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Thursday, September 21, 2006

सिर्फ तुम्हारे लिए


जब से तुम्हे देखा है

जी करता है

कुछ ना कुछ लिखूँ

तेरे गालों पे लिखूँ

चाहें बालों पे लिखूँ

तेरे लबों पे लिखूँ

चाहे नैनों पे लिखूँ


मगर कुछ ना कुछ लिखूँ

ऐसा,

जैसा किसी ने ना लिखा हो

एकदम नया, एकदम फ्रेश

तेरा चेहरा फूलों की तरह खूबसूरत है

तेरे होंठ गुलाब की पंखुड़ियों से नरम है

तेरे गालों के उभार, मानो छोटे-२ पर्वतों की शिखाएँ है

तेरी आँखे झीलों सी निर्मल, समुन्द्र सी गहरी है

तेरी बातों में एक अजब सी जादूगरी है


मगर

यह सब तो पहले ही लिख चुके हैं

बहुत से कवि

मैं तो लिखना चाहता हूँ

कुछ नया

जो सिर्फ तुम्हारे लिए हो

सिर्फ तुम्हारे लिए

जैसे मैं हूँ

सिर्फ तुम्हारे लिए


मगर जाने क्यूँ

कुछ भी नहीं सूझ रहा

मेरी कलम भी आज खामोश है

शायद नहीं बचा

अब कुछ भी नया

लिखने के लिए

या फिर

तुम्हे शब्दों में पिरो पाना संभव नहीं

कम से कम मेरे लिए


मगर फिर भी मैं कोशिश करूंगा

कुछ ना कुछ लिखने की

तुम्हारे लिए

क्योंकि मेरा जी करता है

लिखूँ

कुछ ना कुछ नया

तुम्हारे लिए

सिर्फ तुम्हारे लिए

--गिरिराज जोशी


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2 कविताप्रेमियों का कहना है :

roop hans habeeb का कहना है कि -

Joshi ji, aapki rachna par nazar gayee, achhi hai, gazalen aur Taj Mahal aise khayalon hi se bante hain.
aapki rachna dekh kar mujhe meri gazal ki yeh lines yad aa gayeen.Batore Daad
kabool karen.
"namo-nishan hote huye be-nishan sa hun.
bujhte huye chirag ka uthta dhuaan sa hun.
unke hasin rukh ki tareef kaya karun,
kahne ko lab pe hai gazal par be-zuban sa hun."/'Habeeb'u.s.a
Visit ekavita@yahoogroups.com

Anonymous का कहना है कि -

aisa bahut log likh rahe hain!! Please HInd YUgn ka standard maintain karte hue kuch achha aur substntial dalein yahan

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