फटाफट (25 नई पोस्ट):

Saturday, August 18, 2007

प्रेम का पर्याय जीवन


किसी नरपति के तनय को बेर शबरी का खिलाना
या किसी हनुमान का पर्वत उठा औषधि खिलाना
रास से राधा किशन के झूमता मदमस्त मधुबन
प्रेम का पर्याय जीवन

धूप में तपती धरा को रोज थोड़ा नम बनाती
रेत की नीरस त्वचा पर ,हर घड़ी चुंबन लुटाती
आप मिटकर रस लुटाती लहर का अभिप्राय जीवन
प्रेम का पर्याय जीवन

निर्झरों का बह निकलना, दो किनारों को मिलाना
राह रोके पत्थरों को रोज सीने से लगाना
या लपेटे साँप तन पर सुरभि देना यथा चंदन
प्रेम का पर्याय जीवन


हरी पत्ती की सतह पर , रजकणों को धो मिटाती
ओस की इक बूँद और उस बूँद का अभिप्राय जीवन

प्रेम का पर्याय जीवन

-आलोक शंकर

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

14 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

आलोक जी,
आपने जो प्रेम के उदाहरण दिये, मुझे वो बहुत अच्छे लगे।

"हरी पत्ती की सतह पर , रजकणों को धो मिटाती
ओस की इक बूँद और उस बूँद का अभिप्राय जीवन"

धन्यवाद,
तपन शर्मा

विपिन चौहान "मन" का कहना है कि -

आलोक जी..
क्या बात है..
आप ने तो मुझे अपना प्रशंशक बना लिया..
बहुत प्यारी रचना लगी है मित्र..
बहुत बहुत बधाई..
आप से और भी बहुत सी अपेक्षायें हैं..
उत्क्रष्ट रचना
वाह...

विपुल का कहना है कि -

आलोक जी आपके सारी कविताओं में एक प्रवाह होता है ,एक लय होती है|जो हमे कविता से अलग नही होने देती,बाँधे रखती है और भावों को और भी अधिक खोल कर सामने लाती है|और यह कविता भी इसका अपवाद नही है|आपने प्रेम के जो उदाहरण चुने वह भी एकदम सटीक और ह्रदय स्पर्शी है|
सुंदर रचना के लिए बधाई..

रंजू भाटिया का कहना है कि -

निर्झरों का बह निकलना, दो किनारों को मिलाना
राह रोके पत्थरों को रोज सीने से लगाना
या लपेटे साँप तन पर सुरभि देना यथा चंदन
प्रेम का पर्याय जीवन

बहुत सुंदर लिखा है दिल को छू गयी यह पंक्तियाँ
प्रेम का पर्याय जीवन ...:)

शोभा का कहना है कि -

आलोक जी
आपने सही कहा । प्रेम ही जीवन का आधार है ।
वह इस सृष्टि के कण-कण में व्याप्त है और सबको जीवन
दे रहा है । यह धरती, आकाश सब एक इसी के कारण चल
रहे हैं । आपने इस अनोखी शक्ति को पहचाना - बधाई

Nikhil का कहना है कि -

आलोक जीं,
आपकी कवितायें मेरे लिए प्रेरणादायी हैं............ना सिर्फ लय और गति कि दृष्टि से, अपितु भावों का प्रवाह भी उत्तम.........आप सचमुच युग्म परिवार के "दिनकर" हैं..............आपसे बहुत कुछ सीखना है............वाह-वाह........उम्मीद करता हूँ आपसे जल्द ही मुलाक़ात होगी..........

आपका अनन्य प्रशंसक,
निखिल आनंद गिरि...

विश्व दीपक का कहना है कि -

किसी नरपति के तनय को बेर शबरी का खिलाना
या किसी हनुमान का पर्वत उठा औषधि खिलाना

आलोक जी, दूसरी पंक्ति में आप "खिलाना" हीं लिखना चाहते थे या फिर "हीं लाना"। थोड़ा एक बार और देख लीजिएगा ,क्योंकि "खिलाना" की पुनरावृति हो रही है।
बाकी क्या कहूँ, आपके शिल्प की कसावट का तो मैं बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। भाव-पक्ष में भी आप कोई कमी नहीं छोड़ते। आपने युग्म पर दिनकर और गुप्त को जीवित रखा है। बस ऎसे हीं प्रेम-सुधा लुटाते रहें।
आपकी अगली रचना के इंतजार में-
विश्व दीपक 'तन्हा'

RAVI KANT का कहना है कि -

आलोक जी,
प्रेम की मुखर अभिव्यक्ति के लिये कोटिशः साधुवाद।
एक एक पंक्ति अद्भुत है-

हरी पत्ती की सतह पर , रजकणों को धो मिटाती
ओस की इक बूँद और उस बूँद का अभिप्राय जीवन

ये पंक्ति विशेष पसंद आयी।

गिरिराज जोशी का कहना है कि -

जितना सुन्दर प्रेम होता है उतनी ही सुन्दर अभिव्यक्ति आलोकजी..

बधाई!!!

Anupama का कहना है कि -

prem bina jeevan vyarth hai.....prem ka prarya jeevan.....sundar rachna.....bhadhaai sweekaaren

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

आपके सारे पर्याय मन हरा कर गये। बिम्ब अनूठे हैं, सुन्दर हैं और स्पर्श करते हैं। शिल्प आलंकारिक है और करीने से बुना हुआ है। आलोक आपकी प्रतिभा का कोई पर्याय नहीं..

*** राजीव रंजन प्रसाद

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

दो बार 'खिलाना' कहीं आप जल्दी में तो नहीं लिख गये! वैसे पूरी कविता में अनूठे बिम्ब हैं। आपने पुनः सिद्ध लिया कि 'प्रेम का पर्याय है जीवन'।

Anonymous का कहना है कि -

बिंब अच्छे है...
और सभी तारीफ़ कर रहे है तो कविता अच्छी होगी ही पर...
पता नही मुझे ही क्यूं लग रहा है की आप के भाव पूरी तरह से कविता मै उतर नही पा रहे....
आप जैसे महान कवि को यह कहना छोटा मुह बड़ी बात होगी पर लगा तो बोल दिया
पर इस बात मे कोई दो राय नही की बिंब सुंदर है.....

Rama का कहना है कि -

डा. रमा द्विवेदी said....

आलोक जी,

प्रेम तो शाश्वत सत्य है इसके बिना जो जीवन जीते हैं वे जीते कहां है तिल-तिल कर मरते हैं...चिर-परिचित भाव को नवीन बिंबों से सजा-संवार कर कविता में प्रेषित करने के लिए बधाई स्वीकारें ....पर ’खिलाना’ शब्द को दोहराएं नहीं ...कविता का सौन्दर्य दुगणित हो जायेगा।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)