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Friday, November 16, 2007

गैलीलियो


उन दिनों तुम
छोटे-छोटे मोजे बुना करती थीं
और मैं ढूँढ़ता फिरता था एक पालना।

तब हम दोनों की एक ही चिंता थी
कि कैसे यह गोल-मटोल सी प्यारी सी दुनिया
हँसती रहे हमेशा।

मैं जाता था जंगल
लकड़ियाँ काटने
लेकिन कुल्हाड़ी नहीं चला पाता था पेड़ों पर
नीचे गिरी सूखी टहनियाँ बटोर कर
गुनगुनाता हुआ लौट आता था
उन दिनों

तुम रसोई जाती थी
खाना बनाने
लेकिन तुम प्याज तो क्या
एक आलू भी नहीं काट पाती थीं
एक कातर तरलता तुम्हारी आंखों में तैरती थी
"कितना दर्द होता होगा आलू को कटते समय"
तुम पूछती थी

उन दिनों हमें सपने नहीं आते थे
(क्या उन दिनों सारे सपने देखते रहते थे हमारे सपने
और उन्हें आने की फुर्सत नहीं मिलती थी)

उन दिनों जब हम करते थे प्यार
यह प्यारी सी गोल-मटोल सी दुनिया
हमारी गोद में कुनमुनाती रहती थी
कभी-कभी गूँ-गूँ करके कुछ कहती भी थी
जिसे सिर्फ हम ही समझ पाते थे

दूर आकाश में तारे हमें देख कर
बतियाते थे उन दिनों
कहते थे
"जब कोई शख्स करता है प्यार
तो उसे यह दुनिया गोल-मटोल ही दिखाई देती है
और यह कतई ज़रूरी नहीं
कि उस शख्स का नाम गैलीलियो ही हो"

अवनीश गौतम
रचना काल- फरवरी 2000

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14 कविताप्रेमियों का कहना है :

Unknown का कहना है कि -

अवनीश जी

अभी जैसे ही युग्म पर आया बिना नाम देखे बस पढ़ता ही चला गया लगा जैसे वर्षों बाद कविता पढ़ी हो..
स्तब्ध .....

विश्व दीपक का कहना है कि -

अवनीश जी,
बढिया रचना है। गैलीलियो को नए रूप में देखना अच्छा लगा। इसे पढकर मैं भी आपका प्रशंसक हो गया। बस....कभी-कभार इस नाचीज़ की भी रचनाओं पर गौर कर देंगे... कुछ लिख लेता हूँ मैं भी..

-विश्व दीपक 'तन्हा'

रंजू भाटिया का कहना है कि -

आपकी यह रचना मुझे बहुत पसंद आई अवनीश जी ,नए रंग और नए भाव से सजी है आपकी यह कविता
अच्छा लगा इसको पढ़ना !!

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

अवनीश जी,

बहुत प्यारी कविता है.. स्नेह से लसित प्यार से पल्लवित शब्द संयोजन अच्छा बन पडा है..

शोभा का कहना है कि -

अवनीश जी
भावनाओं की प्रबलता को बहुत ही सुन्दर रूप में व्यक्त किया है ।
उन दिनों जब हम करते थे प्यार
यह प्यारी सी गोल-मटोल सी दुनिया
हमारी गोद में कुनमुनाती रहती थी
कभी-कभी गूँ-गूँ करके कुछ कहती भी थी
जिसे सिर्फ हम ही समझ पाते थे
बहुत सुन्दर बिम्ब बन पड़े हैं । बधाई

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

बहुत सुन्दर!!

SahityaShilpi का कहना है कि -

वाह अवनीश जी! बहुत ही सुंदर कविता! शब्द और भाव दोनों ही अनुपम! बहुत बहुत आभार इसे पढ़ाने के लिये!

Sajeev का कहना है कि -

दूर आकाश में तारे हमें देख कर
बतियाते थे उन दिनों
कहते थे
"जब कोई शख्स करता है प्यार
तो उसे यह दुनिया गोल-मटोल ही दिखाई देती है
और यह कतई ज़रूरी नहीं
कि उस शख्स का नाम गैलीलियो ही हो"
अविनाश जी सही मायनों में एक उत्कृष्ट कविता, जो अपने प्रवाह में कहीं दूर बहा ले जाती है, और शीर्षक और गजब का है, बहुत ही सुंदर, सहेज कर रखने लायक बहुत बहुत बधाई

"राज" का कहना है कि -

गौतम जी!!
बहुत ही सरल भाषा क प्रयोग करके अच्छी रचना की है......बधाई हो!!!
*************************
उन दिनों हमें सपने नहीं आते थे
(क्या उन दिनों सारे सपने देखते रहते थे हमारे सपने
और उन्हें आने की फुर्सत नहीं मिलती थी)
********************************
अच्छी लगी!!

RAVI KANT का कहना है कि -

अवनीश जी,
ऐसी प्यारी रचना पढ़वाने के लिए साधुवाद।

दूर आकाश में तारे हमें देख कर
बतियाते थे उन दिनों
कहते थे
"जब कोई शख्स करता है प्यार
तो उसे यह दुनिया गोल-मटोल ही दिखाई देती है
और यह कतई ज़रूरी नहीं
कि उस शख्स का नाम गैलीलियो ही हो"

दिवाकर मणि का कहना है कि -

एक उत्कृष्ट भावप्रधान रचना से प्रत्यक्ष कराने हेतु साधुवाद !!
"जब कोई शख्स करता है प्यार
तो उसे यह दुनिया गोल-मटोल ही दिखाई देती है
और यह कतई ज़रूरी नहीं
कि उस शख्स का नाम गैलीलियो ही हो"

सुन्दरम् ! अतिसुन्दरम् !!

Avanish Gautam का कहना है कि -

..सभी पाठकों का हार्दिक आभार. तन्हा जी मैं जानता हूँ आप लिखते हैं सिर्फ लिखतें ही नहीं अच्छा लिखतें हैं. मै हमेशा लगभग सभी को पढता रहता हूँ. टिप्पणी हर बार नहीं कर पाता. अब आपने हंटर मार दिया है तो ज्यादा सतर्क रहूगाँ और ज्यादा से दिप्पणियाँ देने की कोशिश करूगा.

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

अवनीश जी,

मुझे यह कविता बहुत पसंद आई है। इसमें कविता जैसी ढेरों बाते हैं।

Anonymous का कहना है कि -

आए हाय, क्या खूब रची है,अद्भुत, इस प्यारी सी कायनात के सृजन की नाजुक अवस्था का गलीलियो के टेलीस्कोप से जो दर्शन आपने कराया,मैं तो मदहोश सा पढता गया.
बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत.....................-११११११०
ही प्यारी कविता
कितनी बधाई दूँ
खैर आप समेटने की कोशिस कीजिए
आलोक सिंह "साहिल"

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