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Thursday, May 24, 2007

एक पागल दूजे से बोला


एक पागल दूजे से बोला, तुम अपनी पहचान कहो,
दूजा बोला, वो ही गुम है, नाम जिसे मेरा आता था

मेरे गाँव में भीड़ बहुत थी भाषा के विद्वानों की,
कोई कुछ कहता, मतलब कुछ और बताया जाता था

इस बंगले में शोर बहुत है शुभचिंतक मेहमानों का,
एक घर था, जहाँ कोई मुझसे मिलने भी न आता था

एक मौसम भोलेपन का हो, गर एक हो चालाकी का,
हर रुत में धोखा खाने पर मुझको गुस्सा आता था

कोई जीते, कोई हारे, न ऐसा कोई खेल रचो,
हार का सदमा जाने कितनी जानें लेकर जाता था

तेरे आँसू की बारिश से धरती बंजर हो आई है,
मेरे आँसू उपजाऊ थे, खेत में सोना लहराता था

कोशिश थी उनकी आखिर तक, मैं प्यासा न रह जाऊँ,
पानी कम पड़ता था तो जहर मिलाया जाता था

भीड़ खड़ी थी, बीच सड़क में लावारिस सी लाश पड़ी थी,
पहले तो नौटंकी में यूं सज के जाया जाता था

सारा जीवन मेरा ही है, फिर भी खालीपन सा है,
उसने मुझसे छीन लिया क्या, समझ में ये न आता था

मेरी जंग धर्म से थी और धर्म की थी शैतानों से,
दोस्त था दुश्मन का दुश्मन, शैतान ही मैं कहलाता था

दीवारों से करो गुजारिश, बातें करना शुरू करें,
पहले तो बस रो लेने से दिल हल्का हो जाता था।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

kafi gahri soch rakhte hai aap , puran lagi aapki kavita.

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

आपके स्तर की कविता युग्म का सौभाग्य है। मेरा मानना है कि आपके कलम की धार, समाज और युग के लिये प्रेरक होगी। आप सोच के बहुत पक्के धरातल पर बैठे हैं जहाँ कविता कैसे लिखी जाये की तलाश खत्म हो जाती है। अब आप को आगे देखना है क्योंकि ये कलम तो हथियार है और आपका पैनापन बहुत उम्मीद जगाता है। आपका ऑब्जरवेशन बहुत गहरा है "मेरे गाँव में भीड़ बहुत थी भाषा के विद्वानों की" साधारण तौर से कही गयी असाधारण बात है। इस रचना में कई गंभीर तत्व हैं और विविध भी मसलन :
"एक मौसम भोलेपन का हो, गर एक हो चालाकी का,
हर रुत में धोखा खाने पर मुझको गुस्सा आता था"

"तेरे आँसू की बारिश से धरती बंजर हो आई है,
मेरे आँसू उपजाऊ थे, खेत में सोना लहराता था"

और

"दीवारों से करो गुजारिश, बातें करना शुरू करें,
पहले तो बस रो लेने से दिल हल्का हो जाता था"

उपर उद्धरित पद (शेर कहने से बच रहा हूँ और गज़ल भी क्योंकि इतनी सुन्दर रचना को फीते से नपवाना नहीं चाहता)इतने विविध है लेकिन संवेदनाओं का आकाश छू लेते हैं। पर आप चूकते कहीं भी नहीं हैं:

"कोशिश थी उनकी आखिर तक, मैं प्यासा न रह जाऊँ,
पानी कम पड़ता था तो जहर मिलाया जाता था"

"मेरी जंग धर्म से थी और धर्म की थी शैतानों से,
दोस्त था दुश्मन का दुश्मन, शैतान ही मैं कहलाता था"

मैं आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Anonymous का कहना है कि -

Bhai vaah !!!!!

bahut aacchey !

rachanaa bahut acchii lagii.

Mohinder56 का कहना है कि -

रचना गहरे दिल के भाव लिये हुये है
"तेरे आँसू की बारिश से धरती बंजर हो आई है,
मेरे आँसू उपजाऊ थे, खेत में सोना लहराता था"
यहां थोडा विरोधाभास हो गया.. आंसू का खेत से सम्बन्ध ? आंसू या पसीना ?

"दीवारों से करो गुजारिश, बातें करना शुरू करें,
पहले तो बस रो लेने से दिल हल्का हो जाता था"

"कोशिश थी उनकी आखिर तक, मैं प्यासा न रह जाऊँ,
पानी कम पड़ता था तो जहर मिलाया जाता था"

बहुत बढिया पंक्तियां है

SahityaShilpi का कहना है कि -

तेरे आँसू की बारिश से धरती बंजर हो आई है,
मेरे आँसू उपजाऊ थे, खेत में सोना लहराता था

बहुत खूब, गौरव जी। कम से कम मुझे आपकी अब तक की रचनाओं में यह सबसे ज्यादा पसंद आयी। एक एक शेर खूबसूरत है। आपका भविष्य सचमुच उज्जवल है। इसी तरह लिखते रहिये।

सुनीता शानू का कहना है कि -

gaurav jee baad mai tippani karungi...bahut kuch likhana chahati hoon magar hindi ke bina likhana achcha nahi lagata..abhi sirf itana hi..aap bahut khoobsurat dil ke malik hain..aapaki rachanaye hame bhavuk bana detee hain ant tak yani ki padhane ke baad bhi picha nahi chodti...baar-baar padhanae ka dil karata hai...
sunita(shanoo)

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

तेरे आँसू की बारिश से धरती बंजर हो आई है,
मेरे आँसू उपजाऊ थे, खेत में सोना लहराता था
....
सारा जीवन मेरा ही है, फिर भी खालीपन सा है,
उसने मुझसे छीन लिया क्या, समझ में ये न आता था

एक मुकम्‍मल गजल..अटपट मगर सटीक.. गौरव जी गजल को जीने के लिए बधाई।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आपकी कविताएँ पढ़कर कहा जा सकता है कि कविता को लिखने के लिए नहीं लिखा गया है बल्कि जिया गया है।
सच है आपके ही गाँव में नहीं ये भाषाई विद्वान हर गाँव पे पाये जाते हैं।
इसे व्यंग्य कहूँ कि आपकी फ़िकर-
इस बंगले में शोर बहुत है शुभचिंतक मेहमानों का,
एक घर था, जहाँ कोई मुझसे मिलने भी न आता था

यह पंक्ति कितने अंदर तक छूती है, यह बताना भी मुश्किल है-
कोशिश थी उनकी आखिर तक, मैं प्यासा न रह जाऊँ,
पानी कम पड़ता था तो जहर मिलाया जाता था

इस बात से गौरव भाई मैं भी इत्तेफाक रखता हूँ-
दीवारों से करो गुजारिश, बातें करना शुरू करें,
पहले तो बस रो लेने से दिल हल्का हो जाता था।

विश्व दीपक का कहना है कि -

दीवारों से करो गुजारिश, बातें करना शुरू करें,
पहले तो बस रो लेने से दिल हल्का हो जाता था।

बड़ी मुश्किल से इसे चुन पाया हूँ। ऐसा नहीं कि यही एक अच्छी लगी , बस बात यह है कि सारी पंक्तियाँ अच्छी लगी तो समझ में न आया कि किसे चुनूँ।
गौरव जी आप हिन्द-युग्म पर नियमित आया करो, नहीं तो कुछ कमी सी लगती है।
रचना भाव की दृष्टि से अपने चरम पर आया है। परंतु इमानदारी से देखेंगे तो आप भी महसूस करेंगे कि लयबद्ध बनने में कही-कहीं मीटर से बाहर हो गई है। थोड़ी इस पर मेहनत करें तो आपको एक बड़ा कवि बनने से कोई नहीं रोक सकता। बाकी आप समझते हीं हैं।

नमस्कार।

Gaurav Shukla का कहना है कि -

प्रिय गौरव जी

क्या कहूँ आपको?
हमेशा की तरह एक बार फिर अत्यन्त अद्भुत रचना
अति संवेदनशील,

कोई एक-दो पंक्तियाँ उठा पाने में सर्वथा असमर्थ पा रहा हूँ
ऐसी गंभीर रचना पढवाने के लिये बहुत बहुत आभार

सस्नेह
गौरव शुक्ल

sudhanshu का कहना है कि -

dear gaurav,
Kavita is really really good & sahi bolu to it is above my thinking level haan kuch lines meri samajh main aayi or vo bahut hi aachi thi jaise ki vo Dharma vali, vo Jahar vali vo Banjar vali. that is really good.. keep it up or mujhe inform karte raha karna so that i can see all ur kavitas

Anonymous का कहना है कि -

गौरवजी,

समझ में नहीं आ रहा है कि इतनी सुन्दर रचना पर मात्र 10-12 टिप्पणियाँ ही क्यूँ?

जैसा की राजीवजी कह चुके है, "आपके कलम की धार, समाज और युग के लिये प्रेरक होगी। आप सोच के बहुत पक्के धरातल पर बैठे हैं जहाँ कविता कैसे लिखी जाये की तलाश खत्म हो जाती है।", मैं उनसे पूर्णतया सहमत हूँ।

आपका युग्म पर होना युग्म के लिये सौभाग्य की बात है।

बधाई स्वीकार करें!!!

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' का कहना है कि -

"कोई जीते, कोई हारे, न ऐसा कोई खेल रचो,
हार का सदमा जाने कितनी जानें लेकर जाता था"
बधूं आप तो जीत गये। यकीनन आज तक पढी गयी कविताऔं से इसकी तुलना नहीं कर पा रहा हूँ। जैसा राजीव जी ने कहा कि इसे फीते में नहीं बाँधना चाहता वैसे ही मैं इस पर कुछ नहीं लिखूँगा पर अब जल्द ही आपकी आवाज फोन कर सुनने को मजबूर हो गया हूँ ।

madhukar का कहना है कि -

bahut aache bhai. kaphi gambhir soch rakhe hain aap. khash kar title "एक पागल दूजे से बोला" mujhe kaphi pasand aaya. dhanyavad.

geeti का कहना है कि -

bahut hi khoobi se itni gehraai naap li hai aapne,.shuruaat hi bahut achchi hai, aur antim panktiyaan, 'deewaaron se karo....', dil ko choo jaati hain. meri shubhkamnaayein

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