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Wednesday, April 04, 2007

शायरी


दर्द के फल्सफे अच्छे होते हैं लेकिन दर्द बुरा
आँखो की क्या बात करें जब एक भी आँसू ना रहा,
ज़िन्दगी को आदत सी हो चुकी ऐसे फल्सफों की ज़रा
ज़िन्दा हूँ मैं आज भी ज़ेहन में तेरे,
फिर क्यूँ लोग कहते हैं मुझे मरा
अपनी ख्वाबग़ाह से निकल तो सही
मैं ही हूँ तेरे गुज़्ररे रास्तों का सिरा!!!


*************अनुपमा चौहान****************

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19 कविताप्रेमियों का कहना है :

रंजू भाटिया का कहना है कि -

bahut khoob anupama ....

ख्वाब टूट चुके हैं पर आँखो में आस बाक़ी है
दिल के ज़ख़्मो में रीसता हुआ कोई दर्द अभी बाक़ी है
याद आने लगे हैं मुझे फिर से वो साथ तेरे गुज़रे लम्हे
जिनके एहसासो में मेरे जीने की उमंग अभी भी बाक़ी है !!

रंजना [रन्जू]

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

अनुपमा जी..
बहुत ही सुन्दर रचना है। दर्द के फल्सफे वाकई बहुत अच्छे होते हैं लेकिन दर्द असह्य। यह पंक्ति असाधारण है "आँखो की क्या बात करें जब एक भी आँसू ना रहा, ज़िन्दगी को आदत सी हो चुकी ऐसे फल्सफों की ज़रा"

..और संवेदित करता सुन्दर अंत:

ज़िन्दा हूँ मैं आज भी ज़ेहन में तेरे,
फिर क्यूँ लोग कहते हैं मुझे मरा
अपनी ख्वाबग़ाह से निकल तो सही
मैं ही हूँ तेरे गुज़्ररे रास्तों का सिरा!!!

*** राजीव रंजन प्रसाद

Mohinder56 का कहना है कि -

लघू कटार करे घाव भारी... सुन्दर रचना

मेरे हम नफ़ज, मेरे हम नवा, मुझे दोस्त बन कर दगा न दे
मैं हूं दर्दे इश्क से जांबल्ब, मुझे जिन्दगी की दुआ न दे.

पंकज का कहना है कि -

जाने कितने ही दरिया और समन्दर बनते;
वो तो हम हैं कि आँसू पीते हैं, रोते ही नहीं।
अनुपमा जी, दोष आँसुओं का नहीं है, कभी-२ ज़िन्दगी में दर्द ही ऐसे मिल जाते हैं।

SahityaShilpi का कहना है कि -

बहुत सुन्दर रचना। दर्द को सहन करना वास्तव में बेहद मुश्किल है, लेकिन जो लोग दर्द को फल्सफा बना लेते हैं, वही लोग ज़िन्दगी को बेहतर ढंग से जान पाते हैं और जी पाते हैं। ऐसे ही लोग कह पाते हैं-

मैं ग़ज़ल कहूँ मैं ग़ज़ल पढ़ूँ, मुझे दे तो हुस्ने-खयाल दे
मेरा ग़म ही है मेरी तर्बियत, मुझे दे तो रंज़ो-मलाल दे

Kamlesh Nahata का कहना है कि -

Excellent !! Deep and thoughtful .

Kamlesh Nahata का कहना है कि -

Excellent !! Deep and thoughtful .

Anonymous का कहना है कि -

vaah !

Ripudaman

Gaurav Shukla का कहना है कि -

"अपनी ख्वाबग़ाह से निकल तो सही
मैं ही हूँ तेरे गुज़्ररे रास्तों का सिरा!!!"

दर्द का बहुत अच्छा फलसफा

गौरव

विश्व दीपक का कहना है कि -

देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर-

इस तथ्य को सत्यापित करती यह रचना बड़ी हीं प्रभावशाली बन पड़ी है।

दर्द के फल्सफे अच्छे होते हैं लेकिन दर्द बुरा
आँखो की क्या बात करें जब एक भी आँसू ना रहा।

दर्द का बड़ा हीं सजीव चित्रण है।
बधाई स्वीकारें।

सुनीता शानू का कहना है कि -

अनुपमा जी बहुत सुन्दर ओर भावो से ओत-प्रोत रचना है,...
सुनीता (शानू)

Anonymous का कहना है कि -

अच्छी शायरी.

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

आनंद आ गया पढ़ कर।

अच्‍छी रचना है।

Alok Shankar का कहना है कि -

ज़िन्दा हूँ मैं आज भी ज़ेहन में तेरे,
फिर क्यूँ लोग कहते हैं मुझे मरा


बहुत अच्छा अनुपमा जी ।

आलोक साहिल का कहना है कि -

Anupama ji, DARD KA VFALSAFA, kya bat hai.behatarin rachana

Unknown का कहना है कि -

नज़रें न होती तो नज़ारा न होता ,
दुनिया मैं हसीनो का गुज़ारा न होता ,
हमसे यह मत कहो के दिल लगाना छोड़ दे ,
जाके खुदा से कहो के हसीनो को बनाना छोड़ दे

Neeraj Mishra का कहना है कि -

ruth gaya hai manane wala
ab nahi koi mere naz uthane wala
pata nahi kya sochata hai ye khula darwaza.
shayad rasta bhool gaya hai aane wala

Neeraj Mishra का कहना है कि -

ruth gaya hai manane wala
ab nahi koi mere naz uthane wala
pata nahi kya sochata hai ye khula darwaza.
shayad rasta bhool gaya hai aane wala

Unknown का कहना है कि -

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