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Friday, May 04, 2007

अहमियत भूख की


रात भर भौंरा मचलता है
तब कोई फूल खिलता है।

तुम्हें क्या मालूम अहमियत भूख की
एक रोटी को तवा घंटों जलता है।

ज़िंदगी का माने आबे खाँ से पूछो
जब से पैदा हुआ बस्स.....चलता है।

ख़्वाहिशें आदमी की पहुँचने लगीं फ़लक तक
हर रोज़ एक तारा कम निकलता है।

मुसाफ़िर हूँ मैं, मेरा पता न पूछ
हर शाम मेरा ठिकाना बदलता है।

*आबे खाँ- बहता हुआ पानी


कवि-मनीष वंदेमातरम्

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

Mohinder56 का कहना है कि -

तुम्हें क्या मालूम अहमियत भूख की
एक रोटी को तवा घंटों जलता है

ख्वाहिशें आदमी की पहुंचने लगी फ़लक तक
हर रोज एक तारा कम निकलता है

बहुत सुन्दर भाव की रचना, बधाई हो

सुनीता शानू का कहना है कि -

बहुत सुंदर रचना है,..
तुम्हें क्या मालूम अहमियत भूख की
एक रोटी को तवा घंटों जलता है।
एक रोटी के लिए इंसान,इंसान का कत्ल करता है
बहुत सुंदर रचना है दिल चाहता है कि आपके सुर में सुर मिला कर कुछ और मै भी लिखती जाऊँ,..
सुनीता(शानू)

Avanish Gautam का कहना है कि -

achchhi ghzal hai maneesh!

SahityaShilpi का कहना है कि -

मनीष जी, बहुत अच्छा लिखा है। बधाई। वैसे बहते पानी के लिये आपने जो शब्द इस्तेमाल किया है, उसका सही रूप है - आबे-रवाँ (यहाँ आब का तात्पर्य पानी और रवाँ का बहने से है)।

Anonymous का कहना है कि -

ख़्वाहिशें आदमी की पहुँचने लगीं फ़लक तक
हर रोज़ एक तारा कम निकलता है।

best lines

Prabhakar Pandey का कहना है कि -

सुंदर । यथार्थ रचना ।

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

ख्वाहिशें आदमी की पहुंचने लगी फ़लक तक
हर रोज एक तारा कम निकलता है...

बहुत सही लिखा है आपने..आज के समय में ये पंक्तियाँ सटीक बैठती हैं..

Alok Shankar का कहना है कि -

ख्वाहिशें आदमी की पहुंचने लगी फ़लक तक
हर रोज एक तारा कम निकलता है
bahut sundar likha hai aapne.. badhai

गरिमा का कहना है कि -

वाह! एक एक पंक्ति लाजवाब करते हूए... बहुत सुन्दर रचना है... बधाई।

Reetesh Gupta का कहना है कि -

ख़्वाहिशें आदमी की पहुँचने लगीं फ़लक तक
हर रोज़ एक तारा कम निकलता है।

बहुत अच्छी लगी आपकी रचना....बधाई

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

तुम्हें क्या मालूम अहमियत भूख की
एक रोटी को तवा घंटों जलता है।

हर एक शेर बहुत गहरा है। बधाई आपको।

*** राजीव रंजन प्रसाद

रंजू भाटिया का कहना है कि -

ख़्वाहिशें आदमी की पहुँचने लगीं फ़लक तक
हर रोज़ एक तारा कम निकलता है।

मुसाफ़िर हूँ मैं, मेरा पता न पूछ
हर शाम मेरा ठिकाना बदलता है।

yah sabse sundar lines hain....

पंकज का कहना है कि -

तुम्हें क्या मालूम अहमियत भूख की
एक रोटी को तवा घंटों जलता है।

मनीष जी, आप की रचनाओं में जितना अनुभव झलकता है,
उससे भी कहीं अधिक आत्मविश्वास दिखता है।
छोटी लाइनों की छोटी रचना में भी पूरा असर होता है;
मज़ा आ जाता है।

Anonymous का कहना है कि -

तुम्हें क्या मालूम अहमियत भूख की
एक रोटी को तवा घंटों जलता है।


बहुत सुन्दर मनिषजी! भूख की अहमियत का बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है आपने।

बधाई!!!

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

ख़्वाहिशें आदमी की पहुँचने लगीं फ़लक तक
हर रोज़ एक तारा कम निकलता है।
अच्‍छा शेर।

Unknown का कहना है कि -

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