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Friday, December 22, 2006

आदमी की परिभाषा


बदलते परिवेश के परिपेक्ष में परिभाषाएँ
कितनी बदल जाती हैं!
अब,
मैंने एक सज्जन से पूछा
आदमी और जानवर की परिभाषा क्या है?
सज्जन बोले-
जो अबलाओं की अस्मतें लूटता है,
दूसरों का घर जलाता है,
धर्म के नाम पर दंगा करवाता है,
दहेज के लिए बहुएँ जलाता है,
जो इबादतगाहों के नीचे
तहखानों में
देह का धंधा चलाता है.....................
उसे आदमी कहते हैं।
आदमी,
बनाने वाले की सबसे बड़ी भूल,
और जानवर?
जानवर.............
वो जो मरकर भी अपना
स्वधर्म नहीं छोड़ता,
माँस खाने वाला कभी पत्ते नहीं तोड़ता,
जो साथी के विछोह में मर जाता है,
सर कटे मालिक की लाश घर पहुँचाता है,
कैद मालिक की कोठरी की दहलीज़ पर
अपनी सारी साँसें छोड़ जाता है,
जो आदमी
कभी नहीं बन पाता है,
उसे जानवर कहते हैं।
इस दुनिया में छः अरब आदमी हैं
पर जानवर......................?


कवि- मनीष वंदेमातरम्

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3 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

सत्य चित्रण.

Anonymous का कहना है कि -

कटु सत्य का अति सुन्दर चित्रण.

शोभित जैन का कहना है कि -

apki kavita behad pasand aayi...kahte hai satya kadwa hota hai ye usi ka ek anupam udaharn hai

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