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Sunday, December 10, 2006

क्यूँ वक्त बरबाद करती है...


नज़रें कह जाती हैं जो अक्सर अकेले में
क्यूँ बात वो तेरे हलक में अटक जाती है.

सुन लेती है जब धड़कनों को सन्नाटे में
क्यूँ कोलाहल में अक्सर मुकर जाती है.

घर कर गया हूँ जब तेरे दिलो-दिमाग में
क्यूँ मजबूरी का नाम लेके दूर हो जाती है.

बाँट लेती है अपने ज़ज्बात जब तू सखियों में
क्यूँ सरेबाज़ार इन्हें कहने से डरती है.

गर डरती है तू जमाने कि पैनी निगाहों से
क्यूँ इस कदर अपना वक्त बरबाद करती है.

कवि- गिरिराज जोशी

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

अकेले में नजरें बहुत कुछ कहती है
खयालात उमदा है बधाई स्‍वीकारें
--कृष्‍णशंकर सोनाने
http://krishnashanker.blogspot.com
http://shankersonane.livejournal.com

bhuvnesh sharma का कहना है कि -

आप ही कह दीजिए न सरकार
उस तरफ़ के खयालात भी कुछ ऐसे ही होंगे

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आपकी एक पंक्ति ने अंदर तक असर किया-


घर कर गया हूँ जब तेरे दिलो-दिमाग में

क्यूँ मजबूरी का नाम लेके दूर हो जाती है

Unknown का कहना है कि -

ना वक्त का ध्यान है...ना निगाहों की परवाह...
शायद बीमार हूँ....सन्नाटों में भी आवाज़ सुनाई देती है....

कविता अच्छी लगी ।

Anonymous का कहना है कि -

देखो भाई अपने ज्ञानीजन तो है नहीं पर लगता है ऐसा होना चाहिए_

सुन लेती है जब धड़कनों को कोलाहल में
क्यूँ सन्नाटे में अक्सर मुकर जाती है.

Divya Prakash का कहना है कि -

guru phir se ek bat kamal kar diya apne ,,maza aagya ..bus yun hi drishta bane rahiye aur phir sara anubhav aur bhav shabdo main pirote rahiye ,,
shubhkamnayein

Anonymous का कहना है कि -

गिरीराज जी सुंदर पंकि्तयों के लिये बधाई।
वाह क्या खूब कहा है--
गर डरती है तू जमाने कि पैनी निगाहों से
क्यूँ इस कदर अपना वक्त बरबाद करती है.

गिरिराज जोशी का कहना है कि -

@ कृष्‍णशंकरजी,

सही है, शुक्रिया.

@ भुवनेशजी,

हम तो कब का कह चूके है सरकार और आप कैसे कह रहें है कि "उस तरफ़ के खयालात भी कुछ ऐसे ही होंगे"? :)

@ शैलेशजी,

शुक्रिया.

@ आदरणीय बेजी,

आपकी पंक्तिया जख्मों पर मरहम लगाने का काम कर रही है, शुक्रिया.

@ संजयजी

आपका कहना सही है मगर यहाँ मैं जो कहना चाह रहा हूँ शायद आप उसे सही प्रकार से समझ नहीं पाए.

मेरी पंक्तियोँ का तात्पर्य था कि जब मेरे दिल की आवाज को तुम अकेले में सुन लेती हो तो फिर सारी-दूनियाँ के सामने क्योँ मुकर जाती हो.

@ दिव्यप्रकाशजी,

शुक्रिया.

@ योगेशजी,

शुक्रिया.

Archana Gangwar का कहना है कि -

ger darti hai tu zamane ki paine nighao se.....to..

wah bahut khoob kaha hai..
good one

archana

caiyan का कहना है कि -

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