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Monday, July 23, 2007

हो सके तो.....


प्रस्तुत है जुलाई माह के तीन सोमवारों की कड़ी में मेरी अन्तिम रचना...पिछली दो रचनाओं की तरह इस बार भी आपका स्नेह मिलेगा, ऐसा विश्वास है......

हो सके तो.....

जानता हूँ, चिता मन में जल रही है, मत बुझाओ॥

अब मिलन का हर्ष कैसा? विरह वाला गीत गाओ...

भूल जाओ........

पात झरते है तो झड़ जाएँ, शिशिर का ध्यान कैसा??

बिना मांगे प्रेम तुमने दे दिया, अब प्रेम में प्रतिदान कैसा??

है लिखा मिलना-बिछुड़ना, इसमे क्या रोना-बिलखना;

पथिक अब कैसी विवशता ? पथ में है व्यवधान कैसा??

गति है जीवन का सच, मत लौटने का मन बनाओ...

...हो सके तो भूल जाओ......

तुमको अब दिखला न सकूंगा, छलनी मेरा भी सीना है,

मुझको निर्मोही कह लेना..सुख तुमसे मैंने छीना है ...

द्वार तुम्हारे अर्थी लेकर फिर आऊंगा, सुख लौटाने;

चिता सजाना, भूल ना जाना, शेष का जीवन तब जीना है...

मेरी चिता पर काम आएंगे, फूल अभी से मत बरसाओ...

...हो सके तो भूल जाओ......

आओ आलिंगन करें, अब जा रह हूँ, मन है भारी...

लिए जाता हूँ हृदय के आईने में छवि तुम्हारी,

रोज़ अब अन्तिम प्रहर में, आंसुओं से मन का मंदिर,

स्वच्छ करके, मन की देवी को कहूँगा व्यथा सारी ....

और तुम...इन आंसुओं का भार अपनी हथेली पर उठाओ....

अमर हो जाऊं;मिले अमरत्व; कोई पथ दिखाओ.....

भूल जाओ.....हो सके तो भूल जाओ......

जानता हूँ, चिता मन में जल रही है, मत बुझाओ॥

अब मिलन का हर्ष कैसा? विरह वाला गीत गाओ...

भूल जाओ........

हो सके तो....

निखिल आनंद गिरि

+९१९८६८०६२३३३

+९१९४३१३८४९७४


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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

divya का कहना है कि -

itni bhavpurna sundar kavita likhi hai aapne.......man mughdha ho gayaa......wah....iske liye aapko bahut bahut badhai........aage aapki rachnaye padhne ka awsar main nahi khone wali.......
[:)]
divya

Mohinder56 का कहना है कि -

निखिल जी मिश्रित भाव वाली सुन्दर कविता है
आशा निराशा में डूवत उतराते नायक को चित्रित करती हुयी.... बधायी

36solutions का कहना है कि -

बढिया अभिव्‍यक्ति निखिल जी हमारे भी हृदय के आईने में छा गयी है कवि, छवि तुम्हारी ।

Anupama का कहना है कि -

Ati sundar likha hai.....kalpana ke pankhon par jo bhaav sawaar hau to bas udta hi chala gaya....kavati me aacha bahaav aur ravangi hai....likhte rahiye...meri shubh kaamnaayen sweekaren.

Anonymous का कहना है कि -

भावपूर्ण रचना है।

SahityaShilpi का कहना है कि -

निखिल जी!
बेहद सुंदर और प्रभावपूर्ण रचना है. वियोग के दुख को जीवन का सच मान कर झेलने को तैयार प्रेमी की पीड़ा, अपने प्रिय को किसी भी तरह सांत्वना देने का उसका प्रयास और इस प्रेम के सहारे ऊँचा उठने की उसकी आकांक्षा; सभी को आपने जीवंत कर दिया है.
बहुत बहुत बधाई!

Anonymous का कहना है कि -

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भाव अत्यंत सुंदर है.........
विरह की ऐसी भाव पूर्णता कहीं कहीं ही दिखाई देती है.....
विरह एक ऐसा विषय है जिस पर आजकल की काफ़ी सारी फूहड़ एवं एस एम एस की तरह की कविताएँ लिखी जाती है परंतु आप की भाषा इतनी परिश्क्रत तथा स्तरीय है की लगता ही नही है.....
ऐसे भाव कोई स्तरीय कवि ही उत्पन्न कर सकता है....
चिता सजाना, भूल ना जाना, शेष का जीवन तब जीना है...
मेरी चिता पर काम आएंगे, फूल अभी से मत बरसाओ...
...हो सके तो भूल जाओ......
और ना केवल भाषा वरन्, भाव, शब्द, अलंकार, शब्द-शक्ति....सभि दृष्टियों से रचन स्तरीय है
...............
ऐसी रचनाओ के लिए शत धन्यवाद....

Anonymous का कहना है कि -

comment thik se copy nahi hua usake liye shama

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

जानता हूँ, चिता मन में जल रही है, मत बुझाओ॥
मिलन का हर्ष कैसा? विरह वाला गीत गाओ...भूल जाओ........

सराहनीय!! बहुत सुन्दर रचना।

*** राजीव रंजन प्रसाद

विश्व दीपक का कहना है कि -

मुझको निर्मोही कह लेना..सुख तुमसे मैंने छीना है ... द्वार तुम्हारे अर्थी लेकर फिर आऊंगा, सुख लौटाने; चिता सजाना, भूल ना जाना, शेष का जीवन तब जीना है... मेरी चिता पर काम आएंगे, फूल अभी से मत बरसाओ... ...हो सके तो भूल जाओ......

इन पंक्तियों ने सबसे ज्याद प्रभावित किया।अपनी हीं प्रेयसी को भूलने की बात कहना बड़ा हीं कठिन होता है। इस भावना को आपने शब्दों में उकेरा है। इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं।

Admin का कहना है कि -

बहुत खूब। आपने पिछली बार की सभी शिकायतॊं कॊ दूर कर दिया।
कवि कॊ बधाई

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

सच्ची कविता है। कई-कई पंक्तियों को तो कई बार पढ़ने का मन करता है। जैसे-

तुमको अब दिखला न सकूंगा, छलनी मेरा भी सीना है,
मुझको निर्मोही कह लेना..सुख तुमसे मैंने छीना है ...
द्वार तुम्हारे अर्थी लेकर फिर आऊंगा, सुख लौटाने;
चिता सजाना, भूल ना जाना, शेष का जीवन तब जीना है...
मेरी चिता पर काम आएंगे, फूल अभी से मत बरसाओ...

रोज़ अब अन्तिम प्रहर में, आंसुओं से मन का मंदिर,
स्वच्छ करके, मन की देवी को कहूँगा व्यथा सारी ....
और तुम...इन आंसुओं का भार अपनी हथेली पर उठाओ....
अमर हो जाऊं;मिले अमरत्व; कोई पथ दिखाओ.....

और अपने आप में कविता की शुरूआत बहुत लुभाती है। बेहतरीन!

Nikhil का कहना है कि -

सभी मित्रों को नमस्कार,
मेरी रचना पर पारखी नजर रखने के लिये शुक्रिया ।
पीयूष जी को इतनी मेहनत से प्रतिक्रिया लिखने का विशेष धन्यवाद।
हिन्द-युग्म की बदलती सज्जा भा रही है।
निखिल

सोनू का कहना है कि -

Waah kitni sundar kavita hai jo shaant mann ko bhi sochne par majboor kar deta hai.

adidas nmd का कहना है कि -

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