फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, April 13, 2007

ग़ज़लगो, क्या इसे ग़ज़ल कहेंगे?


तेरी दिल्लगी को मुहब्बत समझता रहा
खाये पत्थर बहुत फ़िर भी हँसता रहा।

जो भी आया जज़्बातों की गर्मी दे गया
मोम का दिल था पिघलता रहा।

क्या ख़बर थी एक दिन ये हालत होगी
बैठ, किस्मत पे अपनी रोता रहा हँसता रहा।

ज़रूर किसी बादल का दिल टूटा है
सारी रात आज पानी बरसता रहा।

सारे भरम टूट गये जब नज़र फेर ली तुमने
जिनके बूते पे मुहब्बत का दम भरता रहा।

जा लौट जा झूठा था उसका वादा
उस आशिक से दरिया ये कहता रहा।


कवि- मनीष वंदेमातरम्

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

15 कविताप्रेमियों का कहना है :

पंकज का कहना है कि -

ज़रूर किसी बादल का दिल टूटा है
सारी रात आज पानी बरसता रहा।

मनीष जी, मुझे इसकी तो अधिक समझ नहीं है कि गज़ल क्या होती है,
लेकिन दिल से निकले हुए भावों को अलबत्ता समझता हूँ। और आप के भावोम का मैं कायल हुआ, यह गज़ल पढ़कर।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

कहते रहे हम अपनी दस्तान दुनिया को यूँ
और ज़माना उस को मेरी ग़ज़ल कहता रहा

लम्हा लम्हा वक़्त यूँ ही ढलता रहा
अशक़ का पेमाना यूँ भी छलकता रहा !!

रंजना...

दिल के भाव अच्छे एहसासो में ढाल दिए हैं आपने

सुनीता शानू का कहना है कि -

बहुत अच्छा लिक्खा है आपने,...

तेरी दिल्लगी को मुहब्बत समझता रहा
खाये पत्थर बहुत फ़िर भी हँसता रहा।

क्या ख़बर थी एक दिन ये हालत होगी
बैठ, किस्मत पे अपनी रोता रहा हँसता रहा।
वाह!
सुनीता(शानू)

Anonymous का कहना है कि -

न वज़न न बहर बस मिला काफ़िया
क्या इसी से इसे है गज़ल कह दिया ?

Anonymous का कहना है कि -

ज़रूर किसी बादल का दिल टूटा है
सारी रात आज पानी बरसता रहा।
ek dum zabardast thoss baat kahi hai.....khoobsurat gazal

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

मनीष जी,
कविता और उसके बंधनों के साथ प्रयोग हुए तो गज़ल के स्वरूप पर यह बहस स्वाभाविक है। मुक्त गज़लें लिख कर कई साहित्यकारों नें बडे मुकाम हासिल किये हैं। अनेकों एसी गज़लें इस दौर में पढने को मिलीं जो मीटर पर नहीं थीं लेकिन पढते ही लगा कि जो बात इन पंक्तियों में है वह असाधारण है। गज़ल अपने पुराने दौर में बहुत गंभीर कलात्मक शाब्दिक चमत्कार करती हो लेकिन कुछ मनीषियों नें "पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों" जैसी बातें लिख कर गज़ल को तलवार भी बनाया है। बहस होनी चाहिये.."गज़ल" शब्द का धडल्ले से इस्तेमाल करने वाले आदर्णीय दुश्यंत कुमार जैसे महान शायरों की रचनाओं को क्या कहा जाये? शराब पी कर उनकी पंक्तियों के साथ झूमा नहीं जा सकेगा और कहीं गलती से कोई अर्थ कलेजे तक उतर गया तो आपके क्रांतिकारी हो जाने की पूरी संभावना है। यदि साहित्य पथदृश्टाओं को नहीं भाता तो "नयी गज़ल" "मुक्त गज़ल" जो चाहे नाम रख दें...बात तो फिर भी वही है। मुक्त होने से शब्दो और भावे का जो नया समंदर शायरों को मिला है मैं व्यक्तिगत तौर पर समझता हूँ यह विधा की तरक्की ही है।

यद्यपि मनीष जी इस गज़ल ने बहुत प्रभावित नहीं किया। मीटर के पचडे में न भी पडें, लेकिन रवानगी तो वांछित है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

SahityaShilpi का कहना है कि -

मनीष जी, यद्यपि आपकी इस रचना में गजल के व्याकरण के हिसाब से कई दोष हैं, जैसा कि अनुपमा जी ने भी कहा है। परन्तु भाव सुन्दर हैं और एक-दो शेर भी अच्छे बन पड़े हैं। फिर भी मेरे विचार में गजल एक विशेष तरह का काव्य-रूप है और हर काव्य-रूप की तरह इसके भी अपने कुछ नियम हैं जिनका पालन अपेक्षित होता है। जैसे कि अगर हमें दोहा कहना है तो मात्राओं का ध्यान रखना ही पड़ेगा। अतः यदि गजल कहनी ही है तो उसकी खासियतों को बनाये रखकर ही कहना ज्यादा उचित होगा। काव्य में प्रयोग करना गलत नहीं पर इससे कुछ नया और बेहतर बनना चाहिये। प्रयोग के नाम पर सिर्फ पुराने नियमों को तोड़ देना,, उचित नहीं कहला सकता।

Anonymous का कहना है कि -

मनिषजी,

वर्तमान दौर में ग़ज़ल की स्थिति किसी से छूपी नहीं है, आपने एक अच्छी बहस शुरू की है।

आपकी इस रचना में बहुत कुछ ऐसा है जो सिधे दिल में उतरता है, मसलन -

ज़रूर किसी बादल का दिल टूटा है
सारी रात आज पानी बरसता रहा।


बधाई स्वीकार करें।

Mohinder56 का कहना है कि -

Kavita, Shair, Gazal
Sub dil ki baat kehte hein
Nazaron se utter ker jo sidhi dil pe lage
Hum Tareef Usi ki Kehte hein...

Sunder hae Bhai.

Anonymous का कहना है कि -

महोदय यह ग़ज़ल है ही नहीं नतो दुरस्त काफिये न
वज़न कुछ भी नहीं समझता हँसता फिर हँसता दोबारा. सिर्फ रहा की रदीफ निभाई है.ग़ज़ल कोई खाला का घर नहीं है जो मर्जी आये चला आये.कुछ
पढ़िये जनाब फिर ग़ज़ल लिखिये.
डॉ.सुभाष भदौरिया.subhas_bhadauriasb@yahoo.com

महावीर का कहना है कि -

मैं डा० सुभाष जी से सहमत हूं। बहर, रुक्न, हिंदी में मात्राएं गिनने से बच कर मात्रा और सबबे खफ़ीफ़, 'मतला' में काफ़िया लिखने के ख़ास नियम वगैरह बातों की जानकारी हो तो ग़ज़ल की शुरुआत हो सकती है। फिर अगर 'तख़नीख' और 'तस्क़ीन' के अमल करने की हिम्मत हो तो आगे बढ़ें। भई, ग़ज़ल तो एक समंदर है, जितना इस में डूबोगे, गहराई का अंत नहीं मिलेगा। पूरे नियम का पालन करते हुए ग़ज़ल लिखते हैं और अचानक से मालूम होता है कि अभी भी चार गलतियां हैं।
जहां तेरा मेरा सवाल है, कभी कभार लिखता हूं
लेकिन उसे ग़ज़ल कहने की हिमाक़त से बचने के लिये उसको एक शीर्षक देकर कविता मान कर पीछा छुड़ाने की कोशिश करता हूं।
डा० साहब ने सच ही कहा है कि ग़ज़ल लिखना खाला का घर नहीं है।
यहां एक और बात का ज़िक्र करना चाहूंगा। रवि रतलाम भाई ने ऐसे लोगों (जिन में किसी हद्द तक मैं भी शामिल हूं) के लिए एक शब्द का आविष्कार किया है "व्यञ्जल"।
इसमें काफ़िये, बहर वगैरह की ज़रूरत नहीं है, ग़ैर मुरद्दफ़ भी चलेगी।
तो यह ऊपर मनीष जी ने जो दिल के अरमानों का इज़्हार किया है, उसका अपमान ना करके 'व्यञ्जल' कह कर स्वागत करता हूं।

Anonymous का कहना है कि -

Wah !! bahut khoob !!!

Gazal kahne mein zadaa kasar nahin hai "vandeymaatra" JI

Anonymous का कहना है कि -

subhash bhai,
nav kusumoon ko prem sey seenchnaa chaahiye.
hanusaa afzaaii keejiyee, marg darshan bhi.
zada daant-fatkaar se to bacchey bigad jaa yaa karate hain :)

saadar naman
Ripudaman

विपुल का कहना है कि -

मनीष जी ...मुझे नही पता की ग़ज़ल क्या होती है .. कविता क्या होती है ! मुझे तो बस एक ही बात समझ मैं आती है की जो सीधे दिल मैं उतर जाए... सच्चाई और ख़ूबसूरती के साथ अपनी बात कहने मैं सफल हो ... बस वो ही अच्छी ग़ज़ल है अच्छी कविता है और निसंदेह आप अपने प्रयास मैं सफल हुए हैं

"ज़रूर किसी बदल का दिल टूटा है
सारी रात आज पानी बरसता रहा "

सचमुच अदभुत पंक्तियाँ है सीधे दिल मैं उतर जाती हैं

परंतु सबसे अधिक प्रभावित मुझे किया ---

"जो भी आया जज़्बातों की गर्मी दे गया
मोम का दिल था पिघलता रहा"
इन पंक्तियों ने...

सचमुच अज़ीब स्थिति होती है ज़्ब हमसे कोई सहानुभूति जताता है सहानुभूति जिसका कोई मतलब नही होता और कभी कभी जो हमारी पीड़ा को हो बढ़ाने मैं सहायक होती है आपने अपनी भावनाओ को बड़े सुंदर तरीक़े से व्यक्त किया है .. जब ही बधाई स्वीकार करे ...

शिज्जु शकूर का कहना है कि -

यह ग़ज़ल तो बिल्कुल नहीं है, इसे ग़ज़ल कहा जाना उचित नहीं है, चाहें तो नज्म का नाम आप दे सकते हैं लेकिन जैसी कि श्री राजीव रंजन जी ने कहा कि मीटर यानि बहर की बात न करें तो किसी नज़्म में अंतर्निहित गेयता होती है जो वांछनीय है। एक बात और आज़ाद या मुक्त ग़ज़ल जैसी कोई विधा नहीं है। आपकी रचना के भाव ठीक हैं।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)