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Tuesday, May 29, 2007

मेरे सीने में जल रहा क्या है...


धुआँ-धुआँ सा उठ रहा क्या है,
मेरे सीने में जल रहा क्या है...

तुम जो नज़रें चुरा के बैठ गये
कोई सागर पिघल रहा क्या है..
मेरे सीने में जल रहा क्या है...

चाँद बादल से निकलता ही नहीं
कोई छत पर टहल रहा क्या है..
मेरे सीने में जल रहा क्या है...

दर्द के कितने उजाले फैले
शाम से मन में ढल रहा क्या है..
मेरे सीने में जल रहा क्या है...

आदमी की ही तरह लगता है
आदमी को निगल रहा क्या है...
मेरे सीने में जल रहा क्या है...

मुझको काटा, उबाल ही डाला
मूँग सीने में दल रहा क्या है..
मेरे सीने में जल रहा क्या है...

मुझको "राजीव" उसने जो देखा
रंग चेहरा बदल रहा क्या है..
मेरे सीने में जल रहा क्या है...


***राजीव रंजन प्रसाद

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19 कविताप्रेमियों का कहना है :

पंकज का कहना है कि -

राजीव जी, आप ने बिल्कुल नपे-तुले शब्दों में लिखा है।
गज़ल में रवानगी तो भरपूर है;
लेकिन प्रचलित उपमाओं के प्रयोग से प्रभाव थोड़ा कम हुआ है।

विश्व दीपक का कहना है कि -

राजीव जी, बड़े दिनों बाद युग्म पर नजर आएँ। आपके बिना युग्म अधुरा-सा लग रहा था। वैसे आए तो क्या खूब आएँ। मन प्रसन्न हो गया।
"मेरे सीने में जल रहा क्या है..",मन की बातों को बड़े हीं मन से पेश किया है आपने।
मेरा browser पंक्तियों को copy करने नहीं दे रहा है, इसलिए क्षमा चाहता हूँ। वैसे हर पंक्ति अपने में हीं सर्वोच्च है।
बधाई स्वीकारें।

परमजीत सिहँ बाली का कहना है कि -

बहुत सुन्दर रचना लिखी है।बधाई।


चाँद बादल से निकलता ही नहीं
कोई छत पर टहल रहा क्या है..
मेरे सीने में जल रहा क्या है...

दर्द के कितने उजाले फैले
शाम से मन में ढल रहा क्या है..
मेरे सीने में जल रहा क्या है...

देवेश वशिष्ठ ' खबरी ' का कहना है कि -

राजीव जी,
मान गये कि आपने कहा क्या है..
हर जगह आपकी ही चर्चा है...
बिन कहे यूँ न जाया करो 'रंजन',
बिन तुम्हारे ये युग्म 'तन्हा' है।
भरपूर जियो, खूब जियो, जिन्दा-दिली से तुम
'खबरी' की जन्मदिन पर यही बस दुआ है
समझ गया दोस्त दास्तान तेरी भी,
तेरे सीने में जल रहा क्या है...

सुनीता शानू का कहना है कि -

राजीव जी सबसे पहले तो आप हमारी और से जन्म-दिन की शुभ-कामनाएँ स्वीकार करें...

आपकी गज़ल हमेशा ही दिल पर अपनी छाप छोड़ जाती है, मै तो हमेशा गा कर ही पढ़ती हूँ...क्यूँ कि गज़ल में रवानगी की कहीं कोई कमी नही होती...वैसे मुझे गज़ल का पूरा ज्ञान नही है फ़िर भी जिसका अर्थ समझ आये और दिल में जो बस जाये मेरे खयाल से वही गज़ल है...जिन्दगी भी तो एक खूबसूरत गज़ल है बशर्ते की जीने का मतलब समझ आये और हम इसे हर हाल में हँस कर गुनगुनाएं...

सुनीता(शानू)

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत ख़ूब राजीव जी ...

चाँद बादल से निकलता ही नहीं
कोई छत पर टहल रहा क्या है..
मेरे सीने में जल रहा क्या है...

दर्द के कितने उजाले फैले
शाम से मन में ढल रहा क्या है..
मेरे सीने में जल रहा क्या है...

यह पंक्तियाँ अच्छी लगी ....

SahityaShilpi का कहना है कि -

राजीव जी, सर्वप्रथम तो आपको जन्मदिवस की शुभकामना। (ये बात मुझे कुछ साथियों की टिप्पणियों से पता चली।)आपकी गजल की रवानगी ने दिल खुश कर दिया। मगर जैसा कि पंकज जी ने कहा, कई बिम्ब पुराने से लगे। आप में प्रतिभा है, स्वयं ही नये बिम्ब और प्रतिमान गढ़ने की। इसलिये बेहतर होगा कि आप अपने तरीके से ही अपनी बात रखें।

Anupama का कहना है कि -

shuruat hi zabardast hai धुआँ-धुआँ सा उठ रहा क्या है,
मेरे सीने में जल रहा क्या है...
phir to kavita bahati chali jaa rahi hai

चाँद बादल से निकलता ही नहीं
कोई छत पर टहल रहा क्या है..

दर्द के कितने उजाले फैले
शाम से मन में ढल रहा क्या है..

रंग चेहरा बदल रहा क्या है...

aapki yeh kavita ke peeche ki kahaani maalum hone ke karan ise padhne me aur maza aayaa...

Mohinder56 का कहना है कि -

चाँद बादल से निकलता ही नहीं
कोई छत पर टहल रहा क्या है..
मेरे सीने में जल रहा क्या है...

दर्द के कितने उजाले फैले
शाम से मन में ढल रहा क्या है..
मेरे सीने में जल रहा क्या है...

सुन्दर लिखा है राजीव जी...

मगर इसके पीछे की कहानी हमें मालूम नही जैसे की अनुपमा जी को है...

Divine India का कहना है कि -

यह रचना सचमुच की दार्शनिक खोज जैसी है…
व्यक्ति और तृष्णा का भागम-भाग…
बहुत सही पकड़ा है…यथार्थ दर्शन को…बधाई!!!

Gaurav Shukla का कहना है कि -

राजीव जी, बहुत दिनों बाद आपकी कोई गज़ल पढने को मिली

"तुम जो नज़रें चुरा के बैठ गये
कोई सागर पिघल रहा क्या है.."

"चाँद बादल से निकलता ही नहीं
कोई छत पर टहल रहा क्या है.."

"मुझको "राजीव" उसने जो देखा
रंग चेहरा बदल रहा क्या है.."

गज़ल का प्रवाह आनन्द देता है, सुस्पष्ट बिम्ब
बहुत सुन्दर

सस्नेह
गौरव शुक्ल

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

प्रिय मित्रों..
जन्मदिवस पर मिली आप सभी मित्रों की शुभकामनाओं का मैं आभारी हूँ। इस गज़ल के विषय में कुछ महत्वपूर्ण बातें मैं बताना चाहूँगा। सर्वप्रथम तो यह कि यह गज़ल एक "आशु कविता" का हिस्सा है जो कि गौरव शुक्ला जी के साथ चैट करते हुए अनायास बन गयी थी, मैं इस गज़ल को भूल भी गया था और इसकी कोई प्रति मेरे पास नहीं थीं। गौरव जी का बहुत बहुत धन्यवाद कि मेरी युग्म से अनुपस्थिति पर इतना सुन्दर तोहफा उन्होंने मुझे दिया। गौरव जी के पास मेरी कई अप्रकाशित कवितायें हैं, संभव है इस गज़ल से बेहतर भी हों किंतु यह गज़ल प्रकाशित देख कर मेरी प्रसन्नता का अंदाजा युग्म के सभी मित्र स्वत: ही लगा सकते हैं। गौरव जी आपका पुन: आभार।

*** राजीव रंजन प्रसाद

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

शायद आशु कविता थी, इसीलिये मुझे वह मजा नही आ पाया, जिसका इंतज़ार था.
राजीव जी, वैसे आप चैट मे इतना अच्छा लिख सकते हैं। वास्तव मे आपकी बात ही कुछ और है।

आर्य मनु का कहना है कि -

आदमी की ही तरह॰॰॰॰॰आदमी को ही निगल रहा क्या है ?
ह्रदय के तार झन्कृत करने के लिये ये पंक्तियाँ ही काफी है
आपसे जब से बात की है, कुछ कहना चाह रहा था, पर अब तय किया है कि जब मिलेंगे, तभी कहूँगा॰॰॰
मिलने के लिये "मनु" खयाल अच्छा है॰॰॰॰॰॰॰
ऍक बेहद उम्दा रचना के लिये साधुवाद॰॰॰

आर्य मनु का कहना है कि -

टिप्पणियो से पता चला कि आपका जन्मदिन भी अभी गुज़रा है॰॰॰देर से ही सही, मनु की शुभकामनायें स्वीकार कर, मुझे उपकृत करें

Unknown का कहना है कि -

चाँद बादल से निकलता ही नहीं
कोई छत पर टहल रहा क्या है..
मेरे सीने में जल रहा क्या है...

ye lines baDhiya hai. aapako janmadin ki shubhakamanaae

Gaurav Shukla का कहना है कि -

प्रिय राजीव जी,
आपका स्नेह निरन्तर मिलता है मुझे,यही मेरा पारितोषिक है
आपकी इस आशुकविता से ही आपका कौशल स्वतःस्पष्ट है
मुझे बहुत प्रिय है यह कविता भी
बहुत आभारी हूँ कि आपने जिम्मेदारी सौंप कर मुझमें विश्वास दिखाया
हार्दिक धन्यवाद

सस्नेह
गौरव शुक्ल

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

ग़ज़ल का पहला ही शेर बहुत पुराना सा लगता है। मगर हाँ बाद के शेर मन लुभावन हैं। और एक शेर तो बिलकुल दिल के इस पार से उस पार निकल जाता है-

चाँद बादल से निकलता ही नहीं
कोई छत पर टहल रहा क्या है..

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

एक से बढ़कर एक शेर... और मुकम्‍मल गजल सामने आई है। राजीव जी, बधाई हो।
दर्द के कितने उजाले फैले
शाम से मन में ढल रहा क्या है..
मगर सिर्फ यही शेर नहीं.. पूरी गजल काबिलेतारीफ

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