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Friday, June 15, 2007

एक और कर्मवीर


उड़ती थी ग़र्द चहुँ-दिश
था आसमान मैला
लू के थपेड़े लगते
जग झुलसा जा रहा था

बादल का एक टुकड़ा
प्यासा था जैसे शायद
पानी ही खोजने को
कहीं दूर जा रहा था

बैठा था अपने घर मैं
था देखता सड़क को
तभी दिख पड़ा मुझे वो
सम्मुख जो आ रहा था

गर्मी की दोपहर में
रिक्शे को खींचता था
भट्ठी में धूप की ज्यों
खुद को गला रहा था

सारे बदन से रिसकर
बहता था यूँ पसीना
बारिश में आग की वो
जैसे नहा रहा था

पलभर को उसने रुककर
अपना पसीना पोंछा
कोई गीत धीमे सुर में
शायद वो गा रहा था

एक बार ही मिलीं थीं
मुझसे तो उसकी नजरें
फिर चल दिया वो मुड़कर
जिस राह जा रहा था

आये थे याद मुझको
वो 'कर्मवीर' फिर से
इसका भी कर्म शायद
इसका खुदा रहा था

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Mohinder56 का कहना है कि -

बहुत अच्छा लिखा है अजय भाई,

मजदूर को उसकी मेहनत का पैसा उसका पसीना सूखने से पहले मिलना चाहिये..
आप ने एक मेहनत कश के पसीने की कीमत पहचानी....आपको सलाम

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

अजय जी,
बहुत ही अच्छी रचना है। आप भावनाओं को बहुत सुन्दरता से उकेरते है। सादगी से भी, बिना किसी जटिल बिम्बीय तामझाम के। फिर भी जो बिम्ब आपने प्रयुक्त किये हैं उनमें सुन्दरता है:
"जग झुलसा जा रहा था"
"बादल का एक टुकड़ा
प्यासा था जैसे शायद"
"भट्ठी में धूप की ज्यों
खुद को गला रहा था"
"बारिश में आग की वो
जैसे नहा रहा था"

बहुत सुन्दर अजय जी, और जो पंक्ति संवेदित करती है वह है:

कोई गीत धीमे सुर में
शायद वो गा रहा था

*** राजीव रंजन प्रसाद

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

एक बार ही मिलीं थीं
मुझसे तो उसकी नजरें
फिर चल दिया वो मुड़कर
जिस राह जा रहा था
अच्‍छी पंक्तियां

Kavi Kulwant का कहना है कि -

अच्छी कविता कवि कुलवंत

Admin का कहना है कि -

कविता सुन्दर है मन खुश हुआ

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुंदर भाव और सुंदर शब्द हैं

सुनीता शानू का कहना है कि -

बहुत सुंदर कविता है अजय जी...एक सच्चाई है आपकी कविता में...
पलभर को उसने रुककर
अपना पसीना पोंछा
कोई गीत धीमे सुर में
शायद वो गा रहा था

एक बार ही मिलीं थीं
मुझसे तो उसकी नजरें
फिर चल दिया वो मुड़कर
जिस राह जा रहा था
बहुत अच्छे!
बधाई स्वीकार करें...

सुनीता(शानू)

विश्व दीपक का कहना है कि -

भावगत, काव्यगत या शिल्पगत किसी भी दृष्टिकोण से कोई खामी मुझे नज़र नहीं आई। हर पंक्ति सुंदर है।बड़ी हीं अच्छी उपमाएँ इस्तेमाल की हैं आपने।

एक बार ही मिलीं थीं
मुझसे तो उसकी नजरें
फिर चल दिया वो मुड़कर
जिस राह जा रहा था

बहुत खुब । बधाई स्वीकारें।

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

बहुत अच्छे शिल्प से युक्त गहरे भावों की कविता।

बादल का एक टुकड़ा
प्यासा था जैसे शायद
पानी ही खोजने को
कहीं दूर जा रहा था

आये थे याद मुझको
वो 'कर्मवीर' फिर से
इसका भी कर्म शायद
इसका खुदा रहा था

अजय जी, आपने बहुत आसान शब्दों में एक सुन्दर दर्शन दे दिया। बहुत शुभकामनाएं।

Anonymous का कहना है कि -

अजयजी,

कविता बहुत ही सुन्दर है. बधाई!!!

Unknown का कहना है कि -

Really a nice poem.

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अजय जी,

आपकी इस कविता में भाव, शिल्प, सरोकार किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं है। और सबसे बड़ी बात है कि मेहनत करने वालों पर दुःख जताने वालों से अलग आपने इसको नमन किया है।

कितनी संदर पंक्तियाँ हैं बिलकुल उस मेहनतकश की तरह-

पलभर को उसने रुककर
अपना पसीना पोंछा
कोई गीत धीमे सुर में
शायद वो गा रहा था

आये थे याद मुझको
वो 'कर्मवीर' फिर से
इसका भी कर्म शायद
इसका खुदा रहा था

पंकज का कहना है कि -

अजय जी, आप का पुराना फार्म इस रचना में नज़र आ रहा है।
जितने सुन्दर भाव ,उतना ही रचना में कसाव और बहाव।

anuradha srivastav का कहना है कि -

नमस्ते अजय जी,
विषय की गम्भीरता,मामिॆकता उभर कर आयी है
आपकी लेखन शैली में गहनता व नवीनता आ रही है

श्रद्धा जैन का कहना है कि -

Ajay ji is kavita main aapko karam ki parthmikata batayi hai aur sahaj hi ye bahut sunder ban padhi hai
ek ek sabad aapka bahut saral magar bahut parbhav puran bana hai

aise hi likhte rahe dua hai

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