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Monday, October 08, 2007

57 साल के यूनिकवि और 25 साल के यूनिपाठक (परिणाम-09)


हिन्द-युग्म प्रत्येक माह की पहली से पंद्रहवीं तारीख तक यूनिकवि प्रतियोगिता एवम् पहली से आखिरी तारीख तक यूनिपाठक प्रतियोगिता का आयोजन करता है। अब तक यही परम्परा रही थी कि हम परिणाम को अगले माह के प्रथम सोमवार को प्रकाशित करते थे। मतलब सितम्बर माह की यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के परिणाम १ अक्टूबर को प्रकाशित होने चाहिए थे। चूँकि १ ही तरीख को हम वर्तमान महीने की प्रतियोगिता के आयोजन की उद्‌घोषणा करते हैं, और निर्णय करने, पेंटिंगें बनाने के लिए १५ दिन का समय थोड़ा कम है, इसलिए हमने सोचा थोड़ी देरी हो, लेकिन काम संतोषजनक हो।

सितम्बर माह की प्रतियोगिता में कुल ४२ कवियों ने भाग लिया। ४ कवि और भी थे, मगर उनकी कविताएँ अन्यत्र प्रकाशित थीं, अतः प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं की जा सकीं।

निर्णय चार चरणों में हुआ।

पहले चरण में ५ जज थे, जिन्होंने ४२ कविताओं का भविष्य तय किया।

इन ५ जजों द्वारा दिये गये अंकों के आधार पर २५ कविताएँ चुनकर दूसरे दौर में भेजी गयीं, जहाँ ३ जजों ने इन कविताओं पर अपनी निर्णयदृष्टि डाली।

१५ कविताएँ अगले दौर का हिस्सा बन पाईं। यह चरण हमेशा ही जज के सामने असमंजस लाता है। अंतिम आठ कविताएँ चुनना श्रेष्ठ १५ कविताओं में से एक मुश्किल काम है। आखिरकार ३ दिनों तक उनपर विचार करते-करते जज ने अंतिम आठ कविताओं को अंतिम जज के समक्ष रखा।

अंतिम जज ने नीरज गोस्वामी की ग़ज़ल 'बहुत गाये हमने गीत' को प्रथम स्थान प्रदान किया। यानी नीरज गोस्वामी हमारे यूनिकवि हुए। ५७ वर्षीय नीरज ने यह सिद्ध कर दिया कि कविताओं में अनुभव का पुट हो तो उन्हें उम्दा होने से कोई नहीं रोक सकता।

यूनिकवि- नीरज गोस्वामी

नाम: नीरज गोस्वामी
जन्म: 14 अगस्त 1950 जम्मू
शिक्षा : इंजिनियरिंग स्नातक
संप्रति : लगभग 30 वर्षों का कार्यानुभव, वर्तमान में भूषण स्टील मुम्बई में असिसटैंट वाइस प्रेसिडेंट की पोस्ट पर कार्यरत
रुचियाँ : बचपन से ही साहित्य पठन में रुचि, लिखना हाल ही में आरम्भ किया है। ग़ज़लें लगभग सभी जालघरों में प्रकाशित। अनेक नाटकों में काम किया और पुरुस्कार जीते।
विदेश यात्राएँ : अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, कोरिया, सिंगापुर, आस्टीरिया,टर्की, ईटली, मलेशिया, कनाडा आदि
स्थाई पता : बी 44 तिलक नगर, जयपुर ,राजस्थान
ईमेल : ngoswamy@bhushansteel.com

पुरस्कृत कविता- बहुत गाये हमने गीत

कहाँ मरजी से अपनी ही कहानी हम बनाते हैं
जो चलना चाहते सीधा बहुत से मोड़ आते हैं
उधर से तुम इधर से कुछ कदम हम भी बढ़ायें
यूँही चलने से सच है फासले कम होते जाते हैं
बहुत गाये हैं हमने गीत लोंगों के लिये यारों
अभी ऐसा करें कुछ अपनी खातिर गुनगुनाते हैं
तड़पते ही रहे सारी उमर हम इस भरोसे में
वो कहके ये गये जख्मों पे मरहम हम लगाते हैं
ये बहता खून सबसे कह रहा देखो ओ दीवानों
मुहब्बत की ज़ुबां वालों के सर पे संग आते हैं
ना जाने कौन सी दुनिया में बसते लोग हैं ऐसे
जो दूजे की खुशी में झूम कर के गीत गाते हैं
किया महसूस ना हो ग़र तो कोइ जान ना पाये
मजा कितना है रूठा जब कोइ बच्चा मनाते हैं
मेरी ग़ज़लों को पढ़कर दोस्तों ने ये कहा नीरज
किया हमने जो तेरे साथ सबको क्यूं बताते हैं

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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६, ८, ६, ८॰१५, ६॰६
औसत अंक- ६॰९५
स्थान- नौवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७॰५, ७॰८, ५, ६॰९५(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰८१२५
स्थान- बारहवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-हर शेर सुगठित, भावों को सशक्तता से संप्रेषित करने में सक्षम और गहरा है। प्रसंशनीय रचना।
अंक- ७॰७
स्थान- दूसरा
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
अच्छी गज़ल है। कहीं - कहीं मात्रा -दोष रह गया है । मंचीय कविता में इन पर ध्यान नहीं दिया जाता बहुधा। किंतु साहित्यिकता के लिए जिन तत्वों की आवश्यकता होती है, उन में छंद में लिखते समय उसके निर्वाह की कड़ाई भी सम्मिलित है।
अंक- ८॰७५
स्थान- प्रथम
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पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु १०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति-पत्र। चूँकि इन्होंने अक्टूबर माह के अन्य तीन सोमवारों को भी अपनी कविताएँ प्रकाशित करने की सहमति जताई है, अतः प्रति सोमवार रु १०० के हिसाब से रु ३०० का नक़द ईनाम और।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिकवि नीरज गोस्वामी तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगे।
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काफ़ी समय से खराब नैट कनैक्शन की परेशानी झेल रहीं हिन्द-युग्म की चित्रकार स्मिता तिवारी वापस आ गयी हैं और इस बार यूनिकवि की ग़ज़ल पर पेंटिंग बनाई हैं। नीचे संलग्न है-



अब पाठकों की बात करते हैं। यह पहली बार है कि तीन-तीन पाठकों ने बराबर की संख्या में कमेंट किये हैं। रविकांत पाण्डेय, गीता पंडित और पिछली बार की यूनिपाठिका शोभा महेन्द्रू ने सितम्बर माह की ऐसी कोई पोस्ट ही नहीं छोड़ा जिसपर पर इनकी टिप्पणियाँ न हों।

हिन्द-युग्म के तीनों मंचों (कविता, कहानीबाल-साहित्य) पर भी समान संख्या में टिप्पणियाँ हैं।

लेकिन हमने पोस्ट प्रकाशित होने के तुरंत बाद टिप्पणी करने वाले टिप्पणीकार को यूनिपाठक चुना है। ऐसे पाठक हैं रविकांत पाण्डेय। पिछली बार के यूनिकवि २५ वर्ष के हैं और यूनिपाठिका ४९ वर्ष कीं। इस बार के यूनिकवि ५७ वर्ष के और यूनिपाठक २५ वर्ष के हैं। क्या संयोग है! हमें बहुत खुशी है कि युवाओं के साथ-साथ अनुभवी रचनाकारों का मंच बनता जा रहा है 'हिन्द-युग्म।
खैर मिलते हैं-

यूनिपाठक- रविकांत पाण्डेय
फ़रवरी 1982 में बिहार राज्य के सिवान जिले में जन्म। हिन्दी और संस्कृत का ज्ञान विरासत में मिला (साहित्यानुरागी परिवार एवं पिता संस्कृत शिक्षक) । एक ओर बाहर की खोज ने विज्ञान की तरफ़ प्रेरित किया तो दूसरी ओर अंतर की खोज ने कपिल, कणाद, शंकर से लेकर आचार्य रजनीश 'ओशो' तक की यात्राएँ की। साक्षीभाव ने जीवन को शांति दी। प्रारंभिक शिक्षा गाँव में पूरी करने के बाद पटना आ गये, जहाँ से इण्टरमीडीएट एवं बी.एस.सी (ए. एन. कालेज,पटना) उत्तीर्ण किया। जे. एन यु. द्वारा आयोजित अखिल भारतीय प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता के तहत हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में दाखिला (एम. एस. सी, बायोटेक्नोलाजी 2004-2006) | एम. एस. सी के साथ-साथ सी. एस. आई. आर. नेट तथा गेट परीक्षाएँ उत्तीर्ण की और फ़िर शोध कार्य के लिए आई. आई. टी कानपुर में दाखिला लिया जहाँ कैंसर जीनोमिक्स (ड्रोसोफिला माडल) पर काम कर रहे हैं। बाल्यकाल से ही साहित्य में रुचि। हालांकि तब से अब से अब तक पढ़ने और लिख्नने के विषय बदलते रहे। अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। कवि जयशंकर प्रसाद के शब्दों में-
"छोटे से अपने जीवन की क्या बड़ी कथाएँ आज कहूँ
क्या ये अच्छा नहीं कि औरों की सुनता मैं मौन रहूँ"

संपर्क-रविकांत पाण्डेय
द्वारा प्रो॰ प्रदीप सिन्हा
लैब नं॰ ८
बी॰एस॰बी॰ई॰ विभाग
आई आई टी कानपुर
कानपुर- २०८०१६ (यूपी)

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पुरस्कार- रु ३०० का नक़द ईनाम, रु २०० तक की पुस्तकें और प्रशस्ति पत्र।

पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

यूनिपाठक रविकांत पाण्डेय तत्व-मीमांसक (मेटाफ़िजिस्ट) डॉ॰ गरिमा तिवारी से ध्यान (मेडिटेशन) पर किसी भी एक पैकेज़ (लक को छोड़कर) की सम्पूर्ण ऑनलाइन शिक्षा पा सकेंगे।
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दूसरे स्थान के पाठक के रूप में हमने चुना है अत्यधिक सक्रिय पाठक गीता पंडित को। यद्यपि गीता जी ने सभी कवियों की केवल तारीफ ही की जबकि हम आलोचना करने की गुहार लगाते हैं।

हम गीता पंडित जी से अनुरोध करेंगे कि वो अपनी सक्रियता बनाये रखें।

पुरस्कार- डॉ॰ कुमार विश्वास की ओर से उनकी काव्य-पुस्तक 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति एवम् कवि कुलवंत सिंह की ओर से इनकी काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

पूरा सम्मान देते हुए हम तीसरे स्थान पर अगस्त माह की यूनिपाठिका शोभा महेन्द्रू को रखते हैं। इनके जैसे पढ़ने वाले बहुत कम होते हैं। हिन्द-युग्म में स्थाई श्रद्धा रखने वाले पाठकों में इनका स्थान सर्वोपरि है।

चूँकि इन्हें कवि कुलवंत सिंह अपनी काव्य पुस्तक भेज चुके हैं, अतः इस बार हिन्द-युग्म इन्हें कुछ पुस्तकें प्रेषित करेगा।

हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारे हिन्दी अभियान को सफल बनाने में सदैव अपना सहयोग देती रहेंगी।

चौथे स्थान के पाठक की बात करें तो कमलेश, राकेश , दिवाकर मणि, शिवानी सिंह इत्यादि ने भी ठीक-ठीक टिप्पणियाँ की, लेकिन ज्यादातरों ने रोमन-लिपि में टिप्पणियाँ की। हमारी कोशिश रही है कि इंटरनेट पर देवनागरी-प्रयोग करने वालों का प्रोत्साहन कर पायें, इसलिए हमें यह देखना होता है कि किस पाठक ने देवनागरी में टिप्पणियाँ की है। दूसरे मापदंड (पठनियता) पर हम बाद में जाते हैं। शिवानी सिंह अक्टूबर माह की पोस्टों पर देवनागरी में टिप्पणियाँ करना शुरू कर दी हैं। शिवानी सिंह से उम्मीदें बढ़ गई हैं।

एक और नये व ऊर्जावान पाठक हमें मिले हैं 'रणधीर कुमार ('राज')'। हालाँकि इम्होंने सितम्बर माह की १-२ पोस्टों पर ही टिप्पणियाँ की हैं, पर अक्टूबर माह में हम इनसे नियमितता की आशा करते हैं।

कुछ पाठक जैसे उड़न तश्तरी, सिद्धार्थ, विकास मलिक, रीतेश गुप्ता, मुकेश, मनीष कुमार, महेन्द्र मिश्र, संजीत त्रिपाठी, अल्पना वर्मा, नितिन इत्यादि भी यदा-कदा हमें पढ़ते रहते हैं। हम इनसे अनुरोध करेंगे कि हमें निरंतर पढ़ें और मार्गदर्शन देते रहें।

चौथे स्थान पर हमने जिस पाठक को बिठाया है उन्हें आप विद्वान पाठक की संज्ञा दे सकते हैं। दिवाकर मणि की जितनी तारीफ की जाय वो कम है। इनकी टिप्पणियाँ किसी भी अनुभवी पाठक से कम नहीं होती हैं। यद्यपि यह युग्म को बहुत कम ही पढ़ते हैं, लेकिन यदि ये माह भर की कविताओं पर कमेंट करें, और यदि उन्हें संकलित कर लिया जाय तो कविताओं की मासिक समीक्षा तैयार हो जायेगी। आशा है ये हमारा अनुरोध स्वीकारेंगे।

पुरस्कार- कवि कुलवंत सिंह की ओर से इनकी काव्य-पुस्तक 'निकुंज' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

फ़िर से कविताओं की ओर बढ़ते हैं। उससे पहले हम आपको यह बताते चलें कि इस परिणाम में हम चार कविताएँ तो प्रकाशित कर ही रहे हैं, साथ ही साथ चारों पर पेंटिंगें भी प्रकाशित कर रहे हैं। हमें नये चित्रकार के रूप में तपेश महेश्वरी मिले हैं। इन्होंने खुद से चित्र बनाने में रुचि दिखाई है, इसलिए इनसे स्थाई सक्रियता की उम्मीद की जा सकती है।

इस बार की टॉप ४ कविताओं की सबसे ख़ास बात यह है कि चारों के चारों रचनाकार हिन्द-युग्म के लिए नये हैं। वैसे चौथे स्थान के कवि इस प्रतियोगिता में भाग लेते रहे हैं, लेकिन ‍टॉप १० में आने का इनका पहला मौका है।

दूसरे स्थान पर चिराग जैन अपनी कविता 'अंतर' के साथ काबिज़ हैं।

कविता- अंतर

कवयिता- चिराग जैन, नई दिल्ली


अंतस की
पावन भोग-भूमि
और
मानस की
पवित्र भाव-भूमि पर बसी
अधरों की सौम्यता

और
लोचन- युगल में
अनवरत प्रवाहमान
विश्वास की
पारदर्शी भागीरथी

अनायास ही छलक पड़ती है
सागर-मुक्ता सी
दंत-पंक्ति के पार्श्व से प्रस्फुटित
निश्छल खिलखिलाहट के साथ

और इस पल को
शब्दों में बाँधने के
निरर्थक प्रयास करता
कसमसा कर रह जाता है
शब्दकोश
....अप्रासंगिक लगने लगती हैं
सृष्टि की
समस्त लौकिक- पारलौकिक
उपमाएं

.....क्योंकि बहुत अंतर होता है
उपमान
और
उपमेय में.....!

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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७, ८॰५, ७, ७, ८॰१
औसत अंक- ७॰५२
स्थान- प्रथम
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-८॰२५ , ८॰९, ७, ७॰५२(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰९१७५
स्थान- तीसरा
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-उपमान और उपमेय का अंतर तो कवि स्थापित कर ही गये हैं साथ ही साथ भाषा-भाव पर कवि की पकड का सुन्दर नमूना है यह रचना।
अंक- ६॰६
स्थान- सातवाँ
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
अतिरंजित भाषिक प्रयोगों की साध ने कविता की प्रभविष्णुता व सहजता को बाधित किया है। एक सूक्ष्म भाव को पकड़ने व कविता में रुपान्तरित करने का प्रयास अच्छा है।क्षण को पकड़ने की विधि आ जाए तो बस!
अंक- ७॰६६
स्थान- दूसरा
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें। कुमार विश्वास की ओर से 'कोई दीवाना कहता है' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।
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'अंतर' कविता पर चित्रकार तपेश महेश्वरी की पेंटिंग-



कवयित्री डॉ॰ अंजलि सोलंकी कठपालिया अपनी कुछ क्षणिकाओं के साथ तीसरे स्थान पर हैं। इनकी दस क्षणिकाओं की विशेष बात यह रही कि दूसरे व तीसरे दौर में प्रथम स्थान पर रहीं। इससे यह बात सिद्ध होती है कि रचनाकारा में अनंत संभावनाएँ हैं। इस बार न सही अगली बार सही। वैसे भी हिन्द-युग्म टॉप १० कविताओं को एक ही श्रेणी में रखता है।
कविता- कुछ क्षणिकाएँ

कवयिता- डॉ॰ अंजलि सोलंकी कठपालिया, चण्डीगढ़


१) अब लोग दिन भर काम नहीं करते,
अब लोग रात भर प्यार नहीं करते,
मेरे लिए साजिश रच रहे हैं
या खुद ही फँस गए हैं?

२) दोस्ती निभाती भी तो कैसे,
तुम्हें
झूठ बोलने की आदत थी
और मुझे सच सुनने की।

३) तुमने
पूरी उम्र चुप रहकर काट दी,
ये कैसी सज़ा थी
मेरे अपराध की?

४) हवाओं में रमी नफरत
बर्दाश्त नहीं होती,
मैंने ही
साँस लेना छोड़ दिया।

५) आजकल तुम्हारे बनाए हुए सपने,
देखती हूँ अपनी आँखों में,
और मेरे सपने कैद हैं कहीं पर,
मुझे न सही,
उन्हें ही आज़ाद कर दो।

६)तुम्हारी याद में आँसू
आज भी लुढ़के,
इस बार रंग लेकिन
लहू सा क्यों है?

७) आज दिखला ही दें आसमां को
उसकी सीमाएँ,
हम तो
यूँ ही खामोश थे,
उसे गुमान हो गया।

८) आज ये कैसा नशा है
कि उतरता ही नहीं,
कहीं वो
सच तो नहीं कहता
कि हमने अपने ज़िन्दगी पी है।

९) मेरी आवाज़ भी रौंद देते
तो अच्छा था,
अब हर रात
तुम्हें भी जागना होगा
मेरी चीखें सुनने को।

१०) ये रात
ख़त्म न हो तो बेहतर है,
उजालों में लोग
बदसूरत हो जाते हैं।

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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८, ७॰५, ५, ६॰१५, ८॰२
औसत अंक- ६॰९७
स्थान- आठवाँ
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ९, ८॰७, ७॰३, ६॰९७(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰९९२५
स्थान- पहला
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
क्षणिका विधा से कवि ने पूर्ण न्याय किया है। अनावश्यक विस्तार से बचने के साथ ही क्षणिकाओं कें गहरी गहरी बाते कही हैं। प्रत्येक क्षणिका “सार-सार में सारा संसार” है।
अंक- ८
स्थान- पहला
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
अच्छी क्षणिकाएँ है। शब्प्रयोग भी सधा हुआ है। कहीं-कहीं गद्यात्मकता अधिक हावी हो गई है। थोड़ा अभिव्यक्ति को मारक व संश्लिष्ट भी बनाना होगा ।
अंक- ६॰७
स्थान- तीसरा
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें।
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चित्रकार तपेश महेश्वरी को यह नहीं समझ में आ रहा था कि इन क्षणिकाओं पर क्या पेंटिंग बनायें, क्योंकि हर एक क्षणिका में अलग-अलग बात थी। फ़िर भी हमने उनसे कहा कि वो कोशिश करें। कोशिश करके इन क्षणिकाओं पर तपेश जी ने यह पेंटिंग बना भेजी है, अब पाठक ही बतायेंगे कि उन्हें कैसी लगी?



१५ वर्ष से आस्ट्रेलिया में प्रवास कर रहे हरिहर झा की साहित्य-साधना का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो कई बार से प्रतियोगिता में भाग ले रहे हैं, हमें पढ़ रहे हैं और हर बार बेहतर लिखने का प्रयास कर रहे हैं। इस बार इनकी कविता 'हम कवि हैं या मसखरे' ने चौथा स्थान भी बनाया।

कविता- हम कवि है या मसखरे

कवयिता- हरिहर झा, आस्ट्रेलिया


हम कवि हैं या मसखरे
सब को हँसाते
जनता का दिल लुभाते
कविता याने कि कैसी हो
बहती नदी जैसी हो
पहले कविता लिखी छन्द में
बोले संपादक जी - अमां यार
कुछ नया लिखो कि कविता संवरे
क्या ये कलि और भंवरे!
गये कालिदास के जमाने
ये हटाओ नागफनी, लगाओ कैक्टस
मैंने देखा - सिसक रही कविता
दहेज की सताई सुहागिन की तरह
मैं बहुत रोया
शब्दों को अंग्रेजी में धोया
हर पंक्ति मुझसे सवाल पूछती
और बवाल मचाती
अपने चेहरे पर घाव दिखाती
तो चढ़ा दिये उस पर मुखौटे
हमने लाइन पर लाइन बदली
अब कौन नीर भरी
कौन दुख की बदली
ले आये सीधे
रेलवे प्लेटफार्म पर ट्रक का हार्न
वेयर आइ वाज़ बोर्न !
हिन्दी इंगलिश, गलत सलत
सब कुछ चलत
खड़े हो गये मंच पर
अध्यक्ष बोले - करो बातुनी स्त्रियों पर व्यंग्य
मैं रह गया दंग
आवाज आई - बोलो कुछ
पत्नी की राजनीति पर, हनीमून में आपबीती पर
नहीं… नहीं… हिजड़ों की संस्कृति पर
तंग आकर हमने
एक नोन वेजिटेरियन जोक सुना दी
जिसके आर पार
फूहड़पन का व्यापार
हुई तालियों की गड़गड़ाहट
मुझे घोषित किया - श्रेष्ठ कवि.. एक महाकवि
मैं खुश, श्रोता खुश
स्वर्ण-पदक दिया गया
हँसाती चैनल ने सराहा
पर भीतर से मेरा दिल कराहा
सफलता पर मुझे शरम आई
तीर चुभ गया
काश ! ऐसी प्रशंसा व्यंग्य में की होती
तो कविता की मेरे हाथों
दुर्गति न होती ।

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प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८, ८, ६॰५, ७॰७५, ६॰९
औसत अंक- ७॰४३
स्थान- तीसरा
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द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक-७॰५, ८॰७, ५॰६५, ७॰४३ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰३२
स्थान- सातवाँ
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तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-
कविता का दर्द कवि ने महसूस किया है। जिनके कारण कविता की आज यह दुर्दशा है उन्हें, उनकी ही भाषा में लताड़ने का कवि का सुन्दर प्रयास है।
अंक- ६॰८
स्थान- पाँचवाँ
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अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
मंचीय कविता के हाथों होती साहित्य की दुर्गति के लिए जिम्मेदार परिस्थितियों पर लिखी गई रचना है। प्रयास अच्छा है। थोडी और गहराई, गम्भीरता व गरिमा को साधने का यत्न करना होगा। कई शब्द अतिरिक्त हैं।
अंक- ५॰८९
स्थान- चौथा
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पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से रु ३०० तक की पुस्तकें।
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चित्रकार तपेश महेश्वरी बहुत कोशिशों के बावज़ूद भी इनकी इस कविता पर पेंटिंग नहीं बना पाये, अतः हमने अपने दूसरे चित्रकार सिद्धार्थ सारथी जी से अनुरोध किया कि वो इस कविता को देख लें। राजी हो गये और यह बना भेजा-



इस बार इन परिणामों के साथ हम यह भी उद्‌घोषणा कर रहे हैं कि हम टॉप २० कविताओं को हिन्द-युग्म पर प्रकाशित करेंगे।
हमेशा की तरह ५वें से १० वें स्थान के कवियों को एक रचनाकार की काव्य-कृति की एक-एक स्वहस्ताक्षरित प्रति भेंट की जायेगी। इस बार निम्न ६ कवियों को प्रो॰ अरविन्द चतुर्वेदी की काव्य-पुस्तक 'नकाबों के शहर में' भेंट की जायेगी।

मनुज मेहता
विपिन चौहान 'मन'
सुनीता यादव
पंकज पाण्डया
सन्नी चंचलानी
अनुभव गुप्ता

टॉप २० के अन्य १० कवियों के नाम निम्नवत हैं जिनकी कविताएँ अक्टूबर माह में एक-एक करके प्रकाशित होंगी

अभिषेक पटनी
विनय मघु
अनीता कुमार
संतोष कुमार सिंह
सीमा गुप्ता (कविता गुप्ता)
तपेश महेश्वरी
पंकज रामेन्दू मानव
दिनेश गहलोत
शोभा महेन्द्रू
दिव्या श्रीवास्तव

अन्य २२ कवियों के नाम जिनसे हम यह अनुरोध करेंगे कि वो निर्णय को सकारात्मक लें, क्योंकि हमारे कई विजेता कवि प्रतियोगिता में भाग लेकर अंतिम से प्रथम तक पहुँचे हैं। इसे पहली बार मानकर हर बार प्रतियोगिता में भाग लें, और हमारे प्रयासों में चार चाँद लगायें,

डॉ॰ सी॰ जय शंकर बाबू
कमलेश नाहटा 'नीरव'
शिवानी सिंह
प्राण रंजन
हेमज्योत्सना पराशर
सुनील प्रताप सिंह (तेरा दीवाना)
अभिषेक व्रतम
मुनेन्द्र मिश्र (चंदन सुल्तानपुरी)
पंखुड़ी कुमारी
दिव्य प्रकाश दुबे
आनंद गुप्ता
विमल चंद्र पाण्डेय
आशुतोष मासूम
रणधीर कुमार
रविकांत पाण्डेय
कवि कुलवंत सिंह
दीपक गोगिया
पीयूष पाण्डया
प्रतिष्ठा शर्मा
अल्पना वर्मा
शम्भू नाथ
जन्मेजय कुमार

अंत में सभी प्रतिभागियों का बहुत-बहुत धन्यवाद। हम पुनः निवेदन करेंगे कि कृपया आप प्रतियोगिता में फिर से भाग लें । अक्टूबर महीने की प्रतियोगिता में प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथि १५ अक्टूबर २००७ है। पूरा विवरण यहाँ देख लें।

जय हिन्दी।

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22 कविताप्रेमियों का कहना है :

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

विजेतओं एवं प्रतिभागियों को हार्दिक शुभकामनाऐं

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

विजेताओं पढ़े

Sajeev का कहना है कि -

सभी puraskrit kavitaayen अच्छी हैं, मनुज जी का नाम यहा देख कर खुशी हुई बहुत अच्छा लिखते हैं, शिवानी और अनिता जी भी जल्द ही जबर्दस्त वापसी करेंगी, नीरज जी और अन्य सभी विजताओ को बधाई , स्मिता जी की वापसी सुखदाई है, नए और अनुभवी कवियों का युग्म से जुड़ना बेहद अच्छा संकेत है, युग्म को भी इस सफलता के लिए बहुत बहुत बधाई

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

सभी विजेताओं को हार्दिक बधाई। नीरज गोस्वामी जी के रूप में युग्म को अनुभवी हताक्षर प्राप्त हुआ है। स्मिता जी स्वागत है, आपकी व्यग्रता से इस मंच को प्रतीक्षा थी।

*** राजीव रंजन प्रसाद

RAVI KANT का कहना है कि -

सभी विजेताओं को बधाई एवं अन्य प्रतिभागियों को शुभकामनाएँ। नीरज जी, बहुत उम्दा लिखा है आपने-

किया महसूस ना हो ग़र तो कोइ जान ना पाये
मजा कितना है रूठा जब कोइ बच्चा मनाते हैं

सुन्दर भाव!

चिराग जी, सुन्दर भाव और भाषा भी उतनी ही सुन्दर..

और इस पल को
शब्दों में बाँधने के
निरर्थक प्रयास करता
कसमसा कर रह जाता है
शब्दकोश
....अप्रासंगिक लगने लगती हैं
सृष्टि की
समस्त लौकिक- पारलौकिक
उपमाएं
बहुत अच्छा, आगे और भी उम्मीदें रहेंगी।

अँजलि जी, बेहद दमदार क्षणिकाएँ हैंं-

तुम्हारी याद में आँसू
आज भी लुढ़के,
इस बार रंग लेकिन
लहू सा क्यों है?
****
मेरी आवाज़ भी रौंद देते
तो अच्छा था,
अब हर रात
तुम्हें भी जागना होगा
मेरी चीखें सुनने को।
ये बहुत-बहुत पसंद आईं।

हरिहर जी की कविता, कविता के दुर्दशा की ओर इशारा करती है। अपनी बात रखने का आपका ढंग अच्छा लगा।

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

सभी विजेताओं को बधाई।
चिराग जी की कविता में अ-कहा की कसक मीठी लगी।

Sanjeet Tripathi का कहना है कि -

विजेताओं को बधाई व शुभकामनाएं।
नि:संदेह नीरज जी के रुप मे हिन्दयुग्म को एक सशक्त हस्ताक्षर मिला है!

Admin का कहना है कि -

सभी प्रतिभागियों को बधाई। पिछले कुछ समय से हिन्द युग्म की यूनिकवि यूनिपाठक प्रतियोगिता में प्रतियोंगियों की संख्या में वृद्धि होने के साथ साथ युग्म की ऒर से भी प्रतियोगिता में महत्वपू्र्ण सुधार एवं घोषणांए हुई हैं। अब आवश्यकता है तो प्रतियोगिता का कहानी कलश एवं बाल उद्यान तक सक्रीय प्रसार की। सभी विजेताऒं को विशेष बधाई।
साथ ही यदि चित्रकला को कविता के साथ ही लगाया जाए तो यह अधिक आकर्षक प्रतीत होगीं।

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

नीरज जी व रविकांत जी सहित सभी विजेताओं को बधाई।

नीरज जी, पहला शेर ही गजब का लिखा है आपने।
"कहाँ मरजी से अपनी ही कहानी हम बनाते हैं
जो चलना चाहते सीधा बहुत से मोड़ आते हैं"
ज़िन्दगी की इसी सच्चाई में हम सभी उलझे हुए हैं। पूरी गज़ल दमदार है।

जिराग जी उपमान और उपमेय में अंतर आपने बहुत खूबसूरती से समझाया है।
"और इस पल को
शब्दों में बाँधने के
निरर्थक प्रयास करता
कसमसा कर रह जाता है
शब्दकोश
....अप्रासंगिक लगने लगती हैं
सृष्टि की
समस्त लौकिक- पारलौकिक
उपमाएं"
शब्द पाठक को बाँधने में सक्षम हैं।

अंजलि जी, आपकी क्षणिकायें बहुत पसंद आईं। खासतौर पर ये वाली दोः

"हवाओं में रमी नफरत
बर्दाश्त नहीं होती,
मैंने ही
साँस लेना छोड़ दिया।"

"ये रात
ख़त्म न हो तो बेहतर है,
उजालों में लोग
बदसूरत हो जाते हैं।"


हरिहर जी, आपकी कविता बहुत अच्छी तरह से आज की परिस्थिति पर तीखा कटाक्ष करती है।

कवि हो, कविता हो और श्रोता/पाठक न हो तो कोई फायदा नहीं। सभी पाठकों का शुक्रिया।

हिंद युग्म पर प्रतियोगियों की संख्या में न सिर्फ़ इजाफ़ा हो रहा है अपितु स्तर भी काफ़ी ऊँचा हुआ है। बेहतरीन कविताओं को हम तक पहुँचाने का धन्यवाद।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत बहुत बधाई आप सब विजेताओं को :)
नीरज जी आपको यहाँ देख के बहुत खुशी हुई मुझे
स्मिता जी आपका स्वागत है फ़िर से
बहुत शुभकामनाओं के साथ
रंजना

शोभा का कहना है कि -

यूनिपाठक नीरज गोस्वामी जी को हार्दिक बधाई ।
आपकी गज़ल बहुत गाए हमने गीत एक सुन्दर गज़ल है । एक कवि तो होता ही समाज के लिए है हाँ अपनी
पीड़ा को भी वह कविता के माध्यम से ही जन सामान्य तक पहुँचाता है ।
यूनि पाठक रवि कान्त जी को हार्दिक बधाई । मैं अक्सर आपकी टिप्पणी पढ़ती हूँ । बहुत ही सूक्ष्म
दृष्टि से आप समालोचना करते हैं । बधाई ।
चिराग जैन की कविता मुझे अधिक पसन्द आई । खैर यह व्यक्ति गत रूचि है । मुझे संस्कृत निष्ठ हिन्दी
अधिक प्रभावित करती है । चिराग जी की भाषा बहुत ही सुन्दर और प्रभावित करने वाली है । उपमेय और
उपमान में सच में बहुत अन्तर होता है । इतनी सुन्दर रचना के लिए बधाई ।
अंजलि सोलंकी की क्षणिकाएँ प्रभावित करने वाली हैं । कम शब्दों में अधिक कहना बहुत कठिन होता है । बहुत
बहुत बधाई ।
१०) ये रात
ख़त्म न हो तो बेहतर है,
उजालों में लोग
बदसूरत हो जाते हैं।
बहुत ही सुन्दर कटाक्ष है ।
हरिहर झा जी की कविता अति सुन्दर है । प्रश्न सच में विचारणीय है । आज कविता अपनी गरिमा
खो रही है । मैं भी आपकी ही तरह दुखी होती हूँ जब हास्य के नाम पर हास्यास्पद रचनाएँ पढ़ी और
पुरस्कृत की जाती हैं । एक सटीक विषय उठाने के लिए आपके लिए तालियाँ बजाने का मन है ।

गीता पंडित का कहना है कि -

बहुत सुन्दर गज़ल.....
यूनिपाठक नीरज गोस्वामी जी को
बधाई ।

सभी विजेताओं को बधाई,
अन्य प्रतिभागियों को शुभकामनाएँ।

यूनि पाठक रवि कान्त जी को
हार्दिक बधाई ......

शोभा का कहना है कि -

नीरज जी
गलती से यूनिपाठक लिख दिया । क्षमा करें । यूनिकवि नीरज जी को बधाई ।
स्मिता तिवारी जी बहुत सुन्दर चित्र बनाती हैं । आपके पुनःआगमन से से हिन्द-युग्म आशावान हुआ है ।
आपका बहुत-बहुत स्वागत है ।

विपुल का कहना है कि -

हमारे यूनीपाठक और यूनिकवी को बहुत बहुत बधाई !
नीरज जी की ग़ज़ल का एक एक शेर बिल्कुल कसा हुआ है.. पढ़ते हुए मज़ा आ गया शायद शिल्प की इसी उत्कृष्टता के चलते इस रचना को प्रथम पुरस्कार मिला | चिराग़ जी ... बहुत ही प्रभावित किया आपकी कविता ने... पूरी कविता ही अपने आप में अनोखी है...
".....क्योंकि बहुत अंतर होता है
उपमान
और
उपमेय में.....! "
आप ऐसे ही लिखते रहें... |
हिंद युग्म को अगर " क्षणिका विशेषग्य " बोला जाए तो शायद कुछ ग़लत नही होगा | इस मंच के अधिकतर कवि अपनी असाधारण क्षणिकाओं का आसवादन हमे करवा चुके हैं |
इन सारी क्षणिकाओ के पढ़ने के बाद भी अंजली जी की क्षणिकाओं में बड़ा आनंद आया ! क्या ख़ूब लिखा है ...
"तुम्हारी याद में आँसू
आज भी लुढ़के,
इस बार रंग लेकिन
लहू सा क्यों है? "
और...
"आज दिखला ही दें आसमां को
उसकी सीमाएँ,
हम तो
यूँ ही खामोश थे,
उसे गुमान हो गया। "
हरिहर झा जी की कविता भी कम नहीं जो सच को पूर्ण रूप में सामने रखने का सफल प्रयास करती है..|
स्मिता जी और तपेश जी को भी धन्यवाद.. उनकी मेहनत के बिना अधूरा-अधूरा सा लगता ...
रविकांत जी आपको बहुत-बहुत बधाई यूनी पाठक बनने पर .. आप जैसे पाठकों ही प्रेरित करते हैं कवियों को लिखने के लिए ....
गीता जी और शोभा जी आपको भी नमन बस ऐसे ही उत्साह बढ़ती रहिएगा....

शिवानी का कहना है कि -

सबसे पहले मैं सितंबर माह के युनिकवि श्री नीरज गोस्वामी जी को हार्दिक शुभकामनायें देती हूँ ! इसी सीढ़ी के चिराग जैन , डा. अंजली सोलंकी कठपालिया जी और हरिहर झा जी को भी बधाई देना चाहती हूँ ,जिन्होंने हिंद युग्म में अपनी रचनायें सम्मिलित कर अपना योगदान दिया है !
परन्तु कहते हैं कि बिना पाठक के कविता भी सूनी होती है ! श्री रविकांत पाण्डेय जी ,गीता पंडित जी ,शोभा महेन्द्रू जी एवं दिवाकर मणि जी ने हिंद-युग्म कि सभी कविताओं का आस्वादन कर अपनी टिपण्णी दे कर कविताओं को सम्मान दिया !मैं उनको भी बधाई देना चाहती हूँ !
इन सभी के साथ कविताओं में चित्रों द्वारा जान डालने वाली स्मिता तिवारी जी ,तपेश जी एवं सिद्धार्थ सारथी जी भी अत्यन्त बधाई के पात्र हैं !इनके चित्रों ने तो सभी कविताओं में चार चाँद लगा दिए हैं !आशा है भविष्य में सभी अपनी जिम्मेदारींका निर्वाह करते रहेंगे ! धन्यवाद ! .

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मैं चारों कविताओं को एक-दूसरे कम बिलकुल नहीं समझ रहा। इसलिए मेरी नज़र में सभी कवि समतुल्य हैं। सभी को ढेरों बधाई।

साथ ही साथ स्मिता जी का हार्दिक आभार कि एक ग़ज़ल पर भी इतना सुंदर चित्र बनाया। ऐसी कला आपमें ही है।

तपेश जी का हिन्द-युग्म पर स्वागत है। आपके चित्र भी बहुत सुस्पष्ट है। आपने अलग-अलग भावों की क्षणिकाओं को भी अच्छा रंग दिया है। आशा करता हूँ कि अंजलि जी को भी पसंद आया होगा।

सिद्दार्थ जी,
आपके स्कैच तो हमेशा ही मुझे प्रभावित करते हैं। हरिहर जी की जितनी बढ़िया कविता है, उतनी ही बढ़िया आपका स्कैच।

मैं विशेषरूप से शोभा जी, गीता जी, दिवाकर मणि जी और रविकांत पाण्डेय जी का आभार करना चाहूँगा क्योंकि आप ही वो लोग हैं जिनके बताये रस्ते पर चलकर यह कवि महाकवि हो सकते हैं। (जैसा कि शिवानी जी ने कहा)।

सभी प्रतिभागियों का भी शुक्रिया कि उन्होंने प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया।

SanjayS. का कहना है कि -

Bhai logo aaj hee maine ye site surf kee hai aur muje sach main bahut achha laga.

ab main iska niymit pathak ho gaya houn...


Dhanyavaad

पंकज का कहना है कि -

नीरज जी और रविकान्त जी दोनो को बहुत-२ बधाई।
साथ ही वे सारे लोग बधाई के पात्र हैं जो हिन्दी के उत्थान में लगे हुए हैं।
हर बार ऐसी बहुतेरी रचनाएँ आती हैं जो कि जीतने का दम रखती हैं। लेकिन विजेता तो एक को ही बनना होता है, इसलिए मेरा अनुरोध है कि लोग अगली प्रतियोगिता में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें।

नीरज जी,
अगर देखा जाये तो कोई भी नई बात नहीं थी। लेकिन शायद यही उसकी खासियत भी थी।
बिल्कुल सरल तरीके से अपनी बात को आप कह ले गये।
साधुवाद।।
ये शे़र बेहतरीन लगाः
उधर से तुम इधर से कुछ कदम हम भी बढ़ायें
यूँही चलने से सच है फासले कम होते जाते हैं।

रविकान्त जी,
आप की टिप्पणियाँ काफी सटीक होती हैं।
आप लगे रहियेगा। इससे रचनाकारों को स्तर सुधारने में मदद मिलेगी।

Nikhil का कहना है कि -

नमस्कार,
नीरज जीं को यूनिकवि बनने की बधाई.... रविकांत पाण्डेय जीं ko भी...उन्ही जैसे पाठकों की वजह से हम आज इस मुकाम पर हैं....

नीरज जी की कविता ठीक थी, मगर विजयी कविता होने के नाते कहना चाहूंगा कि मुझे शिल्प और भाव बेहद साधारण लगे....हो सकता है कि निर्णायकों को आपका यही साधारण होना बेहद भा गया....

चिराग जीं की कविता मुझे बहुत पसंद आई....
".....क्योंकि बहुत अंतर होता है
उपमान
और
उपमेय में.....! "

वाह......

अंजलि सोलंकी जीं को भी बधाई..kuch khsanikayein behad achchi hain..
"ये रात
ख़त्म न हो तो बेहतर है,
उजालों में लोग
बदसूरत हो जाते हैं।"

"हवाओं में रमी नफरत
बर्दाश्त नहीं होती,
मैंने ही
साँस लेना छोड़ दिया।"

हरिहर झा जीं हमें आस्ट्रेलिया से मिल गए, बधाई...कविता पर स्केच बहुत प्रभावी बना है....सिद्धार्थ वाकई हमारी अनुपम खोज हैं...(स्मिता जी तो हैं ही....)

हिन्दी जिंदाबाद...
निखिल आनंद गिरि

SahityaShilpi का कहना है कि -

सभी विजेताओं को बधाई और अन्य प्रतिभागियों को भी भविष्य के लिये शुभकामनायें!

neeraj1950 का कहना है कि -

किसी भी नए रचनाकार के लिए पहले तो पाठकों का मिलना ही किसी उपलब्धि से कम नहीं होता और अगर पाठक उसकी रचना को स्वीकार करें प्रशंशा करें तो इस से अधिक खुशी की बात लेखक के लिए क्या हो सकती है ? मैं अपने सभी पाठकों का आभारी हूँ जिन्होंने न सिर्फ़ मेरी ग़ज़ल को पढ़ा बल्कि अपनी राय से नवाज़ा भी ! आप के इस स्नेह से मैं अभिभूत हो गया हूँ ! आशा करता हूँ की भविष्य मॆं भी इसी प्रकार उत्साह वर्दन करते रहेंगे.
इस प्रतियोगिता मॆं शामिल समस्त कवि हालांकि मुझसे उमर मॆं छोटे हैं लेकिन साहित्य सृजन मॆं मुझसे कोसों आगे हैं ! मॆं उनके सुखद भविष्य की कामना करता हूँ ! मेरा उनसे ये ही कहना है की शब्द और बिम्ब से आक्रांत किए बिना अपनी बात सीधे साधे शब्दों मॆं कहें ताकी दिल की बात दिल तक सरलता से पहुंचे !

नीरज गोस्वामी

Unknown का कहना है कि -

आदरणीय नीरज जी
प्रिय रविकन्त पाणडेय, चिराग जैन जी, डा० अंजली सोलंकी जी एवं डा० हरिहर झा जी
सर्व प्रथम आप सबके सन्मुख बिलम्ब के
साथ उपसस्थिति हेतु क्षमा याचना।
आप सब की रचनाओं का रसास्वादन
हिन्द युग्म के पाठक ऐसे ही करते रहेंगे
इसी कामना के साथ मैं शैलेष जी
की इस बात से सहमत हूं कि कोई
भी रचना किसी से कम नहीं है। विशेष रूप
से डा० अंजली सोलंकी जी की क्षणिकाएं गज़ब की हैं
बधाई

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