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Saturday, July 21, 2007

आये बिना बहार की, रवानी चली गयी


आये बिना बहार की, रवानी चली गयी
देखा जो आइना लगा, जवानी चली गयी

खेलने की उम्र में, खिलौने न पा सके
हकीकतों के बोझ में, कहानी चली गयी

पूजा था जिसे रात-दिन, कान्हा नहीं मिला
राणा के साथ मीरा, दीवानी चली गयी

बाकी रहा न कुछ भी, सिर्फ याद रह गयी
पाई थी जो यार से, निशानी चली गयी

बच्चे नये दौर के, सब जानते हैं अब
मासूमियत, वो आँख की हैरानी चली गयी

गमे-ज़ीस्त के सिवा, कुछ बचा नहीं ’अजय’
सारे ज़हन में फैलती, वीरानी चली गयी

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19 कविताप्रेमियों का कहना है :

OMVEER CHAUHAN का कहना है कि -

gud morng ajay ji
aapki nae kavita ke liye badhaeya
aapne kya khob likha he
paristhitiya insan ko kya se kya bana deti he ham karna kuch chahte he par ho kuch aur jaata he. yahi jeevan he hame bas koshish karte rahna chahiye chahe hame manzil mile ya na mile in mazburiyo ke hote huye bhi kush rahte huye unka datkar samna karna chahiye
apne kavita me inssan ke dard ko bakhobi darshaya he
kafi achhi lagi apki kavita
hakikat bhi chupi hui he kavita me
am admi ki mazboriya unka dard sab kuch jhalak raha he kavita me
aapka bohat bohat dhanyavad.
aap aise hi likhte rahna meri shubh kamnaye aapke sathhe
dhanyavaad ajay ji
OMVEER CHAUHAN

Gaurav Shukla का कहना है कि -

अजय जी,

आपकी गज़ल में स्वाभाविक व्यथा है जो सर्वत्र स्पष्त दृष्टिगोचर है
सच कह रहे हैं आप

"बच्चे नये दौर के, सब जानते हैं अब
मासूमियत, वो आँख की हैरानी चली गयी"

बढिया लिखा आपने
बधाई

सस्नेह
गौरव शुक्ल

vinay upadhyay का कहना है कि -

HI AJAY YE WALI POIM THEEK THI
AESE HI KUCH SAMAJHNE WALI POIM LIKHA KARO

Unknown का कहना है कि -

good morning sir
apki naye kavita ke lie bohot-2 bhadhie
eshwar kare aap isi tarah aksharo ko motion ki tarah pirote rahe


your well wisher

Mohinder56 का कहना है कि -

बहुत सुन्दर गजल है अजय जी,
एक एक शेर में जिन्दगी की हकीकत झलकती है
मगर मेरा मानना है जो जितनी ज्यादा मुश्किलों से गुजरता है वो उतना ही जिन्दगी के बारे में ज्यादा जानता है...
कुछ न भी बचे जिन्दगी में मगर नाउम्मीद नहीं होना चाहिये.. भाग्य के बारे में एक निश्चित बात यही है कि ये एक न एक दिन बदलेगा

ratna का कहना है कि -

बच्चे नये दौर के, सब जानते हैं अब
मासूमियत, वो आँख की हैरानी चली गयी
बेहद पंसद आया।

Dr. Seema Kumar का कहना है कि -

खेलने की उम्र में, खिलौने न पा सके
हकीकतों के बोझ में, कहानी चली गयी

बहुत खूब !

anuradha srivastav का कहना है कि -

बच्चे नये दौर के, सब जानते हैं अब
मासूमियत, वो आँख की हैरानी चली गयी
आज के दौर का कटु सत्य ।
अजय बहुत अच्छा लिखा है।

कंचन सिंह चौहान का कहना है कि -

पूजा था जिसे रात-दिन, कान्हा नहीं मिला
राणा के साथ मीरा, दिवानी चली गयी
***********************************पूजा था जिसे रात-दिन, कान्हा नहीं मिला
राणा के साथ मीरा, दिवानी चली गयी
बहुत खूब अजय जी !

आर्य मनु का कहना है कि -

"पूजा था जिसे रात-दिन, कान्हा नहीं मिला
राणा के साथ मीरा, दिवानी चली गयी"

हर एक शब्द में दर्द का अहसास परिलक्षित होते काफी दिनों बाद देखना नसीब हुआ है ।
यूँ तो पूरी रचना ही बेहद उम्दा है, पर खास तौर पर ये पंक्तियां पसन्द आई-
"बच्चे नये दौर के, सब जानते हैं अब
मासूमियत, वो आँख की हैरानी चली गयी"

आपका आभार,
आर्यमनु

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

खेलने की उम्र में, खिलौने न पा सके
हकीकतों के बोझ में, कहानी चली गयी

पूजा था जिसे रात-दिन, कान्हा नहीं मिला
राणा के साथ मीरा, दिवानी चली गयी

सुन्दर रचना है अजय जी।

*** राजीव रंजन प्रसाद

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

खेलने की उम्र में, खिलौने न पा सके
हकीकतों के बोझ में, कहानी चली गयी
क्या बात कही है!

पूजा था जिसे रात-दिन, कान्हा नहीं मिला
राणा के साथ मीरा, दिवानी चली गयी

बच्चे नये दौर के, सब जानते हैं अब
मासूमियत, वो आँख की हैरानी चली गयी

गमे-ज़ीस्त के सिवा, कुछ बचा नहीं ’अजय’
सारे ज़हन में फैलती, वीरानी चली गयी

अब मैंने हर एक शेर ही शायद छाँट दिया है। सब कुछ सीधा दिल में उतर गया। यही कामना है अजय जी..कि आप यूं ही अपने खूबसूरत ज़ज़्बातों को कागज़ पर उकेरते रहें।

Anupama का कहना है कि -

ajay ji gazal to mujhe waise bhi bahut pasand hai...aur jab shabdon ko aapke jaisi kalam mile to jaadu khud b khud chal jaata hai.....aapki gazal pasand aai hamen

Anonymous का कहना है कि -

ab 13 coments mil gaye hai o mai yah kaam kar k koi bada kaam nahi kar raha hoon
obiviously
gazal sundar hai
bimb kafi achche hai
पूजा था जिसे रात-दिन, कान्हा नहीं मिला
राणा के साथ मीरा, दिवानी चली गयी
regards

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

किसी पाठक को पहले मैं आपकी यह ग़ज़ल पढ़ाऊँ और फ़िर बताऊँ को इन्होंने फ़रवरी, २००७ से लिखना शुरू किया है तो शायद उसे तुरंत विश्वास नहीं होगा।

मेरी भी आदत है कि पूरी ग़ज़ल में से कुछ शे'र निकालकर बोल्ड करूँ, मगर यह आज सम्भव नहीं हो पा रहा है।

Anonymous का कहना है कि -

अजयजी,

बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है आपने, मजा आ गया, गुनगुनाने में आनंद आ रहा है -

खेलने की उम्र में, खिलौने न पा सके
हकीकतों के बोझ में, कहानी चली गयी


बदलते परिवेश का एक कटू सत्य!

पूजा था जिसे रात-दिन, कान्हा नहीं मिला
राणा के साथ मीरा, दीवानी चली गयी


इतिहास के पन्नों में सिमटा दर्द!

बच्चे नये दौर के, सब जानते हैं अब
मासूमियत, वो आँख की हैरानी चली गयी


आधुनिकता की चका-चौंध में खोता इंसान!

सबकुछ कितनी सरलता से खोज लाये हैं आप, बहुत खूब!

बधाई स्वीकार करें।

Sajeev का कहना है कि -

बच्चे नये दौर के, सब जानते हैं अब
मासूमियत, वो आँख की हैरानी चली गयी

अगर शैलेश कि बात सच है तो वाकई ये काबिलेतारीफ है अजय जी बधायी

Nikhil का कहना है कि -

ajay bhi,
bahut pyaari ghazal hai......

पूजा था जिसे रात-दिन, कान्हा नहीं मिला
राणा के साथ मीरा, दिवानी चली गयी

आये बिना बहार की, रवानी चली गयी
देखा जो आइना लगा, जवानी चली गयी

khoobsoorat bhaav hain...aap lagaatar achaa likh rahe hain....

कुमार का कहना है कि -

भाई साहब कविता बहुत ही अछ्छी लगी
पहली लाइन आप से मिलती जुलती और सच्ची लगी।

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