फटाफट (25 नई पोस्ट):

Thursday, June 04, 2015

गति-मति


क्यूँ बांधते हो
अपने को.…
अपनों को।
बंधन के तीन  कारण
भाव, स्वभाव और अभाव
और दो  विकल्प है ,
मन और  जिस्म।
मन की गति अद्भुत है.…
जब अपना न बन्ध  सका ,
तो पराये  पर जोर कैसा ?
बंधना - बांधना छोड़ो---दृष्टा बनो ....
क्या कहा ?
बंधोगे जिस्म को ....
अरे उसकी गति तो
मन से भी द्रुत है
फ़ना हो जायेगा
और पता भी नहीं चलेगा।



Wednesday, February 11, 2015

आओ अपनी-अपनी क़िस्मत बदलते हैं...


आओ अपनी-अपनी क़िस्मत बदलते हैं..


अपना गुज़रा हुआ कल अभी ज़्यादा पीछे नहीं गया है

फिर उसी सिफ़र से शुरू करते हैं

नाम-रंग-जाति-धर्म हर कुछ

जिन-जिन का वास्ता है क़िस्मत के साथ

उन सबको बदलते हैं

आओ अपनी-अपनी क़िस्मत बदलते हैं...

 
मैं कुछ भी नहीं सोचूंगा... तुम सोचना

मैं कुछ भी नहीं बोलूंगा.... तुम बोलना

मैं किसी से नहीं लडूंगा... तुम लड़ना

मैं कुछ नहीं चाहूंगा... तुम चाहना

तुम सपने देखना... तुम ही उन्हें पूरा करना

हां तुम्हारी शर्तों पर ही ये खेल खेलते हैं

आओ अपनी-अपनी क़िस्मत बदलते हैं...

 
तुम मेरी ज़िन्दगी बस एक बार जी लो

मैं तुम्हारी हर ज़िन्दगी बग़ैर शिक़ायत किए जी लूंगा

चलो तुम्हारी मनचाही मुराद पूरी करते हैं

आओ अपनी-अपनी क़िस्मत बदलते हैं...

 
चलो एक और वादा करता हूं

मैं नहीं चिढ़ाउंगा तुम्हें हर हार पर

जैसे तुम और बाक़ी लोग चिढ़ाया करते थे

मैं नहीं जलील होने दूंगा तुम्हें सबके सामने

और हां आईने में शक़्ल देखने से भी नहीं रोकूंगा

 
क़बूल कर लो कि अब ये मेरी भी ख़्वाहिश है

आओ एक-दूसरे की ज़िन्दगी जीते हैं

आओ अपनी-अपनी क़िस्मत बदलते हैं...