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Saturday, February 17, 2007

मालूम न था


ख्‍व़ाबों मे खोए,
ख्‍व़ाबगाह मे सोये
करता था इबादत
तुम्‍‍हारी ज़ुबा की।।

मौजूद था मै,
तेरी मौजूदगी में।
शिकायत न करना
कि मालूम न था।।

तेरे घर की,
हर महफ़िलों मे।
मै बुलाया नही,
खुद आया हुआ हूँ।।

नज़रों मे तुम्‍हारी कशिश है,
एक बार देखों जो विष है।
पिला दो मुझे एक बार,
बस मेरे लिये यही अमृत है।।

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

beautiful and simple presentation....the lines i like most-

मौजूद था मै,
तेरी मौजूदगी में।
शिकायत न करना
कि मालूम न था।।
keep writing.Thankyou :)

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इस कविता के शुरू के तीन अंतरों में कवि अपनी नायिका से यह कहता प्रतीत होता है "तुम जहाँ-२ हो, मैं वहाँ-२ हूँ"।
पर सम्भवतः कविता के अंतिम अंतरे में वह इन भावों को अंजाम नहीं दे पाता।
कुछ भी हो, सर्वप्रथम प्रयास की ही सराहना होनी चाहिए।

कुछ भाषागत् गलतियाँ जो मुझे समझ में आ रही हैं-

हर महफिलों मे को 'हर महफिल में' या 'महफिलों में' होना चाहिए।

देखों- देखो

मे- में

ज़ुबा- ज़ुबाँ

मै- मैं

रंजू भाटिया का कहना है कि -

नज़रों मे तुम्‍हारी कशिश है,
एक बार देखों जो विष है।
पिला दो मुझे एक बार,
बस मेरे लिये यही अमृत है।।

बहुत सुंदर लिखा है ....यह पंक्तियाँ दिल को छू गयी

Vinayak का कहना है कि -

It's really nice

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

सुन्दर रचना..इतने छोटे-छोटे शब्द, बडे-बडे भाव..

ख्‍व़ाबों मे खोए,
ख्‍व़ाबगाह मे सोये।
करता था इबादत
तुम्‍‍हारी ज़ुबा की।।

तेरे घर की,
हर महफिलों मे।
मै बुलाया नही,
खुद आया हुआ हूँ।।

कविता है तो भी आनंद किसी गज़ल को पढने का सा है..

नज़रों मे तुम्‍हारी कशिश है,
एक बार देखों जो विष है।
पिला दो मुझे एक बार,
बस मेरे लिये यही अमृत है।।

इतनी सुन्दर रचना के लिये बधाई..

*** राजीव रंजन प्रसाद

विश्व दीपक का कहना है कि -

बहुत हीं प्यारी रच्ना है। कई-कई भाव एक साथ पिरोये हुए हैं। अपने प्रियवर से आपने बड़े हीं मासूम सवाल पूछे हैं।

बस ऎसे हीं लिखते रहिये।

Monika (Manya) का कहना है कि -

इतने छोटे में इतने विस्तृत भाव.. जैसे मोतियों कि माला.. बहुत ही सुंदर

Upasthit का कहना है कि -

अच्छी कविता पर भटकाव वैसा ही जो अब तक आपकी अन्य कविताओं मे देखा है...(यदि मुझे ठीक याद है तो..)

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