फटाफट (25 नई पोस्ट):

Tuesday, April 03, 2007

ज़ज़ असमंजस में (प्रतियोगिता के परिणाम)


हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता के मार्च अंक के परिणामों की घोषणा करने से पहले सभी सदस्यों को धन्यवाद दे लेना उचित समझूँगा। १ फरवरी २००७ से ३१ मार्च २००७ तक प्रतिदिन औसतन ९५ पाठकों ने हिन्द-युग्म को पढ़ा और यदि बात सिर्फ़ मार्च महीने की की जाय तो यह आँकड़ा १०० को पार करके १०४ तक पहुँच जाता है। जबकि महीने भर में ४० से भी अधिक प्रविष्टियों पर किसी ख़ास दिन को छोड़ दिया जाय तो नारद से हमें ८-१० से अधिक हिट्स नहीं मिलते। मतलब नारद से दैनिक आगंतुकों की संख्या को १० माना जा सकता है, यदि हिन्दी ब्लॉग्स से भी इतना ही मान लिया जाय और १२-१५ हिट्स सदस्य कवियों के भी मान लिये जाय तब भी ७० नये पाठक हमें रोज़ पढ़ रहे हैं। मतलब यह आँकड़े हमारी पूरी टीम के हौसलों को बढ़ाने वाले हैं। निःसंदेह ये फल सदस्य कवियों की मेहनत से ही मिल सके हैं। हर कवि अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश कर रहा है। यद्यपि टिप्पणियों की संख्या फिर भी अधिकतम २० तक ही पहुँचती है। इसका कारण गिरिराज जी के अनुसार अधिकांश लोगों को यह न पता होना कि टिप्पणी कैसे की जाय, है। इसके लिए गिरिराज जी इस विषय पर एक सरल लेख तैयार कर रहे हैं। आशा है इस महीने से टिप्पणियों की संख्या में इज़ाफ़ा होगा।

सबसे बड़ी ख़बर और शुभ सूचना इस प्रतियोगिता के लिए यह थी कि इस बार कुल १३ प्रतिभागियों ने भाग लिया और उसमें से भी एक कवि ने उसके ही कथनानुसार पहली बार कविता लिखी। यूनिकवि का निर्णय चार चरणों में किया गया। तृतीय चरण की निर्णयकर्ता को ६ कविताओं में से तीन कविताओं का चयन करना था। जिसके लिए उन्हें पूरे एक दिन का समय दिया गया था, मगर अगले ही दिन उन्होंने क्षमा माँग ली और कहा कि छः की छः कविताएँ आपस में इतनी सुंदर और बेहतरीन हैं कि तीन छाँटना बहुत मुश्किल। उन्होंने एक और दिन का समय माँगा, उन्हें दिया गया, पर इतना होने पर भी वो तीन कविताओं को छाँटने में सफल नहीं हो सकीं और ४ कविताओं को अंतिम निर्णयकर्ता को भेज दीं। असली परीक्षा तो अंतिम निर्णयकर्ता की ये कविताएँ ले रही थीं। ढाई दिनों में अंतिम निर्णयकर्ता यह नहीं तय कर सके कि कौन है श्रेष्ठ कविता। उन्होंने मुझे फ़ोन भी किया। मैंने कहा कि करना तो है ही। मरता क्या न करता। बमुश्किल अंक प्रणाली द्वारा वरुण स्याल यूनिकवि हुए और उनकी कविता 'मिलन' को सर्वाधिक १७ अंक मिले।

जैसाकि कल की उद्‌घोषणा में हमने कहा था कि अब हमें सृजनगाथा के रूप में पुस्तक-वितरण का प्रायोजक भी मिल गया है। अतः हमने यह तय किया कि यूनिकवि तो वरुण स्याल ही होंगे मगर शेष ३ कविताओं को भी सांत्वना पुरस्कार के रूप में सृजनगाथा की ओर से पुस्तकें भेंट की जायेंगी।
सम्पूर्ण विवरण निम्नवत हैं-

वरुण स्याल (यूनिकविः मार्च अंक)

वरुण स्याल का जन्म दिल्ली नगर में हुआ। ये सदा दिल्ली के वासी रहे हैं। स्कूल के समय से ही कविता पढने एवम् लिखने में इनकी रुचि रही है। वर्तमान में आई आई टी दिल्ली में नागरिक अभियान्त्रिकी शाखा के अंतिम वर्ष के छात्र हैं। कॉलेज में आने के उपरान्त केवल अंग्रेज़ी में ही कविता लिखते रहे, परन्तु कभी भी तृप्ति का अनुभूति नहीं हुई। अब जब हिन्दी में कविता लिखने लगे हैं, तब से सच मानिये एक नया-सा रास्ता दिखाई पड़ा है।

सम्पर्क-
वरुण स्याल
ईसी-१२, कुमायुँ छात्रावास,
आई आई टी दिल्ली, हौज़ खास,
नई दिल्ली-११००१६
ई-मेल- varun.co.in@gmail.com

पुरस्कृत कविता- मिलन

शीत के घुँघरू, ग्रीष्म की झुनझुन,
डाल पे कू-कू पंछी का कलरव,
सुबह का सूरज लाल सा हरदम,
शीत की धूप का शीतल अनुभव।

रात्रि दुलहन की याद में हरपल,
विरह वेदना से अति चंचल,
दिनभर ताप के ताप को सहता,
प्रेमी की भाँति धरा का आँचल।

रात से पहले शाम की खुशबू,
शाम का सपना, पवन है मद्धम,
काली घटा की साड़ी में लिपटी,
रात की कोमल देह की कंपन।

हाथों में चूड़ी, पैरों में पायल,
अति सुसज्जित रात की दुलहन,
पायल की झंकार से गूँजित,
अश्रु से भीगा धरा का आँगन।

धीरे-धीरे इस हवा में बहता,
हवा में बहता, इस धरा पे बहता,
अँधकार का परदा, आगे बढता,
आगे बढता, गिरता रहता।

बाहों में बाहें डाले जब-जब,
करे चुंबन, करे आलिंगन,
रात्रि और इस धरा का मिलना,
अति सुंदर एवम् अति पावन।

समय नहीं एक रेखा पथ भर,
चक्र की भाँति घूमे हरदम,
कल के बाद आज का आना,
रात के बाद ताप का आना,
कठोर पिता सा करे विदाई,
दुलहन का जाना, दिन का आना।

संपूर्ण हुआ यह मिलन सुनहरा,
वाष्प की भाँति गया अँधेरा,
विरह विषाद विदाई के संग-संग,
सूर्य की किरणें लाईं सवेरा।


अंतिम निर्णयकर्ता की टिप्पणी-
यद्यपि कई जगह गीत में रवानगी खटकती है तथापि अनूठे बिम्बों, कवि की भाषा और भावना पर सुन्दर पकड़ इसे उत्कृष्ट रचना बनाती है। भावनाओं को सही शब्दों में किस तरह प्रस्तुत कर सकते हैं उसका अच्छा उदाहरण है यह रचना, उदाहरणार्थ-

“शीत के घुँघरू, ग्रीष्म की झुनझुन,
डाल पे कू-कू पंछी का करलव”

“काली घटा की साड़ी में लिपटी,
रात की कोमल देह की कंपन”

“कल के बाद आज का आना,
रात के बाद ताप का आना,
कठोर पिता सा करे विदाई,
दुलहन का जाना, दिन का आना”

“विरह विषाद विदाई के संग-संग,
सूर्य की किरणें लाईं सवेरा.....”

यद्यपि “धरा का आँचल” बिम्ब से मेरी सहमति नहीं है क्योंकि रात्रि को दुल्हन के रूप में प्रयुक्त कर कवि धरा को प्रेमी कहना चाह रहा है । आँचल स्त्रीद्योतक बिम्बों के साथ ही प्रयुक्त होता तो बेहतर था। तथापि कविता की सबसे अच्छी बात यह है कि यह भावों को ले कर भटकती नहीं है।

मूल्यांकन
कलापक्ष: ८.५/१0
भाव पक्ष: ८.५/१0
योग: १७/२०

पुरस्कार व सम्मान-
वरुण स्याल को 'मिलन' कविता के लिए रु ३००/- का नकद पुरस्कार, रु १००/- तक की पुस्तकें और एक प्रशस्ति-पत्र दिये जा रहे हैं। चूँकि यूनिकवि ने अप्रैल माह की तीन अन्य सोमवारों को भी कविता-पोस्टिंग करने का वचन दिया है, अतः उन्हें प्रति सोमवार रु १००/- के हिसाब से रु ३००/- और नकद इनाम के रूप में दिये जा रहे हैं।

इसके अतिरिक्त पिछले माह के यूनिपाठक अजय यादव की ओर से राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कृति 'उवर्शी' भेंट की जा रही है।


२) दूसरे स्थान पर इंदौर के युवा कवि विपुल शुक्ला की कविता 'नीलगिरि की शाखें' रही। इस कविता को प्रतियोगिता में भेजते समय कवि विपुल शुक्ला ने लिखा था-
"श्रीमान! यदि मैं आपका यूनिकवि बनता हूँ तो हिन्द-युग्म का सबसे कम उम्र का यूनिकवि होऊँगा। मेरी उम्र १८ वर्ष है। आप मेरी कविता पर विचार अवश्य करें"
विचार भी किया गया, परंतु अंतिम निर्णयकर्ता से यदि उन्हें ०.५ अंक और मिल गये होते तो यूनिकवि बन गये होते। हमने भी उनके इस संदेश का प्रतिउत्तर दिया था, उसमें जो लिखा था उसे यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है-
"आप कृपया कभी यह न सोचें कि आपकी कविता की अनदेखी होगी। हम आपकी रचना को चार अनुभवी कवियों के समक्ष रखेंगे। सभी कवियों में से जिसकी रचना श्रेष्ठ होगी, उसे ही यूनिकवि चुना जायेगा। विजयी किसी एक को ही होना है। मान लीजिए कि इस बार आप विजयी नहीं होते हैं तो अगली बार कोशिश कीजिए। आपने वो कहावत सुनी होगी- करत-करत अभ्यास से जड़मति होत सुजान। रसरी आवत-जात है सिल पर पड़त निशान।"

कविता- नीलगिरि की शाखें


वो नीलगिरी की शाखें,
खिड़की के पल्लों से टकराते हुए,
जैसे कोई अपना झाँके.
एक भीनी सी गंध भर जाती है साँसों मे,
और पत्तियाँ मुझे ताकें.

निर्जीव होकर भी सजीव,
एक ममतामयी मिठास देती हैं मुझको,
उन्हें देख लगता है ,
कि मैं अकेला नहीं हूँ अब.

कमरे के पीछे खड़े पेड़,
अब बुज़ुर्ग लगते हैं मेरे,
और कमरे मे गिरी पत्तियाँ
जैसे आशीर्वाद के घेरे.

शाखाओं पर बनते बिगड़ते,
माँ-बाबा के चेहरे.
मेरी खुशियों मे लेते हिलौरे,
जैसे झूमते से.

और दुख मे खड़े शांत चित्त,
गिरा देते हैं अपनी पत्तियाँ
एक दिन मैं नहीं होता,
और कमरे में आती शाखें,
काट दी जाती हैं
मैं जानता हूँ यह सच कि,
दुनिया को दूसरों की मिठास,
नहीं भाती है.

शंखों के साथ ही,
कट जाती है वो डोर भी,
सितारों से,
जिन्हें दादी कहती थी,
कि मेरे माँ-बाबा हैं वे.

और दो गीली रेखाएँ,
चेहरे को बाँटती हुईं
आ गिरती हैं उन पत्तियों पर
जो शाखाओं ने छोड़ी थी कमरे में
सूखे धरातल पर
सूखी पत्तियाँ.

अंतिम निर्णयकर्ता की टिप्पणी-
'नीलगिरी की शाखें' एक उत्कृष्ठ कविता है। भावनाएँ स्वत: कविता को एक श्वास में पढने पर मजबूर करती हैं और ठहर कर सोचने पर भी। कितनी साधारण घटना, कितनी उन्नत सोच!

“वो नीलगिरी की शाखें,
खिड़की के पल्लों से टकराते हुए,
जैसे कोई अपना झाँके.
एक भीनी सी गंध भर जाती है साँसों में,
और पत्तियाँ मुझे ताकें”

”शाखाओं पर बनते बिगड़ते,
माँ-बाबा के चेहरे”

”और दो गीली रेखाएं,
चेहरे को बाँटती हुईं
आ गिरती हैं उन पत्तियों पर
जो शाखाओं ने छोड़ी थी कमरे में. सूखे धरातल पर
सूखी पत्तियाँ”

जो बात कमरे के भीतर झांक रही शाखाओं से मन को गहरे पकड रही थी वही “कमरे के पीछे खड़े पेड़” से भ्रमित होती है। रचना उच्चकोटि की है।

मूल्यांकन
कलापक्ष: ७.५/१०
भाव पक्ष: ९/१०
योग: १६.५/२०

पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से कविताओं की पुस्तकें भेंट की जा रही हैं।

३) तीसरे स्थान की कविता 'विरह एकाकी' के कवि कमलेश नाहता 'नीरव' भी दुर्भाग्यशाली रहे। ये भी मात्र १ अंक से बिछड़ गये। ये कविता को यूनिकोड में टाइप करने में तो असमर्थ रहे, परन्तु अपनी डायरी के पन्नों का स्कैनित रूप दिखाकर हमें धन्य कर दिया। शायद अब वे यूनिकोड में टंकण सीख भी गये हों, जैसा भी होगा, जब वे इस बार प्रतियोगिता के लिए अपनी कविता भेजेंगे तो यह बात स्पष्ट हो जायेगी।

कविता- विरह एकाकी

भर पूर्णिमा चाँद की उन्मद्ता
गदराई , शरमाई
सहमी सी एक मधुलता ।
नदी किनारे कल- कल बहते पानी
में भीगी ;
स्निग्ध सुरभित फूलों को
छूकर झुलसी ।

' पर वोह न आये । '

स्मृति पटल के बदरंग पट पर
ये अकुशल चितेरी
करती रंगों से रैला-रैली ।

बैठी तट , लिए भीगे सिहरते अंग ।
चिर निमिष मॆं करती मंथित
मधुर सारे क्षण ।
प्यासे नयनों में क्यों आँसू बन छलका रुधिर ?
निशब्द अधरों से क्यों आज कहती
बातें बहकी बहकी ?

सूर्य डूबा,
पर धूप सा लिए तन
चुगती, भरती मुक्ता तारों की एक डाली ।
' यह मैं उन्हें दूँगी । '
कहती खुद से क्षण - उन्मद अभिमानी ।

विस्मित यामिनी ; चलत- चलते।
गुजरा नीरद यूँ सिहरते।
तारा- गण करे प्रश्न
आख़िर प्रणय ऐसा क्यों कोमलते ?
सूने नयनों में क्यों साध जलती
अमर लय बन रोते -रोते ?

प्रयत्न प्रतिउत्तर का न सहज न सरल।
अधरों पर फैली स्मित रेखा निस्सीम
देती कतार नेत्रों को ही छल।
लौ फिर भी आशा की प्रबुद्ध सबल
भरती झंझा में संकल्प पल- प्रतिपल ।

मिलन संक्षिप्त फिर विरह एकाकी रत मन ,
किंचित स्मृति भी देती पुलक बन्धन ।
कुसुम बिखरे पथ की जिसने चाह भूली
विशल्य पथ का फिर उसे कैसा आश्वासन।
अखंड तेरा प्रणय , अखंड तेरा प्रण ।

अंतिम निर्णयकर्ता की टिप्पणी-
बहुत सुन्दरता से कवि ने “पर वोह न आये " कह कर विरह को उड़ेल कर रख दिया। कई बिम्ब कविता को उँचाई तक ले जाते हैं, जैसे-

”प्यासे नयनों में क्यों आँसू बन छलका रुधिर ?”

”निशब्द अधरों से क्यों आज कहती बातें बहकी बहकी ?”

”भरती मुक्ता तारों की एक डाली, यह मैं उन्हें दूँगी”

”कुसुम बिखरे पथ की जिसने चाह भूली,
विशल्य पथ का फिर उसे कैसा आश्वासन”

कविता का आरंभ बहुत प्रभावित करता है किंतु पूरी कविता पढते हुए धीरे-धीरे शब्दों में कविता उलझती जाती है और भ्रमित भी करती है।

मूल्यांकन
कलापक्ष:
८.५/१०
भाव पक्ष: ७.५/१०
योग: १६/२०

पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से कविताओं की पुस्तकें भेंट की जा रही हैं।


४) सबसे अधिक तारीफ करनी होगी हमारे पिछले माह के यूनिपाठक अजय यादव की। उन्होंने दो-तीन बार गूगल चैट के दौरान मुझसे कहा कि वह भी कविता लिखना चाहते हैं, उन्हें विषय नहीं मिल रहा है। मैंने कहा कि प्रेम से शुरूआत करना अच्छा रहेगा। उन्होंने कहा कि उसपर कविता करना बहुत मुश्किल है जिसे महसूस न किया हो। मैंने कहा कि भैया, जिस विषय पर आप अच्छा सोच सकें, बेहतर सोच सकें, उसपर लिखिए। और क्या कहने! पहली बार ग़ज़ल लिखी और इस प्रतियोगिता की अंतिम चार कविताओं में जगह बना ली।

कविता- ग़ज़ल

उन्हें ज़िन्दगी की दुआ न दे
जिन्हें मौत ही सुकून है
यहाँ चैन नहीं है इक घड़ी
बस ज़ुनून ही ज़ुनून है

मिट गईं दिलों की वो हसरतें
खो गईं वो बचपने की शरारतें
बुझ गईं दिलों से सबके चाहतें
हर हाथ पे लगा किसी का खून है

मिल बैठते थे देर तक
और दिल की कहते सुनते थे
बदल गये वो दोस्त सब
मैं वो मैं नहीं तू वो तू न है

हमें जिसकी बहार पे नाज़ था
वो चमन भी अब तो नहीं रहा
हरियाली तमाम ख़ाक हुई
गुलों में पहली सी वो बू न है।

क्या लोग थे, क्या दौर था
क्या ज़िन्दगी का तौर था
हर काम में सब साथ थे
अब आदमी में वो खू न है

कभी तो दिन वो आयेंगे
जब 'अजय' को लोग चाहेंगे
जब हम भी कह ये पायेंगे
कि जहाँ में कोई उदू न है।

खू = आदत, उदू/अदू = दुश्मन

अंतिम निर्णयकर्ता की टिप्पणी-
अच्छी ग़ज़ल है, कहीं-कहीं रवानगी खटकती है। प्रत्येक शेर सुन्दर है, अत: किसी एक को उद्धरित नहीं कर रहा हूँ।

मूल्यांकन
कलापक्ष:
७/१०
भाव पक्ष: ७/१०
योग: १४/२०

पुरस्कार- सृजनगाथा की ओर से कविताओं की पुस्तकें भेंट की जा रही हैं।


अब बात करनी होगी पाठकों की। यद्यपि यह हमारे लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि कवि तो लिखकर भेज देता है और पूरे महीने के लिए छुट्टी पा जाता है। मगर पाठक हिन्द-युग्म के अच्छे और बुरे हर प्रकार के दिनों में साथ निभाते हैं। इस बार पुनः पाठकों के बीच मुकाबला बहुत तगड़ा था। अजय यादव की टिप्पणियों को तो पढ़कर मन में यही सवाल उठता है कि वे कविता पढ़ने के लिए इतनी ऊर्जा कहाँ से लाते हैं। मगर इस बार सबसे अधिक ऊर्जा दिखाईं कवयित्री रंजना भाटिया ने। उन्होंने अधिकतम कमेंट ही नहीं किये वरन् कमेंट को भी कई बार कविता रूप में लिखा। पिछली बार भी उन्होंने कुल १९ टिप्पणियाँ की थीं, परंतु अजय भाई को पीछे नहीं कर पायी थीं। मगर इस बार उन्होंने कोई कसर बाकी नहीं रखा। मतलब श्रीमती रंजना भाटिया हमारी यूनिपाठिका हैं।

यूनिपाठिका- श्रीमती रंजना भाटिया

परिचय-

जन्मतिथि-१४ अप्रैल,१९६६
शिक्षा-बी.ए.,बी.एड, पत्रकारिता में डिप्लोमा

जन्म हरियाणा के रोहतक ज़िले के कलनौर गाँव में हुआ। आरम्भिक शिक्षा दिल्ली में और कॉलेज जम्मू से किया। बचपन से ही लिखने में रुचि थी। कई लेख और कविता शुरू में दैनिक जागरण, अमर उजाला और भाटिया प्रकाश [मासिक पत्रिका] आदि में छपे, फिर घर में व्यस्त होने के कारण लिखना सिर्फ़ डायरी तक सीमित रह गया। सैकड़ों कविता लिखी हुई हैं। १२ साल तक स्कूल में अध्यपिका रहीं। लगभग दो वर्षों तक मधुबन पब्लिशर के साथ जुड़ी रहीं जहाँ इन्हें उपन्यास सम्राट प्रेमचंद के उपन्यासों की प्रूफ़-रीडिंग और एडीटिंग का अनुभव प्राप्त हुआ। फ़िलहाल घर में हैं और बच्चों को पढ़ाती हैं। अब कुछ समय से नेट में कई फ़ोरम में लिखती हैं। कविता और हिंदी-साहित्य में विशेष रुचि है। बच्चन ,अमृता प्रीतम और दुष्यंत जी को पढ़ना बहुत पसंद है।

सम्पर्क-
चिट्ठा- कुछ मेरी कलम से
ई-मेल- ranjanabhatia2004@gmail.com

पुरस्कार व सम्मान-

रु ३००/- का नकद पुरस्कार
रु २००/- तक की पुस्तकें
एक प्रशस्ति-पत्र

(पहले यूनिपाठक को प्रशस्ति-पत्र नहीं दिया जाता था। परन्तु रंजना भाटिया ने हमारा ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया, अतः इस माह से हम यूनिपाठकों को भी प्रशस्ति-पत्र देने शुरू कर रहे हैं)


९ अन्य कवियों ने जिन्होंने प्रतियोगिता में भाग लेकर हमारा उत्साहवर्धन किया, हम उनके भी शुक्रगुज़ार हैं। यह आवश्यक नहीं कि हमारा यूनिकवि का निर्णय किसी गुणवत्ता की परिपाटी या मानक हो। चूँकि किसी न किसी को लेना था, इस बार हमने वरुण स्याल को चुना है। आप प्रतियोगिता में पुनः भाग लीजिए। अगला नं॰ आपका होगा, इसमें कोई संशय नहीं है।

1) रंजना भाटिया
2) डॉ॰ गरिमा तिवारी
3) ऋषिकेश खोड़के 'रुह'
4) अमिताभ भूषण
5) सूर्यपाल सिंह चौहान कुँअर
6) पृथ्वीराज कुमार
7) विशाखा
8) विजय दवे
9) सखी सिंह
हम पुनः निवेदन करेंगे कि आप लोग इस प्रतियोगिता में बढ़-चढ़कर हिस्सा लीजिए। हमारे प्रयासों को सफल बनाइए। इस बार की प्रतियोगिता के आयोजन की घोषणा हम कल यहाँ कर चुके हैं। इसे देखें और अवश्य भाग लें।


दोनों विजेताओं, सभी प्रतिभागियों और सभी पाठकों का बहुत-बहुत धन्यवाद।


आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Gaurav Shukla का कहना है कि -

वरुण स्याल जी आपको बहुत बहुत बधाई
कविता बहुत ही सुन्दर है

"कठोर पिता सा करे विदाई,
दुलहन का जाना, दिन का आना।"
बहुत सुन्दर

वास्तव में निर्णय करना कठिन है कि कौन सी कविता सबसे अच्छी है|

रंजना जी आपको भी हार्दिक बधाई
आपकी समालोचना निश्चित ही प्रेरणाप्रद है सभी कविमित्रों के लिये|

अजय जी आपको भी बधाई, आपका प्रथम प्रयास सराहनीय है, लिखते रहें

विपुल जी,"नीलगिरि की शाखें" बहुत सुन्दर कृति है आपकी|पुनः प्रयास करें, आपमें अद्भुत क्षमता है| आपके उज्ज्वल भविष्य के लिये मेरी शुभकामना|

समस्त प्रतियोगियों को बधाई एवं शुभकामना

प्रसन्नता होती है कि कुछ ही समय में युग्म ने उत्कृष्ट रचनाओं,विलक्षण प्रतिभासंपन्न रचनाकारों को जोड कर अंतरजाल जगत में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है|
"हिन्द-युग्म" को मेरी शुभ कामनायें

सस्नेह
गौरव शुक्ल

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

सभी सम्‍मानित विजेताओं को हार्दिक शुभकामनाऐं, सभी ने एक से बढ़कर एक रचना प्रस्‍तुत की है। प्रथम आना या न आना महत्‍वपूर्ण्‍ नही है, सफलता के मायने तब है जब आप सफल होने के लिये सर्व श्रेष्ठ प्रर्दशन करते है।

विपुल जी, आपमे लिखने की अदृभुत क्षमता है। आप लिखिऐं, उम्र कोई मायने नही रखती है मायने तो आपकी प्रतिभा मे दिख रहा है। और मुझे आपमें एक अच्‍छे कवि के दर्शन हो रहे है।

सभी को पुनश्च शुभकामनाऐं

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

वरुण स्याल जी, विपुल शुक्ला जी, कमलेश नाहता 'नीरव' जी, अजय यादव जी और रंजना भाटिया जी आप सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ। विशेष रूप से मैं विपुल शुक्ला जी से कहूँगा कि वे लिखते रहें और इस प्रतियोगिता में बारम्बार हिस्सा लें, अवश्य विजयी बनेंगे।

अजय और रंजना जी दोनों अच्छे पाठक तो हैं ही साथ ही साथ अद्‌भुत लेखक भी। आपजैसे लोग इस मंच की शोभा हैं। नमन्।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत सुंदर लिखा है सभी ने ..सभी विजेता लेखको को बधाई
हिंदी युग्म जिस तरह लिखने और पढ़ने वालो को उत्साहित कर रहा है
वोह सच में बहुत ही सुंदर प्रयास है ...आशा है की इस बार ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस
के साथ जुड़ेगे..



एक बार फिर से बधाई

Sanjeet Tripathi का कहना है कि -

सभी विजेताओं को बधाई व हिन्द-युग्म को साधुवाद।
जो विजेता नहीं बन पाए उन्हें अगले प्रयास हेतु शुभकामनाएं

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

सबसे पहले आगंतुकों की संख्या इतनी बढने पर हिन्द युग्म को बधाई.
वरुण जी ने बहुत सुन्दर कविता लिखी है. पढते हुए लगा कि जैसे प्रकृति की गोद में सिर रखकर बैठे हैं और कोई बहुत प्यार से मिलन का गीत सुना रहा है.
वरुण, आपको इसलिये भी बधाई कि आप फिर से हिन्दी की गोद में लौट आये हैं.
'नीलगिरि की शाखें' भी मुझे बहुत अच्छी लगी और यदि मैं निर्णायक होता तो अवश्य असमंजस में पडता.विपुल यूनिकवि कभी न कभी जरूर बनेंगे, बस प्रयास करते रहिये.
अजय जी सिर्फ अच्छे समीक्षक ही नहीं हैं, लिखते भी उतना ही अच्छा हैं.पहली गज़ल भी क्या खूब लिखी है.
रंजना जी को बहुत शुभकामनाएं.
अजय जी के नक्शे-कदम पर चलकर वे भी अगली बार यूनिकवि की दावेदार हो जाएं तो बहुत अच्छा लगेगा.

Alok Shankar का कहना है कि -

वरुण और रंजना जी को बधाई । साथ ही उनको भी जिन्होंनें प्रयास किये । विपुल और कमलेश को भी बधाई । कमलेश जी की क्षमता से मैं पहले से ही परिचित हूँ …… पर विपुल में भी काफ़ी क्षमता है "नीलगिरि की शाखें" यह सिद्ध करती है ।जीतना अलग बात है पर प्रयत्न करना उतना ही महत्वपूर्ण है । हिन्द युग्म के लिये एक अच्छी बात है कि इतने अच्छे कवि हर माह रचनायें भेज रहे हैं । अजय जी को बधाई इतने अच्छे प्रथम प्रयास के लिये । साथ ही हिन्द युग्म को पारदर्शिता के लिये ।

अनिल वत्स का कहना है कि -

वरुण जी आपको बहुत-बहुत बधाई

आपकी रचना वाकई तारीफ के काविल है।

अनिल वत्स का कहना है कि -

रंजना जी आपको बहुत-बहुत बधाई
आप जैसे लोगों की वजह से कवि और कविता की पहचान बनी रहती है।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

वरुण स्याल जी और रंजना जी आप दोनों को हार्दिक बधाई। आप जैसे लोगों का जुडना हिन्द युग्म का सौभाग्य है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

ePandit का कहना है कि -

वरुण स्याल और रचना जी को बधाई। साथ ही प्रतियोगिता के सफल आयोजन हेतु हिन्द-युग्म को बधाई।

"यद्यपि टिप्पणियों की संख्या फिर भी अधिकतम २० तक ही पहुँचती है। इसका कारण गिरिराज जी के अनुसार अधिकांश लोगों को यह न पता होना कि टिप्पणी कैसे की जाय, है। इसके लिए गिरिराज जी इस विषय पर एक सरल लेख तैयार कर रहे हैं। आशा है इस महीने से टिप्पणियों की संख्या में इज़ाफ़ा होगा।"

अरे भईया टिप्पणी करना सबको आता है, बात ये है कि हिन्दी ब्लॉगजगत से अनभिज्ञ आदमी को ये नहीं पता कि Comment के लिए हिन्दी शब्द प्रयुक्त होता है। इसका उदाहरण मैंने अपने हालिया लेख में भी दिया था। अतः आप अपनी टिप्पणी के लिंक साथ कोष्ठक में इंग्लिश में भी लिख कर देखें। मैं भी कई दिन से यह करने की सोच रहा हूँ।

उदाहरण के लिए: टिप्पणी करें (Post a Comment)

Mohinder56 का कहना है कि -

वरुण स्याल जी और रंजना जी आप दोनों को हार्दिक बधाई।

अजय जी, विपुल जी...आपकी रचनायें भी कुछ कम नही परन्तु निर्णायक के हाथ बंधे होते हैं उसे किसी एक को चुनना होता है...

आप लिखते रहिये हम पढते रहेंगे.

SahityaShilpi का कहना है कि -

सर्वप्रथम मैं सभी निर्णायकों को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने मेरे इस प्रथम प्रयास को सराहा। मैं सभी टिप्पणीकार व कवि-मित्रों को भी धन्यवाद देना चाहूँगा। आप लोगों का स्नेह ही मेरे लिये सबसे अमूल्य पुरुस्कार है और आपकी इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के बाद निश्चय ही मैं कुछ और लिखने का प्रयास कर सकूँगा।
माह के यूनिकवि श्री वरुण स्याल जी तथा यूनिपाठिका श्रीमती रंजना भाटिया जी को भी मेरी ओर से बहुत-बहुत शुभकामनाएं। वरुण जी की कविता वास्तव में बहुत सुन्दर है। प्रकृति को जिस खूबसूरती से उन्होंने शब्दों में ढाला है, वह अपने आप में बेहद सुन्दर है। विपुल जी की कविता में निश्चय ही किसी भी भावुक ह्रदय को झंकृत कर देने की सामर्थ्य है। आशा है कि वे भविष्य में भी ऐसी भाव-प्रवण कविताओं से पाठकों को रू-बरू कराते रहेंगे। 'नीरव' जी की कविता भी उच्च कोटि की है। तत्सम शब्दों का इतना सुन्दर प्रयोग आजकल कम ही देखने में आता है। रंजना जी ने जिस प्रकार पूरे माह सभी कवि-मित्रों का उत्साह बढ़ाया, उसके लिये उन्हें ये सम्मान मिलना ही चाहिये था। आशा है कि आगे हमें उनकी भी कुछ कविताएं पढ़ने को मिलेंगीं।
अन्त में, मैं हिन्द युग्म को भी बधाई दूँगा, उसकी नित नवीन सफलताओं के लिये भी और सृजनगाथा तथा 'मानस' जी जैसा साथी मिलने के लिये भी।

raybanoutlet001 का कहना है कि -

gucci borse
christian louboutin shoes
nike tn
converse trainers
adidas nmd
pandora jewelry
kobe 9 elite
michael kors outlet store
nike air huarache
pandora jewelry

Unknown का कहना है कि -

cheap oakley sunglasses
saics running shoes
air jordan uk
versace
pandora charms
chicago bears jerseys
cheap jordan shoes
arizona cardinals jerseys
ed hardy
broncos jerseys

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)