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Friday, September 28, 2007

तहज़ीब और इन्सानियत जो बेच खाते हैं


तहज़ीब और इन्सानियत जो बेच खाते हैं।
महज़ वो लोग मेरे देश में नेता कहाते हैं।।

मस्ज़िद से क्या मतलब इन्हें मंदिर से क्या लेना
जो चाहो ये कह देंगे, इन्हें बस वोट दे देना
नहीं जिनका कोई ईमाँ, जो बस बातें बनाते हैं।

कहीं ये तोड़ते मस्ज़िद, कहीं झुकते मज़ारों पे
कहीं ये आग बरसाते, हिमालय के चनारों पे
हमारे घर जलाकर खुद ही फिर आँसू बहाते हैं।

कहीं पर धर्म का मुद्दा, कहीं जाति के झगड़े हैं
कहीं भाषा अलग होने से सारे काम बिगड़े हैं
जलाते बस्तियाँ बलवों में और मातम मनाते हैं।

दोष हम सबका ही है जो इनको सर चढ़ाया है
अपने स्वार्थ की खातिर इन्हें नेता बनाया है
अपनी ही गलती की सजा हम आज पाते हैं।

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Dr. Zakir Ali Rajnish का कहना है कि -

आपने नेता नामक जीव का सही वर्णन किया है। इस सटीक बयानी के लिए बधाई।

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

बेहतरीन तेवरों वाली कविता। सश्क्त और पैनी प्रस्तुति। अजय जी आपकी रचना और सोच की इस धार से परिचित हो कर प्रसन्नता हुई।

दोष हम सबका ही है जो इनको सर चढ़ाया है
अपने स्वार्थ की खातिर इन्हें नेता बनाया है
अपनी ही गलती की सजा हम आज पाते हैं।

इन विचारों की आपके कलम से और भी अपेक्षा है।

*** राजीव रंजन प्रसाद

अभिनव का कहना है कि -

बहुत सुंदर अजय जी,
नेता नामक जीव का सही वर्णन किया है आपने।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

तहज़ीब और इन्सानियत जो बेच खाते हैं।
महज़ वो लोग मेरे देश में नेता कहाते हैं।।

सही बात है यह अजय जी... अच्छी लगी आपकी यह रचना ..
बधाई

विश्व दीपक का कहना है कि -

दोष हम सबका ही है जो इनको सर चढ़ाया है
अपने स्वार्थ की खातिर इन्हें नेता बनाया है
अपनी ही गलती की सजा हम आज पाते हैं।

अजय जी,
इस बार आपकी शैली बदली-बदली-सी है, लेकिन रोचक और खूबसूरत है। देश की राजनीति पर आपका कटाक्ष पसंद आया। बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

pankaj ramendu का कहना है कि -

बहुत अच्छे अजय, सही बात अच्छे pravah के sath

शोभा का कहना है कि -

अजय जी
बहुत ही अच्छी विचारात्मक गज़ल लिखी है आपने । वास्तव में सच यही है । धर्म और संस्कृति की बात करना
जितना आसान है उतना ही मुश्किल सच्चा धार्मिक बनना है । एक सकारात्मक सोच देने के लिए बधाई ।

Nikhil का कहना है कि -

अजय जीं, इस बार "सिम्पल' लिखने के लिए बधाई....
बस, शुरुआत में कविता की लय थोड़ी दुरुस्त नहीं है....(मैं समझ सकता हूँ क्योंकि जानता हूँ आप किस यन्त्र से कविता लिखते हैं और किस समय भी...इस बार पक्का दोबारा पढ़ नही पाए होंगे...)
बाकी, कविता अच्छी है...पुराना विषय है लेकिन आपने अपनी छाप छोड़ दी है....
निखिल

RAVI KANT का कहना है कि -

अजय जी,
सही कहा आपने-
मस्ज़िद से क्या मतलब इन्हें मंदिर से क्या लेना
जो चाहो ये कह देंगे, इन्हें बस वोट दे देना
नहीं जिनका कोई ईमाँ, जो बस बातें बनाते हैं।

अंत में कारणों का विवेचन कविता को पूर्णता प्रदान करता है-
दोष हम सबका ही है जो इनको सर चढ़ाया है
अपने स्वार्थ की खातिर इन्हें नेता बनाया है
अपनी ही गलती की सजा हम आज पाते हैं।

Sajeev का कहना है कि -

मस्ज़िद से क्या मतलब इन्हें मंदिर से क्या लेना
जो चाहो ये कह देंगे, इन्हें बस वोट दे देना
आपकी यह बात आज के सन्दर्भ में कितनी सटीक है अजय जी, आपका आक्रोश हम सब का आक्रोश है इसे शब्द देने के लिए बधाई

गीता पंडित का कहना है कि -

अजय जी,


बहुत सुंदर ,

सश्क्त कविता।

मस्ज़िद से क्या मतलब इन्हें मंदिर से क्या लेना
जो चाहो ये कह देंगे, इन्हें बस वोट दे देना

सही बात है...
बधाई।

दिवाकर मणि का कहना है कि -

मान्यवर !!
आपकी लेखनी ने "परजीवी" नेताओं को सच्ची श्रद्धांजलि दी है.

anuradha srivastav का कहना है कि -

अजय जी देर से टिप्पणी के लिये क्षमा चाहती हूँ। दिनोंदिन आपकी भाषा परिष्कृत हो रही है । नेताऒं का खाका सही खिंचा है आपने।

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मूल कारण समझना और समाधान प्रस्तुत करना कविताओं में कम दीखता है। इस बार संतुष्टि हुई-

दोष हम सबका ही है जो इनको सर चढ़ाया है
अपने स्वार्थ की खातिर इन्हें नेता बनाया है
अपनी ही गलती की सजा हम आज पाते हैं।

Mohinder56 का कहना है कि -

नेताओं की जात को खूब पहचाना आपने..ये सब हमारे वोट रूपी चारे पर पल रहे भयानक जीव हैं
सुन्दर रचना के लिये बधाई

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