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Monday, May 21, 2007

अब हम से और अपने दिल को बहलाया नहीं जाता


अब हम से और अपने दिल को बहलाया नहीं जाता
जिन्हें पाने की हसरत है उन्हीं से गैर कहलाया नहीं जाता

बहुत सोचा नहीं रक्खूँगा पाँव राह-ए-उल्फत में
मगर वो रुप आँखों से पलभर भी टहलाया नहीं जाता

नहीं रोकूँगा अब दिल को कदमबोसी से दिलबर की
ज़ख्मी जिगर ये आँसुओं से और नहलाया नहीं जाता

बयाँ कर दूँगा अपना हाल-ए-दिल महबूब के आगे
देखूँगा कि क्या छालों को फिर भी सहलाया नहीं जाता

'अजय' के दिल पे जो गुजरी उसे जब जान वो लेगी
यकीं है मुझसे बोलेगी था पहले बतलाया नहीं जाता

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17 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

अजय जी..

आज मुक्त गज़लों का दौर है और मीटर में नहीं लिख कर भी गज़ल की आत्मा को कायम रखा जा सकता है। कम से कम दो पंक्तियाँ इस तरह से पढी जायें की रवानगी गज़ल पढने का अहसास कराये। आपकी प्रथम दो पंक्तियों को लें:

"अब हम से और अपने दिल को बहलाया नहीं जाता
जिन्हें पाने की हसरत है उन्हीं से गैर कहलाया नहीं जाता"

दूसरी पंक्ति में "की हसरत है" की अतिरिक्तता हटायी जा सकती थी मसलन:

"अब हम से और अपने दिल को बहलाया नहीं जाता
जिन्हें पाना है उनसे, गैर कहलाया नहीं जाता"
(पाना है कह कर आप हसरत जाहिर कर ही रहे हैं)

उपरोक्त उद्धरण को आप केवल एक राय की तरह लें, आप इस गज़ल को कसावट प्रदान कर और भी सुन्दर बना सकते है।

आपने भावों की दृश्टि से संपूर्ण न्याय किया है रचना के साथ।

"नहीं रोकूँगा अब दिल को कदमबोसी से दिलबर की
ज़ख्मी जिगर ये आँसुओं से और नहलाया नहीं जाता"

"बयाँ कर दूँगा अपना हाल-ए-दिल महबूब के आगे
देखूँगा कि क्या छालों को फिर भी सहलाया नहीं जाता"

रचना बहुत ही अच्छी है, बधाई स्वीकारें।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Admin का कहना है कि -

बहुत सोचा नहीं रक्खूँगा पाँव राह-ए-उल्फत में
मगर वो रुप आँखों से पलभर भी टहलाया नहीं जाता


भाव वास्‍तवि‍क हैं बाकी राजीव रंजन प्रसाद जी के शब्‍दों में गज़ल की रवानगी का अहसास सचमुच जरूरी लगता है।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अजय जी,

आपकी काव्य-लेखन अभी शैशवकाल में है, इसलिए आप आपकी ग़ज़ल पैरामीटरों पर नहीं चलती है। परंतु सीखने की यही परम्परा है। हाँ, यह ज़रूर याद रखें कि आपका ध्यान हमेशा भावों पर अधिक होना चाहिए, वाक्य-संरचना पर कम।
आपकी यह मुक्त ग़ज़ल भाव प्रधान है और आपकी अब तक प्रकाशित किसी भी रचना को पढ़कर यह कहा जा सकता है कि आपके भीतर का कवि बहुत कुछ लिखने वाला है।

बयाँ कर दूँगा अपना हाल-ए-दिल महबूब के आगे
देखूँगा कि क्या छालों को फिर भी सहलाया नहीं जाता

Anonymous का कहना है कि -

Ajay ...

keval chauthaa sher ( 4th one ) seems to be good to me.

keep writing, and reading too.

संतोष कुमार पांडेय "प्रयागराजी" का कहना है कि -

पढ कर मुझे याद आया कि
"कोई शर्त होती नही प्यार में....."
प्यार करें, निष्काम, सफल होगा यह तुम्हारे हाथ में नही है ना।

सुनीता शानू का कहना है कि -

अजय जी मै राजीव जी और शैलेश जी की बातों से सहमत हूँ आपके अंतस में एक बहुत बड़ा कवि छुपा हुआ है...
रचना बहुत सुंदर एंव भावप्रधान बन गई है...
बहुत-बहुत बधाई...
सुनीता चोटिया(शानू)

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुंदर भाव हैं ..राजीव जी का लिखा बहुत कुछ सीखा गया...अजय जी आपके लिखे यह शेर बहुत पसंद आए ..

नहीं रोकूँगा अब दिल को कदमबोसी से दिलबर की
ज़ख्मी जिगर ये आँसुओं से और नहलाया नहीं जाता

Mohinder56 का कहना है कि -

अजय जी,

आप की रचना के भाव में कोई कमी नहीं है बस जैसा राजीव जी और शैलेश जी ने राय दी है उस पर अमल करें...
रफ़्ता रफ़्ता वो असर भी आयेगा....

श्रवण सिंह का कहना है कि -

jeete rahe, jeete rahe, mar mar ke yun jeete gaye/
itne besharam ho gaye ab ki khud se sharmaya nahi jata...!

ibadat me unki khalal padti hai/
dhadkano ko yun siddat se bulaya nahi jata.......!

श्रवण सिंह का कहना है कि -

bahut tufan aayenge ajay ji,
sahilo ko ab bichhaya nahi jata/

padh padh ke hum jan gaye kuchh-kuchh,
warna gazlon ko ab hamse gaya nahi jata...!

विश्व दीपक का कहना है कि -

जैसा कि राजीव जी ने कहा कि रचना भावगत दृष्टि से अच्छी है लेकिन काव्यगत दृष्टि से कुछ कमी सी खल रही है। उम्मीद करता हूँ कि आगे से आप इस पर ध्यान देंगे और इस सलाह को अन्यथा न लेंगे।

एक अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें।

SahityaShilpi का कहना है कि -

सबसे पहले मैं साथी कवियों तथा पाठकों का धन्यवाद करना चाहूँगा कि उन्होंने मेरी इस गजल को पढ़ा और अपने अमूल्य विचारों से मुझे अवगत कराया। विशेष रूप से राजीव जी का मैं आभारी हूँ जिन्होंने गजल में और सुधार के लिये राय दी। मैं स्वयं भी गजल जैसे काव्य रूपों में रवानगी का कायल हूँ और कोई भी गजल मैं जब तक खुद गा न सकूँ, उसे पूर्ण नहीं मान सकता। यह बात मेरी इस गजल पर भी लागू होती है। इसलिये शाब्दिक रवानगी में दिक्कत कहाँ है, कुछ स्पष्ट नहीं समझ पाया। रही बात भावगत रवानगी की, तो हो सकता है कि कुछ कमी रह गयी हो। वैसे भी यह गजल महज एक प्रयास था, कुछ प्रेम और रोमांस पर लिख पाने का, क्योंकि मैंने इस से पहले ऐसा कुछ लिखा नहीं और न ही कभी महसूस किया।
एक बात और, कुछ पाठकों (जिनमें शैलेष भाई भी एक हैं) ने इसे मुक्त गजल कहा। पर आखिर ये मुक्त गजल है क्या, किसी ने स्पष्ट नहीं किया। मैंने तो अपनी तरफ से बहर, रदीफ और काफिये तीनों का ध्यान रखा है, फिर भी कमी रह जाने से मुझे इनकार नहीं है। आगे और बेहतर लिखने का प्रयास करूँगा; कितना कामयाब होता हूँ, ये फैसला आप को करना है।

Anonymous का कहना है कि -

भाव-प्रधान रचना, अच्छी लगी. बधाई!

Anonymous का कहना है कि -

@AJAY
>>>{एक बात और, कुछ पाठकों (जिनमें शैलेष भाई भी एक हैं) ने इसे मुक्त गजल कहा। पर आखिर ये मुक्त गजल है क्या, किसी ने स्पष्ट नहीं किया।}

Kisi ney iss liye spasht nahin kiyaa kyun ki, Muktt-Gazal "kuch hoti hee nahin hai" !!!

haan "aazad shayari" urdu mein, "mukt-channd" ki kavitaaon ke liye prayog kiyaa jaataa hai.

gazal mein aur bahut sarii vidhyaayein hain jaise "Masnavi" jo dekhne mein gazal jaisee lagtii hai ... par gazal ke bahut se rules lagoo nahin hote. "Masnavi" mein, har misre mein radeef kaa honaa har zaroori nahin hai !
Masnavi mein adikhtar geet likhey jaaye hain.

koshish kerte rahein likhney kee... aur padney kee bhi.

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

प्रिय ब्लू-बर्ड जी,
पहली बात तो युग्म पर आप का स्वागत है, आप नीयमित रहें, मेरी प्रार्थना है क्यों कि इस विषय पर अनेको चर्चायें इस मंच पर हुई हैं। एक मित्र कवि हैं जो गज़ल के व्याकरण से बंधना नहीं चाहते थे लिकिन कृति पढ कर गज़ल ही लगती थी उन्होंने नाम "व्यंजल" सुझाया था, नाम आप भी रख सकते हैं। सचमुच मुक्त गज़ल होती ही नही और गज़ल हिन्दी की विधा भी नहीं। फिर भी दुष्यंत कुमार जैसे लोगों ने भाषा और व्याकरण के बंधनों को तोड कर इसे हिन्दी की विधा बनाया। मैं न तो मीटर में लिखने को गलत मानता हूँ न मीटर से विमुख हो कर लिखने को। असल बात है प्रावाह (गेयता के तत्त्व भी) और संप्रेष्णीयता। बाकी सब तेरा-मेरा के झगडे हैं। हिन्दी में उर्दू की नफासत ढूंढना नामुमकिन है और उर्दू में हिन्दी जैसी विविधता। विधाओं को भी नीयमों के बंधन खोलने पडते है, चूंकि नीयम कवि की सुविधा के लिये ही तो हैं। कवि यदि उस सुविधा में सहज न हो तो भाई लिखना तो फिर भी चाहेगा।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Gaurav Shukla का कहना है कि -

अजय जी, अच्छा प्रयास है
लिखते रहिये
शुभकामनायें

सस्नेह
गौरव शुक्ल

श्रद्धा जैन का कहना है कि -

bahut hi achhi gazal aur bahut achha flow aapka rawangi bahut achhi rahi

man ki bhwanaye bahut achhe se bayan kar sake hai aap ajay ji

aapke kalam main aur paravah rahe yahi meri subhkamanayen hai

apna khyaal rakhiyega
aapko aage bhi padhne ke intezar main

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