फटाफट (25 नई पोस्ट):

Tuesday, October 28, 2008

ग़ज़ल की कक्षाएँ हम दुबारा शुरू कर रहे हैं


सभी पाठकों को दीपावली की बधाइयाँ। आज के दिन हिन्द-युग्म परिवार भी आइके लिए एक नायाब उपहार लेकर आया है। हिन्द-युग्म के बहुत से पाठक ग़ज़ल-लिखना सीखना चाहते हैं। पिछले वर्ष ग़ज़ल कैसे लिखे 'यूनि ग़ज़ल प्रशिक्षण' स्तम्भ के अंतर्गत पंकज सुबीर द्वारा शुरू किया गया था। किन्हीं कारणों से यह बीच में रुक गया था। आज हम यह सूचना लेकर आये हैं कि अगले मंगलवार से ग़ज़ल की कक्षाएँ स्थगन से आगे बढ़ेंगी। हर मंगलवार और हर शुक्रवार को पंकज सुबीर प्रशिक्षुओं का मार्गदर्शन करेंगे।

वे पाठक जो यूनिग़ज़लप्रशिक्षण में सम्मिलित होना चाहते हैं वो अब तक की ग़जल-व्याकरण की पाठों का अध्ययन कर लें। और जिस पाठ को लेकर जो शंका उभरे रविवार २ नवम्बर २००८ तक वहीं कमेंट में डाल दें। मंगलवार ४ नवम्बर २००८ को गुरूजी अभी तक की सभी शंकाओं का निवारण करेंगे और शुक्रवार से अगली कक्षा की शुरूआत होगी।




प्रस्तावना

ग़ज़ल की तकनीकी शब्दावली-१

ग़ज़ल की तकनीकी शब्दावली-२

काफ़िया

मतले का कानून

पाठ-६ ('ई' का काफिया)

पाठ-७ ('ऊ' का काफिया)

प्रश्नोत्तर खंड-१

पाठ-८ (काफिये के बारें और जानें)

प्रश्नोत्तर खंड-२

पाठ क्रमांक -9 काफिये को लेकर कुछ और बातें-1

प्रश्नोत्तर खंड-3

पाठ क्रमांक -10 गुरुजी की डाँट

प्रश्नोत्तर खंड-४- क्यों डाँटते हैं गुरुजी

पाठ क्रमांक -11 काफिये को लेकर कुछ और बातें करते-2

प्रश्‍नोत्‍तर खंड -5 पहला होमवर्क जमा करने हेतु

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

25 कविताप्रेमियों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

ये गजल प्रेमियो के लिए नायाब तोहफा है

सुमित भारद्वाज

Unknown का कहना है कि -

और बाकी लोगो को भी गज़ल की तरफ खीचेगा
दीवाली मे नई रंगत आ गयी इस शुभ समाचार के लिए हिन्दयुग्म टीम को धन्यवाद और सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

Anonymous का कहना है कि -

yah bahut khushi ki bat hai,main ise diwali ka tohfa manta hun.
ALOK SINGH "SAHIL"

Sajeev का कहना है कि -

shubh samachar

पंकज सुबीर का कहना है कि -

हिंद युग्‍म के सभी परिजनों को दीपावली की मंगल कामनाएं । स्‍नेह और प्रेम की डोर ऐसी होती है जो तो भगवान को भी खींच लाती है फिर मैं तो एक साधारण सा मानव हूं । शैलेष जी और सजीव जी जैसे मित्रों का स्‍नेह है जो कि मुझे वापस खींच लाया है । सच कहूं तो हिंद युग्‍म पर जो मान मिला वो अभिभूत करने वाला है । साहित्‍य को लेकर जो चिंता मेरे मन में है वहीं सब के मन में है किन्‍तु केवल चिंता करने से कुछ नहीं होने वाला हम सब को मिलकर संयुक्‍त प्रयास करने होंगें । आने वाले सप्‍ताह से हम एक ऐसा ही प्रयास पुन: प्रारंभ करने जा रहे हैं । दीपावली के दिन उद्घोषणा करके शैलेष जी ने बांधने का पक्‍का इंतजाम कर दिया है । संयोग देखिये कि होली पर किसी कारण से कक्षायें बंद हो गईं थीं और दीपावली पर पुन प्रारंभ होने की घोषणा हो रही है । मुझे याद पड़ता है कि होली के हामेवर्क के साथ ही कक्षायें स्‍थगित हो गईं थीं और अब होली का रुका काम दीपावली पर प्रारंभ हो रहा है । आप सबको पुन: शुभकामनायें । कल सजीव जी की पार्टी में......, चलिये छोडि़ये राज को राज ही रहने दीजिये । जै राम जी की
पंकज सुबीर

Unknown का कहना है कि -

गुरू जी,
मुझे रदीफ चुनने मे दिक्कत आ रही है
मुझे ये लगता है कि मै जो रदीफ रख रहा हूँ वो पहले ही तो किसी ने नही रख रखा
और बिना रदीफ के गजल मे कुछ कमी सी लगती है
कृपया मेरी समस्या का समाधान कीजीये

सुमित भारद्वाज

Divya Narmada का कहना है कि -

ग़ज़ल-प्रशिक्षण है मधुर दीवाली उपहार.
शब्द-सिपाही मिल करें, सादर शत आभार.

ग़ज़ल गीतिका मुक्तिका, या तेवरी हो नाम.
सजे रदीफों-काफिया, बनकर बन्दनवार.

दिल का दिल से मेल हो, नीर-क्षीर की भांति.
हम जैसे पाठक सकें, रचनाकर्म सुधार.

बहरे सुन पाते नहीं, हैं बहरों की पीर.
बे-वजनी गज़लें कहें, छापें बिना सुधार.

शेर-शेर में बात हो, बात-बात में शेर.
ऊला-सानी दो लिखें मिसरे बरखुरदार

शेर किसी का ले कहें उसी वजन के शेर
मुश्किल है, तज्मीन'पर, कर पाना अधिकार.

बैत अकेला शेर है, है इस्लाह सुधार.
मतला-मक्ता है 'सलिल', अगला-पिछला द्वार.
-आचार्य संजीव 'सलिल'
असंभव संभावनाओं का समय है
हो रहे बदलाव या आयी प्रलय है?

आचरण के अश्व पर वल्गा नियम की
कसी हो तो आदमी होता अभय है

लोकतंत्री वादियों में लोभतंत्री
उठ रहे तूफान जहरीली मलय है

प्रार्थना हो, वंदना हो, अर्चना हो
साधना में कामना का क्यों विलय है?

आम जन की अपेक्षाओं, दर्द॑ दुख से
दूर है संसद यही तो पराजय है

फसल सपनों की उगाओ "सलिल" मिलकर
गतागत का आज करना समन्वय है

* * * * *

प्रिय बंधु!
वंदे मातरम.
गजल पर आपके सब पाठ देखे हैं. कोशिश काबिले तारीफ है. किसी विधा को जाने बिना उस में लिखना गलती और छपने के लिये भेजना गंभीर गलती है.जिसके लिए रचनाकार के साथ सम्पादक भी दोषी हैं. भाषा के व्याकरण और छंद शास्त्र को ठीक से जाने बिना लिखने-छपने से पाठक की रूचि ख़त्म होती जा रही है.
एक सवाल है- किसी रचना के हर मिसरे में एक से काफिया-रदीफ़ हो तो उसे ग़ज़ल कहेंगे या नहीं?
अपने जो सबक दिया है उस सिलसिले में मैंने भी कोशिश की है.. कैसी है? आप जो कमियां बताएँगे उन्हें आगे सुधार सकूंगा.

१. होली

रंगों का त्यौहार है होली
पिचकारी की धार है होली

नेह नर्मदा बहे निरंतर
अमल विमल जलधार है होली

नहीं पराया कोई सगे सब
अपनापन है प्यार है होली.

आसों पर रंग लगा बसंती
साँसों का सिंगार है होली.

होली हो ली अब क्या होगी
मंहगाई की मार है होली.

बहुत किया इंकार यार ने
दिलवर का स्वीकार है होली

'सलिल' न दिल दहके पलाश सा
अमलतास कचनार है होली.

२. पिचकारी

तज बंदूकें लो पिचकारी
तभी लगेगी दुनिया प्यारी

पुण्य हवन का वह पाएगा
जो सुलगायेगा अग्यारी.

महाजनी के नहीं रहे दिन
व्यापारी करता मक्कारी.

संसद में जो भाषण देते
बाहर वे करते बटमारी

लाल गुलाल गाल पर मल दें
'सलिल' हँसे कश्मीरी क्यारी/


३. रंग


बदरंगी दुनिया है रंग से दे रंग
खूब हुई आगे मत होने दे जंग

अंतर में अंतर ही शेष न रहे
नेह देख दुनिया सब रह जाए दंग

पस्ती को भूल आज मस्ती में झूम
भोले भंडारी ने पी हो ज्यों भंग

कोशिश के छैला पर मंजिल लैला
हुई फ़िदा मचल रही हो जैसे गंग

'सलिल' के गले से मिल आज तू गले
क्या मालूम कल किसके कौन रहे संग?

४. फागुन

टेर रहा देर से फागुन चल मीत
महुआ बौराया पा चंपा की प्रीत

बाँहों ने बाँहों से पहने जब हार
जीत तभी हार बनी हार बनी जीत

टूटा दिल जुड़ता ही नहीं क्या करें?
खेल रहे दिल से ख़ुद दिलवर कह रीत

भावी की आज करो साथ मिल सम्हाल
व्यर्थ याद क्यों करो जो हुआ अतीत

लय रस गति ताल छंद जानते नहीं
लेकिन कवि लिख रहे नित्य नए गीत
*****

ritwik का कहना है कि -

Hii all shukriyaa sabse pehli intii jaankarii ke liye lekiN iss meN bahar ke baare meN kahi koii jaankaarii nahiiN hai kripyaa vo bhi uplabdh kar deN to ye aur achaa ho jaayegaa.
Ritwik Raman("Badnaam")

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आपका अभिनंदन। मुझे भी सीखने का बड़ा मन है, फिर शायद मैं भी अपना रचनाकर्म आरम्भ कर सकूँ।

गौतम राजऋषि का कहना है कि -

ये तो मजेदार खबर है....मजा आ गया.गुरू जी को हार्दिक बधाईयाँ और हिंदी-युग्म वालों को समस्त शुभकामनायें.इंतजार रहेगा हर कक्षा का

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

यह एक शुभ संदेश है |
बधाई |


अवनीश तिवारी

अनुपम अग्रवाल का कहना है कि -

बहुत अच्छी सूचना है
मेरा नाम भी प्रशिक्षुओं में सम्मिलित कर लेने का अनुरोध है

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

गुरू जी.
आपका हिन्दयुग्म पर आगमन हर्ष की बात है।
मुझे भी अपनी कक्षा में शामिल करें...

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी का कहना है कि -

आदरणीय पंकज जी,

मैं आपकी कक्षा का एकदम नया विद्यार्थी हूँ। पिछली कक्षाओं के लिंक से शुरू के चार-पाँच पाठ पढ़ने के बाद मुझे ‘यूरेका’ की अनुभूति हुई है। मैंने पहले भी कविता में पक्की तुकबन्दी करने की कोशिश की है। आपने जो ‘काफ़िया’ और ‘रदीफ़’ का नियम बताया वह तो मुझे अपने भीतर से यूँ ही निकलता जान पड़ा। बिना ये तकनीकी बातें जाने ही मैंने तुकबन्दी के ऐसे नियमों का पालन करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति अपने भीतर पायी है। ये आत्मश्लाघा नहीं बल्कि सच्ची अनुभूति से बता रहा हूँ। हाँ बहर की बात थोड़ी कठिन लगती है। आज अभी-अभी फुरसतिया जी के ब्लॉग पर एक गजलनुमा रचना पढ़कर मैने ये चार लाइनें वहाँ टिप्पणी के लिए जोड़ डाली। आप देखकर बताइये मैने अबतक कितना सीखा है:

अनूप जी का मतला-
मुश्किलों में मुस्कराना सीखिये,
हर फ़टे में टांग अड़ाना सीखिये।


मेरे जोड़े हुए शेर-
बहुत कागज कुण्डली में रंग दिया।
अब ग़जल को आजमाना सीखिए॥

हैं ग़जलगो ब्लॉग में बिखरे हुए।
अब इन्हें पहचान जाना सीखिए॥

काफिया जो तंग हो कम वज्न भी।
तो बहर को भी भुलाना सीखिए॥

मौका-ए-फुरसत अगर मिल जाय तो।
ग़जल की कक्षा में जाना सीखिए॥

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी का कहना है कि -

जब नीचे लिखी पंक्तियों को अनूप जी ने एक टिप्पणी के रूप में पढ़कर ग़जल करार दिया तो मैं चकित हो गया। आप इसे देखकर बताएं - क्या यह वाक़ई ग़जल है?

ले झाँक गि़रेबाँ ऐ कातिल, रमजान भी जाने वाला है।
बापू शास्त्री का दिवस मना पड़ चुकी गले में माला है॥

मज़हब को क्यूँ बदनाम करे,खेले क्यूँ खूनी खेल अरे।
आँगन में मस्जिद एक ओर,तो दूजी ओर शिवाला है॥

क्यों हाथ कटार लिया तूने,क्यों कर तेरे हाथ में भाला है?
कहाँ पाक-कुरान को छोड़ दिया,कहाँ तेरी वो जाप की माला है?

जब आज नमाज अता करना,या गंगाजी से जल भरना।
तो ऊपर देख लिया करना,बस एक वही रखवाला है॥
October 2, 2008 2:17 PM

इन्दु पुरी का कहना है कि -

wooooow main fir apne thikaane pr pahunch gai. ghazal likhne ke bare me jananaa chahti thi aur 'Google' ne mujhe yahaan laa diya. aur.....main bahut khush hun.
yahaan se jaane ke baad mera mn kahin nhi lga. usi tarah jaise koi apna shahar chhod aaye. sb sath ho pr....ghr ki yaaden uss shahar ko zahan se jaane nhi deta aur n uss makaan ko......jio bhai. article pdhkr mja aa gayaa

Anonymous का कहना है कि -

गज़ल और कविता प्रेमियों का नए मंच शब्दनगरी www.shabdanagari.in पर भी स्वागत है । आप अपनी रचने भी प्रकाशित कर सकते है ।

Unknown का कहना है कि -

los angeles clippers jerseys
michael kors outlet
michael kors handbags
carolina jerseys
oklahoma city thunder
reebok shoes
new balance outlet
tiffany and co
vikings jerseys
under armour outlet

raybanoutlet001 का कहना है कि -

philadelphia eagles jerseys
jaguars jersey
nike trainers
coach
michael kors handbags sale
miami heat
jacksonville jaguars jersey
cheap jordan shoes
miami heat jersey
michael kors outlet

Vipin का कहना है कि -

Sir, or cheptar kaha hai

Anju Agarwal का कहना है कि -

Great job.bahut hi badhia shikshan hai aapka.gazal likhne ke bare me sare confusion door ho rhe hai. Thanks. Badhai.

Anju Agarwal का कहना है कि -

Great job.bahut hi badhia shikshan hai aapka.gazal likhne ke bare me sare confusion door ho rhe hai. Thanks. Badhai.

Unknown का कहना है कि -

zzzzz2018.7.22
kate spade outlet online
uggs outlet
huaraches
coach outlet
chrome hearts
moncler uk
christian louboutin shoes
nfl jerseys
nike shoes for women
coach outlet

राजेश कुमार 'अगेय' का कहना है कि -

"आज हमने जिंदगी को बे-मतलब से देखा "
आज हमने जिंदगी को बे-मतलब से देखा
कही हंसते तो ,कही रोते हुए देखा ,
खिलती सुबह की ज़वा बाहों को ,
ढलती शाम की जर्जर यादो में देखा ।
आज हमने ....................... से देखा
दिख जाते है पुतले भी ,कपड़ो में सजे हुए ,
इंसान को , चिथड़ो में लिपटे हुए देखा
बदल देते पर्दे , शर्त ए शान में मुऩ्ईन ,
किसी को कफ़न वास्ते भी तरसते देखा
आज हमने ....................... से देखा
मिली न सकी जम़ी भी दफ़न के लिय
और किसी को ताज ए दफ़न होते देखा
नसीब नहीं चार कंधे भी जनाजे के लिए ,
और कुत्तो को भी जमीन ए खा़क होते देखा ।
आज हमने ....................... से देखा
पुजवाते है लोग जो अपने ही आप को
महफ़िलो में उनको शर्मसार होते देखा
कितने ही मुखोटे इस दुनिया के 'अगेय'
नक़ाबो के पीछे शैतानो को देखा
आज हमने ....................... से देखा

राजेश कुमार 'अगेय '

राजेश कुमार 'अगेय' का कहना है कि -

कुछ शब्द .....दिल से

जिन्हें रखते है आँखों में वो बरसते इन निगाहों में
ख़ुद अपने आप उलझे है , जमाने के सवालों में
थाम कर हाथ चले थे जो, वो रुखसते -मंजिल हो लिए
हम आज भी थमे बैठे ,उन मंजिल की राहों में
बात अपनी भी अधूरी है, बात उनकी भी आधी है
घिरे बैठे खुद भी तो, अपने दिल के सवालों में
जमानत हो नही सकती, बशर्ते तहखानो से
कैद खुद ही हो लिए, अपने दिल के बयानों में
डर मौत से नही हमको, डर जिंदगी से लगता है
छोड़ कर इस जमी को, उड़ते है उची उड़ानों में
गिरे है उस जमीं पर हम, उड़े जहा से "अगेय "
शायद हम ना समझे है, मोसम उन फिज़ाओ में

राजेश कुमार 'अगेय '

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)