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Friday, August 10, 2007

कहाँ गये पक्षी


बहुत अधिक नहीं
बस कुछ साल पहले तक
छोटी बड़ी अनेक पक्षी
अक्सर ही दिख जाते थे
इधर-उधर टहलते हुये
जाने क्या खाते थे
इनमें से कुछ तो
पास के पेड़ों पर रहते थे
और कुछ
दूर कहीं से आते थे

पर अब ये पक्षी
जाने कहाँ चले गये है
कहीं नज़र ही नहीं आते हैं
शहरों में तो छोड़िये
गाँवों में भी नहीं मिल पाते हैं
शाम के वक्त
सूने उदास पेड़ इन्तज़ार करते हैं
पर पक्षी लौट कर नहीं आते हैं

कोयल की कूक तो क्या
कौवे की कर्कश ध्वनि को भी
कान तरसते हैं
मोर की अनायास ही याद आती है
जब जब बादल गरजते हैं
इंसान आज चाँद पर जा पहुँचा है
पर इनके लिये
क्या हम कुछ नहीं कर सकते हैं

यही हाल रहा
तो कोयल की कूक, पपीहे की रटन
बस याद ही रह जायेगी
और हमारी अगली पीढ़ी तो
इन्हें सिर्फ चित्रों में ही देख पायेगी
पर प्रकृति
क्या चुपचाप सहेगी ये अनर्थ
क्या मानव की ये गलती
उसके आगे नहीं आयेगी

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

अजय जी आपने इतना गंभीर प्रश्न उठाया है कि आपकी सोच की मैं भूरि-भूरि प्रसंशा करता हूँ। सचमुच आज पंछी विलुप्त प्राय हो रहे हैं। मनुष्य तो मल्टीस्टोरी होता जा रहा है और फिर भी गोरैया को एक अदद छज्जा नही मिलता।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Gaurav Shukla का कहना है कि -

प्रिय अजय जी,

प्राकृतिक विषय पर लिखने में आप सिद्धहस्त हो गये हैं :-)
पहले वर्षा और अब पक्षी
बहुत सुन्दर कविता है, विषय भी गंभीर है , प्रस्तुति भी अच्छी है

किन्तु थोडा ध्यान दें कि कहीं लेखन में एकरसता न आ जाये

सस्नेह
गौरव शुक्ल

अभिषेक सागर का कहना है कि -

हिन्दयुग्म पर प्रकृति पर बहुत कम रचनायें पढनें को मिलती हैं। बहुत अच्छा लिखा है आपने।

anuradha srivastav का कहना है कि -

सही कहा अजय जी अब चेतने का समय है ।

विपुल का कहना है कि -

अजय जी आपने एक गंभीर विषय की और ध्यान आकर्षित करने का सफल प्रयास किया है जिसमें आप सफल भी हुए |
इस उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई !

विश्व दीपक का कहना है कि -

कोयल की कूक तो क्या
कौवे की कर्कश ध्वनि को भी
कान तरसते हैं
मोर की अनायास ही याद आती है
जब जब बादल गरजते हैं

अजय जी बहुत सही लिखा है आपने। अब आम के बागों और बारिस का कोई औचित्य नहीं रह गया है , जब उन्हें सजाने वाले हीं नहीं रहे।

पर प्रकृति
क्या चुपचाप सहेगी ये अनर्थ
क्या मानव की ये गलती
उसके आगे नहीं आयेगी

जरूर आएगी। आप इसका प्रमाण सूखों और बाढों में देख हीं रहे हैं। सब मानव का हीं कृत्य है, सो सजा भी उसी को हीं मिलेगी।

शोभा का कहना है कि -

अजय जी
आपने अत्यन्त संवेदन शील विषय उठाया है । सचमुच
पक्षियों का यूँ लुप्त होना विचारनीय विषय है । आखें खोलने के लिए
बधाई ।

Anupama का कहना है कि -

ek serious question kiya hai aapne..jiskaa jawaab shayad ham me se kisi ke paas nahi hai...flow aacha hai presentation bhi...Peacock to apna national bird hai...uske hi darshaan sabse zyada muhaal ho gaye hain...

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत सुन्दर कविता है,

कोयल की कूक तो क्या
कौवे की कर्कश ध्वनि को भी
कान तरसते हैं
मोर की अनायास ही याद आती है
जब जब बादल गरजते हैं

RAVI KANT का कहना है कि -

अजय जी आप्की कविता अच्छी तो है ही वर्तमान संदर्भ मे प्रसंगिक भी है। सचमुच सोचनेवाली बात है-
कोयल की कूक तो क्या
कौवे की कर्कश ध्वनि को भी
कान तरसते हैं
मोर की अनायास ही याद आती है
जब जब बादल गरजते हैं
इंसान आज चाँद पर जा पहुँचा है
पर इनके लिये
क्या हम कुछ नहीं कर सकते हैं

हो सक्ता है मैं गलत होऊँ मगर मुझे लगता है-
"छोटी बड़ी अनेक पक्षी
अक्सर ही दिख जाते थे" इस पंक्ति में छोटी की जगह छोटे ज्यादा सटीक रहता।

Anonymous का कहना है कि -

आप की यह रचना ..........कवयातमक काम निबांद्धत्मक अधिक लगी.........
एक विचारोत्तेजक लेख.............
पर एक रचना का मुख्य उद्देश्य जो होता है उसे आपने बख़ूबी पाया है.............
वो है पाठक के दिलो दिमाग़ पर उतरना...........
सच मे सोचने पर मजबूर करती है आपकी कविता .............
शिल्प और भाव थोड़े काम थे नही तो कविता का कॉन्सेप्ट अत्यंत ही उंदार बन पड़ती
शुभकामनाएँ

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

अजय जी, ये सवाल मेरे दिल में भी बहुत दिनों से था लेकिन मुझे पता नहीं था कि क्या प्रश्न है ये?
आपने जैसे मेरे हृदय की बात को भी स्वर दे दिए।
मुझे पंछी बहुत प्रिय हैं, मेरे लिए यह कविता आलोचना से परे है।
बहुत धन्यवाद।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मुद्दा तो गंभीर है, लेकिन कविता सफल नहीं है। शायद कवि ने इसे तुकांत बनाने की कोशिश की है। मेरा अनुभव रहा है कि तुक न बन पाये तो अतुकांत ही लिखना ज्यादा बढ़िया होता , आंशिक तुकान्त की तुलना में। कविता प्रभाव नहीं छोड़ती, किसी लेख की तरह सवाल उठाती है।

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

विषय अच्‍छा है। किन्‍तु जैसा विषय है वैसा प्रभाव नही है।
कुछ पक्तिंयॉं पढ़ने में अटपटी से लग रही है।

जैसे इस पक्तिं को ही लीजिऐं यहॉं पर जैसे ठहराव दिख रहा है। -----
सूने उदास पेड़ इन्तज़ार करते हैं
पर पक्षी लौट कर नहीं आते हैं

विषय अच्‍छा है, कविता भी बढि़यॉं है।

Mohinder56 का कहना है कि -

साधारण विषय और लीक से हट कर असाधारण रचना

sandeep sethi का कहना है कि -

good poem includes unique words.... appriciable creation...keep it up sir.................

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