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Sunday, July 22, 2007

कैसे थाम लूँ हाथ तुम्हारा?


तुम मन चंचल बहता झरना
मैं शांत स्वभावी नदी किनारा
तुम राह गर्म, मैं राही हारा

कैसे थाम लूँ हाथ तुम्हारा?

तुम महका गुलाब धरे कंचन काया
मैं शुष्क बबूल, न फल न छाया
कंटीला कर दूँ पथ तुम्हारा?

कैसे थाम लूँ हाथ तुम्हारा?

तुम प्रेम-मधु छलकाता प्याला
मैं जोगी, प्रभू की जपता माला
व्यर्थ होगा, मेरा तप सारा

कैसे थाम लूँ हाथ तुम्हारा?

तुम मुक्त गगन में पंछी उड़ता
मैं शब्द-भाव में उलझा रहता
कहो ‘कवि’ ने किसको उबारा?

कैसे थाम लूँ हाथ तुम्हारा?

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39 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

कविता अच्छी है.....
बिंब नये एवं सुंदर है परंतु कविता अधूरी सी लगती है...
कृपया इसे पूर्ण करे
शुभेच्छाएं

Anonymous का कहना है कि -

giri raj yeh kavta bahut aachi hai

so nice rearlly good

Anonymous का कहना है कि -

मैं भी इस कविता का एक पेरा जाडना चाहूगा।

जो भी हो फैसला तुम्‍हारा
फिर भी चाहो संग हमारा
मैं हूं भक्‍त प्रभू की माया

कैसे थाम लूँ हाथ तुम्हारा?

Sanjeet Tripathi का कहना है कि -

एक प्रेमी मन की बढ़िया अभिव्यक्ति की है आपने जोशी जी

Admin का कहना है कि -

कविता मनॊरम है परन्तु अन्त अपेक्षित नहीं है मानॊ कवि ने वक्त से पहले ही कलम छॊड दी है।
साथ ही एक प्रश्न है हिन्द युग्म से कि आज तॊ खबरी जी का दिन था

श्रद्धा जैन का कहना है कि -

ek achhi kavita ke liye badhyi Giri

Unknown का कहना है कि -

realy very goods and kavita ha joshi ji

Unknown का कहना है कि -

very nice kavita ha joshi ji

Unknown का कहना है कि -

अगर मनुष्य मे दैवीय गुण नही है तो ऎसी कविता की रचना नही हो सकती है,
नमन है उस मनु को जो शाश्वत विचारो को कविता मे पिरो देता है................................................................शत् शत नमन है

divya का कहना है कि -

कविता बेहतरीन है.....
प्रेमी ह्र्दय से निकला प्रश्न लाजवाब है....
बहूत खूब.....
[:)]

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

मुझे आपकी सबसे अच्छी कविताओं में से यह लगी।
सुन्दर बिम्ब और मधुरता के साथ प्रश्न करती यह कविता अपने रचियता की पूरी बात कह देती है।
तुम राह गर्म, मैं राही हारा

कंटीला कर दूँ पथ तुम्हारा?

कहो ‘कवि’ ने किसको उबारा?

ऐसा ही लिखते रहें। युग्म पर सच में बहुत अच्छा काव्य लिखा जा रहा है।

Kamlesh Nahata का कहना है कि -

acchi kavita hai .

Sajeev का कहना है कि -

kavita mujhe bhi adhuri lagi giri ji.... aapki dusari kavita ki tarah sakhakt nahi lagi..... aap jaisa kavi itna bebas kaise ho sakta hai

Mohinder56 का कहना है कि -

अरे गिरी जी बस हिम्मत कीजिये और पकड लीजिये फ़िर देखिये... आप किनारे उस उठ तेज प्रवाह में बहने लगेंगे, कांटे खुदबखुद फ़ूल बन जायेंगे, तप का फ़ल ही तो आप पा रहे हैं... हाथ की शक्ल में, अब उबरने और डूबने की मत पूछिये... कभी कभी डूबने में जो मजा है वो उबरने में भी नहीं...
सुन्दर रचना.

Anonymous का कहना है कि -

तुम मन चंचल बहता झरना
मैं शांत स्वभावी नदी किनारा
तुम राह गर्म, मैं राही हारा
कविता बहुत अच्छी है..पहले छंद से ही प्रेमी की पीड़ा और दुविधा का पता चलता है..

Sagar Chand Nahar का कहना है कि -

मेरा सभी मित्रों और कवियों से अनुरोध है कि जो कविता अधूरी सी लगती हो उसे आप सब मिल कर पूरा करिये, इससे कविता एक नये रूप में अच्छी सी लगने लगेगी और अधूरी भी नहीं रहेगी।
@ कवि
भाई क्या सारे कवि तन्हा ही रहते होंगे? जो हाथ बढ़ा है थाम लो, ज्यादा सोचोगे तो पछताओगे।

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

कवि के मन की उलझन परंतु आस्क्ति लिये भाव कविता को हृदय स्पर्शी बनाते हें, बधाई..

विश्व दीपक का कहना है कि -

गिरि जी आप तो हर विधा के उस्ताद हैं, फिर चाहे वो हास्य-रस हो या गंभीर भाव। इस बार आपने प्रेम को चुना है और इसे अच्छे से निभाया है। लोगों का कहना है कि कविता अधुरी सी लगती है ,लेकिन मुझे ऎसा नहीं लगता। मेरे अनुसार इसतरह की रचनाएँ लंबाई की मोहताज नहीं होती । बाकी आप जैसा सोचें [:)]

आशीष "अंशुमाली" का कहना है कि -

कविता जो असमंजस और आकुलता है.. उसमें गालिब़ का एक शेर जेहन में उभर रहा है
है इश्‍क नहीं आसां बस इतना समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
कविता जो असमंजस और आकुलता है..

Unknown का कहना है कि -

it was really gr8

it touched heat

i saluate u 4 ur beautiful imagination.

jst luv it !!!!!!!!!!!!!!!!!

plz keep on sending such a beautiful poems.

Unknown का कहना है कि -

कविता अच्‍छी है किन्‍तु मेरे बन्‍धु इन कविताओं के साथ ही हम आपसे कुछ हास्‍य रस की कविताओं की आशा करते हैं.
कृपया इसे हमारी इच्‍छा मानते हुए शीघ्र ही पूर्ण करावें

36solutions का कहना है कि -

Badhiya abhivyakti joshi ji, Dhanyavad

SahityaShilpi का कहना है कि -

अरे वाह जोशी जी! ये मर्ज़ कहाँ लगा ली आपने? मगर भाई, बिना काँटों के तो गुलाब का वज़ूद ही खतरे में पड़ जायेगा. तो बिना चिंता किये हाथ थाम ही लो.
कविता अच्छी लगी!

Gaurav Shukla का कहना है कि -

कविराज

काव्य की हर विधा में आपका सशक्त दखल है
बहुत बढिया लिखा है

"तुम राह गर्म, मैं राही हारा"
"तुम मुक्त गगन में पंछी उड़ता
मैं शब्द-भाव में उलझा रहता
कहो ‘कवि’ ने किसको उबारा?"

नये बिंब हैं आपकी कविता में... थोडा समय और जरा सा श्रम कविता को और सुन्दर बना सकता है
बधाई

सस्नेह
गौरव शुक्ल

Anupama का कहना है कि -

Main man chanchal behata jharna
tum shaant swabhaavi nadi kinara
main ghat ghat phirta awara
tum hi baandh sako mujhse apni dhaara

kyun na thaamu haath tumhara?

main mehka gulaab dhare kanchan kaya
tum kateela babul na phal n chaya
sajunga main hi jab bhandhoge tum sehra
tum hi the rakshak mere jahaan bhi main raha

kyun na thaamu haath tumhara?

main prem madhu chalakta pyala
tum jogi prabhu ki japte mala
sampoorna hoga tera tap saara
bin prem ke kis jogi ka jog rang paya

kyun na thaamu haath tumhara?

main mukt gagan me panchi udta
tum shabd bhaav me uljhe rahete
'kavi' ne meri udaan ko ubhara
tere hi sapno ko liye neel gagan ka
karta hu bhraman saara

kyun na thaamu haath tumhara?


Kavita kaafi aachi hai.....aapki kavita par kavita likhne se ham khud ko rok na paaye....umeed karte hain aap bura nahi maanenge....aapki kavita me itna prabhaav hai ki hamen likhne par majboor kar diya.....har shabd moti hai....har bhaav kamal hai....

keep writing
Always
Anu

Rakesh Pasbola का कहना है कि -

कविता बहुत अच्छी है. तारीफ के लिए शब्द नही है. आगे इसी तरह साथ बना रहेगा

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

वाह गिरिराज जी..
बहुत सुन्दर रचना, नये बिम्ब और आपकी प्रचलित शैली से बिलकुल अलग...

मैं शुष्क बबूल, न फल न छाया
कंटीला कर दूँ पथ तुम्हारा?

मैं शब्द-भाव में उलझा रहता
कहो ‘कवि’ ने किसको उबारा?

कैसे थाम लूँ हाथ तुम्हारा?

प्रसंशनीय!!

*** राजीव रंजन प्रसाद

गीता पंडित का कहना है कि -

कविता
सुंदर है.....
प्रेमी मन की
सुंदर अभिव्यक्ति ....

जोशी जी !
ऐसा ही
लिखते रहें।

Anonymous का कहना है कि -

kuch pannktiya saajh se pare hai

तुम राह गर्म, मैं राही हारा

तुम प्रेम-मधु छलकाता प्याला
मैं जोगी, प्रभू की जपता माला
व्यर्थ होगा, मेरा तप सारा

तुम मुक्त गगन में पंछी उड़ता
मैं शब्द-भाव में उलझा रहता
कहो ‘कवि’ ने किसको उबारा?


men kuch bhav spshat nahi ho raha, vaise kafi log achchha kah rahe hai, iskiye chahe to meri tippni ko ignor kare ya eri baat aapko sahi lag rahi ho to in panktiyo ko spashat kare.

Anonymous का कहना है कि -

बन्‍दु आपकी कविता और आपसे जुडे पाठक के भाव बहूत ही सुन्‍दर। अति प्रशन्‍ता हुई। सचमुच अच्‍छे भाव और शब्‍दो का चयन बहुत ही अच्‍छे है।

गरिमा का कहना है कि -

बहुत अच्छा लिखा है भईया... भाव अपने आप मे पूर्ण हैं।

सुनीता शानू का कहना है कि -

वैसे कविता को जोड़्ना मै भी चाहती थी मगर फ़िर सोचा रहने दे कविराज की पहले ही बहुत खिंचाई हो गई है...अच्छी कविता है...

सबसे खूबसूरत पक्तिं है...

तुम मन चंचल बहता झरना
मैं शांत स्वभावी नदी किनारा

सुनीता(शानू)

Unknown का कहना है कि -

बहुत खूब कविराज जी

रंजू भाटिया का कहना है कि -

तुम प्रेम-मधु छलकाता प्याला
मैं जोगी, प्रभू की जपता माला
व्यर्थ होगा, मेरा तप सारा

कैसे थाम लूँ हाथ तुम्हारा?


बहुत ही सुंदर रचना है

शोभा का कहना है कि -

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है । आपने प्रेम में जितना सोचस है उतना सोचना शायद
सम्भव नहीं होता । और एक बात । प्रेम हमेशा विरोधी स्वभाव में होता है । यदि इस कविता
को मेरी आवाज़ में सुनना चाहें तो इस लिनक पेर सुनें। शुभ कामनाओं सहित http://ritbansal.mypodcast.com/index.html

anuradha srivastav का कहना है कि -

गिरिराज जी, लौकिक और अलौकिक का सुन्दर तालमेल किया है ।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

गिरिराज जी,

मैं परसो से यह सोच रहा था कि आपकी इस कविता को अपनी आवाज़ दूँ, लेकिन शोभा जी ने बाज़ी मार ली।
मुझे यह बहुत पसंद आई। ग़ज़ब का आकर्षण है इस कविता में। इस तरह की कविताएँ ४-५ पन्नों की हों तब भी मज़े से पढ़ा जा सकता है।

वैसे अनुपमा जी की टिप्पणी भी कम रोचक नहीं है। अब आपसे और उम्मीद बँध गई है।

डाॅ रामजी गिरि का कहना है कि -

मैं शब्द-भाव में उलझा रहता
कहो ‘कवि’ ने किसको उबारा?
कवि-मन की प्रणय-दुविधा का सटीक चित्रण है यहाँ.

Unknown का कहना है कि -

दूरियों से फर्क पड़ता नहीं
बात तो दिलों कि नज़दीकियों से होती है
दोस्ती तो कुछ आप जैसो से है
वरना मुलाकात तो जाने कितनों से होती है

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