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Sunday, December 17, 2006

लिखते जाओ


चलते चलते जब लगे
अब बस अब नहीं
लगने लगे खो गये हैं
सवालों के जवाब कहीं
तब मुझे लिखते जाओ

मैं जवाब में लिखुंगा
कदापि डरना नहीं
निराशा की भीषण आँधी में
आसानी से फसना नहीं
खुद ही दीप बन जाओ
आगे आगे चलते रहो
सुबह जरूर होगी सोचो
निश्चय पूर्वक जलते रहो

मेरा जवाब तुम्हारे लिये
आशा की लहर लायेगा
मन का पंछी सकारात्मक
सुरों में गीत गायेगा
मन का आनंद गीत बनकर
आसमाँ को छुने लगे
तब मुझे लिखते जाओ

तुम्हारे खत मेरे जवाब
सब कुछ पहले से तय सा
सुख दुख और धूप छाँव में
अस्तित्व बुना है जैसा

सबकुछ पहले से तय हो मगर
फिर भी याद आये तो
तब मुझे लिखते जाओ
मेरा जवाब आयेगा ही
इस बात पर निश्चिंत रहो
और मुझे लिखते जाओ

तुषार जोशी, नागपुर


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5 कविताप्रेमियों का कहना है :

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अरे तुषार जी!

आपका ज़बाब पहले ही मिल गया, मुझे लिखने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी।
कविता पढ़ते ही वर्षों पुरानी निराशा भी आशा में तब्दील हो गयी।
ऐसी ही आशाजनक कविताओं की हमेशा उम्मीद रहती है आपसे।

Anonymous का कहना है कि -

सरल शब्दों में एक और उत्कृष्ठ रचना.
बधाई.

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

A Positive Poem, Excellent Creation.

Anonymous का कहना है कि -

तुषार, इतनी अपनी लगती है ना आपकी कविता! ये ही नही......सारी. आपका लिखा हुआ हर नगमा बहोत सरल और honest लगता है.

मेरी हिंदी के लिये माफ़ करना ...... !

जयश्री

Anonymous का कहना है कि -

tushar जी ekbar फ़िर एक behad aashawadi कविता.acchhi लगी.
badhai हो
alok singh "sahil"

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