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Tuesday, September 04, 2007

योग गैर ईसाई है !!!




मेरे जाहिल देश!!
सपेरों मदारियों के देश मेरे
आज जी भर हँस लो,
और ऐसे हँसना कि तुम्हारे ठहाके
होते रहें प्रतिध्वनित
फोड़ते रहें बहरों के कान
डकैती के कोहीनूर पर इतराने वालों पर
समय है फब्तियाँ कसने का...

पानी के छींटे मार बच्चों को सोते से जगाओ
राम दुलारे-अल्ला रक्खा
घर से निकलो, चौपाल सजाओ
मसाले के सौदागर जो राजा हो गये थे
फिर सभ्यता का शोर-शराबा, ढोल-बाजा हो गये थे
दो-सौ साल के गुलामों, व्यंग्य की मुस्कुराहट
तुम्हारे ओठों पर भली लगेगी
और “भौजी” के गालों पर गड्ढे सजेंगे
उन चौपट राजाओं की अंधेर नगरी की मोतियाबिन्द आँखों
चमक उठो, बात ही एसी है..

हँसना इस लिये जरूरी है
कि तुम्हारी सोच, समझ और ज्ञान पर कंबल डाल कर
जो ए.बी.सी.डी तुम्हें पढ़ायी गयी
और तुम जेंटलमेन बन कर इतरा रहे हो
भैय्या कालू राम!! वह ढोल फट गया है
गौर से गोरी चमड़ी के श्रेष्ठ होने की सत्यता को देखो
दीदे फाड़ देखो...
एक दुपट्टा ले कर अपनी बहन के कंधे पर धर दोगे
जिसके साथ मॉडर्न होने का दंभ भर कर
रॉक-एन-रोल करना
तुम्हारे प्यार करने का ईम्पोर्टेड तरीका है

खीसें मत निपोड़ो
गेलेलियो का ज्ञान नहीं मनोविज्ञान पढ़ो
और न समझ आये तो
सिलवर स्ट्रीट चर्च के बर्तानी पादरी
साईमन फरार की बातें सुनो
कि योग गैर-ईसाई है !!!!
राम कहूँगा तो साम्प्रदायिक हो जायेगा
पर दुहाई तो दुहाई है

फादर साईमन महोदय
आपने खोल दी आँखें हमारी
हम तो मदारियों, सपेरों के इस देश को
आपका चश्मा लगा कर जाहिल समझते थे
चश्मा उतर गया है मान्यवर
तुम्हारे चेहरे पर आँखें गड़ा कर
जी खोल कर हँसना चाहता हूँ
आओ मदारियो, सपेरो....

*** राजीव रंजन प्रसाद
2.09.2007

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25 कविताप्रेमियों का कहना है :

"राज" का कहना है कि -

राजीव जी!!!!
बहुत खुब लिखा है आपने!! सरल और व्यवहारिक भाषा का प्रयोग किया है आपने...
सही मुद्दा चुना है आपने....
मुझे आपकी रचना बहुत अच्छी लगी....
बधाई हो!!!!

*********************************८
डकैती के कोहीनूर पर इतराने वालों पर
समय है फब्तियाँ कसने का..

फिर सभ्यता का शोर-शराबा, ढ़ोल-बाजा हो गये थे
दो-सौ साल के गुलामों, व्यंग्य की मुस्कुराहट
तुम्हारे ओठों पर भली लगेगी
और “भौजी” के गालों पर गड्ढे सजेंगे
उन चौपट राजाओं की अंधेर नगरी की मोतियाबिन्द आँखों
चमक उठो, बात ही एसी है..

और तुम जेंटलमेन बन कर इतरा रहे हो
भैय्या कालू राम!! वह ढोल फट गया है

राम कहूँगा तो साम्प्रदायिक हो जायेगा
पर दुहाई तो दुहाई है

फादर साईमन महोदय
आपने खोल दी आँखें हमारी
हम तो मदारियों, सपेरों के इस देश को
आपका चश्मा लगा कर जाहिल समझते थे
चश्मा उतर गया है मान्यवर
तुम्हारे चेहरे पर आँखें गडा कर
जी खोल कर हँसना चाहता हूँ
आओ मदारियो, सपेरो....
********************

Shastri JC Philip का कहना है कि -

अरे भईया,
कह कह के थक गये
हम अपने चिट्ठे पर कि
बंद करें कम से कम
अब फिरंगियों को
आदर देना;
हिन्दुस्तानी अपनाओ,
हिन्दुस्तान के गुण गाओ.
लेकिन लोग बजाते हैं
अभी भी फिरंगी की
डुगडुगी.

कहते हैं आप कि
"फादर साईमन महोदय
आपने खोल दी आँखें हमारी."
कहता है शास्त्री
कि गुलामी है इतनी हावी
हमारे मनों पर फिरंगी की,
कि नहीं खुलेगी आंखे,
जब तक न चले हिन्दुस्तान
में पश्चिम से स्वतंत्रता
की दूसरी आंधीं

-- शास्त्री जे सी फिलिप

मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार !!

Unknown का कहना है कि -

Rajiv ji

aap ka krodh satvik hai
maza aa gaya
par lathi ghumaney ki jhonk mey zara apno ka bacha kar chaliyey

aap logon ka prayas miil ka pathar hai

bashartey aap log apney is manch par kuch badoo ko la kar un ka marg darshan letey raheyn

par han jaisa DR kumar ji ki kavita par hua aisa na karna bharata kabhi

lagey rahoo

Ramashankar का कहना है कि -

हम कब कहते हैं कि योग इसाई है. योग खालिस हिन्दुस्तानी है. लेकिन एलोपैथी के इन गुलामों को योग की धमक से इतना डर लगने लगा है कि उन्हें अपनी कमाई का मोटा हिस्सा खत्म सा दिखने लगा है. योग के कारण दवा कंपनियों को काफी नुकसान जो होने लगा है ... फिर क्या उन्होंने धर्म का सहारा लिया ... इससे ज्यादा ये कर भी क्या सकते हैं ... लेकिन इन्हें नहीं मालूम योग की गंगा में इनके ये पाप भी धुल जाएंगे और योग की गंगा बहती रहेगी इन्हें अपने में समाहित करके.

Sajeev का कहना है कि -

वाह राजीव जी कड़ी चोट करी है, मज़ा आ गया,
साईमन फरार की बातें सुनो
कि योग गैर-ईसाई है !!!!
राम कहूँगा तो साम्प्रदायिक हो जायेगा
पर दुहाई तो दुहाई है

पर राजीव एक बात कहूँगा, लय की एकरसता से बचे, कितने दिन हुए आपने "स्मृतियाँ" जैसी कोई कविता नही लिखी, कभी कभी सरल भी हो जाया कीजिये, वैसे तो आप जो भी लिखे दाद के काबिल ही होता है , और हाँ शास्त्री जी को भी युग्म पर देखना अच्छा लगा

Anonymous का कहना है कि -

वाह राजीव जी, मज़ा आ गया।
क्या खूब लिखा है आपने..


साईमन फरार की बातें सुनो
कि योग गैर-ईसाई है !!!!
राम कहूँगा तो साम्प्रदायिक हो जायेगा|

सही में हम पश्चिम बहुत ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं। कुछ लोग समझने लगे हैं कि जो पश्चिम वाले करें कहें वो सही है। और आपने ये भी सही कहा कि वो लोग हमें जाहिल समझते हैं। मैं आपका हमेशा प्रशंसक रहा हूँ और ये कविता भी मुझे अच्छी लगी।

अंत ज़बर्दस्त हुआ है...

फादर साईमन महोदय
आपने खोल दी आँखें हमारी
हम तो मदारियों, सपेरों के इस देश को
आपका चश्मा लगा कर जाहिल समझते थे
चश्मा उतर गया है मान्यवर
तुम्हारे चेहरे पर आँखें गडा कर
जी खोल कर हँसना चाहता हूँ
आओ मदारियो, सपेरो....

Pramendra Pratap Singh का कहना है कि -

बहुत ही अच्‍छी कविता लिखी है। जब कवि की कलम समयिक मुद्दो पर चले तो समझों की कवि होना सफल होगया।

बधाई

शोभा का कहना है कि -

राजीव जी
बहुत ही बढ़िया लिखा है । धर्म निरपेक्ष देश में पनपती संकीर्णता को बहुत अच्छा
उत्तर दिया है । इस कविता में कवि का चिन्तन तथा आक्रोष बहुत ही प्रभावी ढंग से
उभर कर सामने आया है । आपकी लेखनी गज़ब ढ़ाने लगी है । मुझे निम्न पंक्तियाँ
विशेष रूप से पसन्द आई-
फादर साईमन महोदय
आपने खोल दी आँखें हमारी
हम तो मदारियों, सपेरों के इस देश को
आपका चश्मा लगा कर जाहिल समझते थे
चश्मा उतर गया है मान्यवर
तुम्हारे चेहरे पर आँखें गड़ा कर
जी खोल कर हँसना चाहता हूँ
आओ मदारियो, सपेरो....
इतने प्यारे अंदाज़ से व्यंग्य किया है । हार्दिक बधाई

Unknown का कहना है कि -

राजीव जी!!!!
बहुत खुब लिखा है आपने!! सरल और व्यवहारिक भाषा का प्रयोग किया है आपने...
सही मुद्दा चुना है आपने....
मुझे आपकी रचना बहुत अच्छी लगी....
बधाई हो!!!!

Anonymous का कहना है कि -

अच्छा लिखा है।

bhuvnesh sharma का कहना है कि -

बहुत दिनों बाद कोई अच्छी कविता पढ़ी
ऐसे ही मुद्दों पर लिखते रहें

Anupama का कहना है कि -

you have choosen a very hot and correct topic and scripted it in a very sensible way....i appretiate the way you raise social things.....its a gud tight slap for them...:D

God Bless You

गीता पंडित का कहना है कि -

राजिव जी

सामयिक विषयों पर लिखना
कई बार बहुत मुश्किल होता है,
लेकिन आप जब भी लिखते हैं
तो ऐसा लगता है जैसे .....
आपके अंदर बैठा लेखक लेखनी को
बेबस कर देता है वो सब आत्मसात करने के लियें जो कुछ भी आप देखते, सुनते, पढते या अनुभव करते हैं।

इस कविता में वो स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

आपकी लेखनी को नमन

आभार......,

बधाई आपको..

स-स्नेह

गीता पण्डित

Unknown का कहना है कि -

तेग़ और नेज़े की धार से भी पैनी आपकी क़लम,राजीव जी!स्तुत्य है.
फ़ादर सायमन की सेहत बनी रहे,खुशबु जिस चमन से भी आये लेनी चाहिये ,फ़ादर बनने के कोर्स मे शायद यह नहीं है.
इतना तो वो कर ही सकते हैं कि दूसरा गाल आगे बढायें,पहले पर तो आप थप्पड़ रसीद कर चुके हैं

सस्नेह
प्रवीण पंडित

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सुंदर और बहुत सच के क़रीब लगी आपकी यह रचना राजीव जी ...बहुत खुब लिखा है ,,,बधाई

SahityaShilpi का कहना है कि -

राजीव जी!
बहुत करारा व्यंग्य किया है आपने गोरी चमड़ी वाले तथाकथित सभ्य लोगों और उनके आगे-पीछे दुम हिलाने वालों पर. यद्यपि ऐसे अनेक उदाहरण इतिहास में भरे पड़े हैं, पर इन पर कोई असर अब तक नहीं हुआ. फिर भी प्रयास जारी रहने चाहिये. इस सुंदर प्रयास के लिये बधाई!

RAVI KANT का कहना है कि -

राजीव जी,
कविता निस्संदेह अच्छी है और आपका आक्रोष भी समझ में आता है लेकिन एक छोटी सी बात कहना चाहता हुँ, उम्मीद है अन्यथा न लेंगे-

डकैती के कोहीनूर पर इतराने वालों पर
समय है फब्तियाँ कसने का...

माफ़ करें मैं सोच्ता हुँ ये समय उनपर फब्तियाँ कसने का नही बल्कि उनकी मानसिक दरिद्रता पर तरस खाने का है। कोई हम पर हँसे और बदले मे हम उसी की तरह मनुष्यता से नीचे गिरकर फब्तियाँ कसें, क्या यह उचित है? मैने कुछ ज्यादा कह दिया हो तो क्षमा-प्रार्थी हुँ।

ऋषिकेश खोडके रुह का कहना है कि -

सरल और व्यवहारिक रचना है राजीव जी , किन्तु विषय जरा विवादास्पद है और मुझे नही लगता की उन्होने कुछ गलत किया है अपने धर्म को बचाने का कोई भी और किसी का भी प्रयास सिर्फ ईसलिये निन्दनीय नही हो जाता क्योकीं वो आपके यहां की किसी विशेष गतीविधि पर रोक लगा रहे है और योग मुलत: सनातन धर्म से संबन्धित व्यक्तित्व को शीखर पर ले जाने की विधा है जो वस्तुत: अच्छी है पर सभी को स्विकार्य हो जरुरी नही |

anuradha srivastav का कहना है कि -

राजीव जी तिक्त कटाक्ष । सामयिक होने से ऒर ज्यादा प्रभावी बन गया है ।

Nikhil का कहना है कि -

राजीव जीं,
"कलम घसीटों" से आपको पढना शुरू किया था...तब से अब तक आपकी कविताओं में काफी गोते लगा चुका हूँ....आपकी राजनीतिक सोच की दृढ़ता मुझे बेहद प्रभावित करती है...आप सचमुच एक संजीदा कवि हैं....आपके बारे में ज्यादा नहीं लिखुंगा......
निखिल

विश्व दीपक का कहना है कि -

मेरे अनुसार सही मायने में कवि वही है जो समाज की सामयिक स्थिति को अपनी लेखनी से उकेर सके। मैं आपकी सारी रचनाओं में वही गुण देखता हूँ, चाहे वो आमचो बस्तर हो , कलम घसीटो हो , पधारो म्हारो देश हो , कलाम सलाम हो या फिर यही रचना हो। आप हर रचना के माध्यम से दिल को छू लेते हैं। इस रचना का भाव पसंद आया। आपने जिस तरह से विदेशी संस्कृति और अपनी सनातन संस्कृति में अंतर बताया है वह काबिले-तारीफ है।

आपकी अगली रचना का इंतजार रहेगा-
विश्व दीपक 'तन्हा'

Shishir Mittal (शिशिर मित्तल) का कहना है कि -

विषय एवम् विचार अच्छे हैं, पर इसे कविता कहने में मुझे संकोच होगा. आप जैसी प्रतिभा से मुझे इससे कहीं कहीं ज्यादा उम्मीदें हैं!

(अपनी अत्यंत सफ़ल कृति'पधारो म्हारे देस' को राजस्थान के समचार पत्र 'राजस्थान पत्रिका' में अवश्य भेजें.)

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

जब आप व्यंग्य करते हैं राजीव जी, तब अपने चरम पर होते हैं। कविता की पंक्ति दर पंक्ति इस तरह निकल कर आती है, जैसे इन्हें लिखने के लिए किसी ने कोई प्रयास न किया हो और दिल की पीड़ा सीधी शब्दों में उतर आई हो।
जब कविता को पढ़ते समय कवि का अस्तित्व न रहे, वह कविता की सबसे बड़ी सफलता है।
बधाई।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आप युग्म के ऐसे कवि हैं जो उन मुद्‌दों को पाठकों के समक्ष रखता है जोकि राष्ट्र के लिए, मानवता के लिए, आदमी के लिए अहम होते हैं। इसी बहाने उस पाठक की सोच गहरी होती है। इस बार आपक लिखने की शैली मुझे खास पसंद आई। बस इसका पॉडकास्ट कर दीजिए।

anand gupta का कहना है कि -

राजीवजी , आपकी शैली अच्छी लगी.. आपकी रचनाओं ने बेहद प्रभावित किया है

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)