास जगता.

Harihar का कहना है कि -

बधाई ऋतुराजजी इसी तरह अखबार पढ़ते रहिये ।
सुनाते रहिये । कुछ जायका हमें भी मिलता रहे।

ritu raj का कहना है कि -

ऋतू राज आपने इस प्रतियोगिता में तीसरा स्थान जरूर प्राप्त किया है मगर आप हमारी कवियों की श्रीखला में प्रथम स्थान प्राप्त किया है. और आपके इस सराहनीय कार्य के लिए हम भी सिर्फ़ तीन ही शब्द कहना चाहेंगे ..........
क्या बात है...

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

ऋतुराज, पहले ही प्रयास में टॉप ३ में आ गये। अब तो आपसे बहुत उम्मीदें हैं।

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

shabbash rituraaj !
tumharee kavita ek baar phir saabit kartee hai ki kavi ki vaani sadaiv desh aur kaal ke saapeksh hoti hai. aisi rachna par meri dua hai ki,

" ho haansil tujhe itna urooj duniya mein,
ki aasmaan bhi teree reefton par naaz kare !!"

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