फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, December 07, 2007

नौ क्षणिकाएँ


वर्तुल

अंत कहीं नही है,
जो शुरुवात है,
अंत का छोर थामे है,
और जो अंत दिखता है,
वही शुरुवात है,
जीवन एक कविता समान है-
वर्तुल ।


ख्वाब

नींद के टूटे दर्पण से,
कुछ ख्वाब चटक कर,
बिखर गए थे कभी,
चुभते हैं अब भी आँखों में,
वो कांच के दाने ।



शाख

कांप रही है शाख,
अभी अभी कोई पंछी उडा होगा,
कांप रहा है एक दर्द सीने में,
किसी ने दुखती रग पर,
हाथ धरा होगा ।



किरण

सूरज लाया है एक नयी सुबह,
नयी किरणें जमीं पर उतरी मगर,
वो किरण, जो कल शाम
धरती से उठी थी -
वो किस खला में खो गयी ?


सफर

क्या लिखूं ?
अपने सफर की दास्ताँ,
अपने ही दिल की अदालत में,
अपने ही मुक़दमे की,
कैसे करूं पैरवी,
या मुंसिफ बनकर,
कोई फैसला लिखूं
अपने ही नाम...


शगुन

कब तलक भटकता रहूंगा
इन अंधेरों में मैं,
कब सहर होगी - कुछ पता नही,
शायद कोई शगुन गलत था,
जब सफर शुरू किया था ।


इमारत

खोखली है बुँलन्दियाँ,
दिखावे की सब रौनक है,
ये वो इमारत है,
जिसकी नींव तले
कई ख्वाब दफ़न हैं ।



पेंडुलम

जन्म और मृत्यु के बीच,
झूल रहा हूँ,
पेंडुलम की तरह
जाने कितनी सदियों से-
कुछ भी याद नही,
सब भूल रहा हूँ ।



दिनचर्या

आज भी पत्थर हैं ऑंखें,
आज भी भिंचे हैं हाथ,
आज भी दिन था खोखला,
आज भी बाँझ है रात,
आज भी बांधी थी होश की गिरह,
एक एहेद के साथ,
आज भी तोड़ रहा हूँ - एक गुनाह पर ।

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

19 कविताप्रेमियों का कहना है :

मनीष वंदेमातरम् का कहना है कि -

सजीव जी!

कमाल की क्षणिकाएं हैं।
सब की सब महासागर की तरह गंभीर और गहरी पर शांत।
कब तलक भटकता रहूंगा
इन अंधेरों में मैं,
कब सहर होगी - कुछ पता नही,
शायद कोई शगुन गलत था,
जब सफर शुरू किया था ।


खोखली है बुँलन्दियाँ,
दिखावे की सब रौनक है,
ये वो इमारत है,
जिसकी नींव तले
कई ख्वाब दफ़न हैं ।

Anupama का कहना है कि -

नींद के टूटे दर्पण से,
कुछ ख्वाब चटक कर,
बिखर गए थे कभी,
चुभते हैं अब भी आँखों में,
वो कांच के दाने ।

सूरज लाया है एक नयी सुबह,
नयी किरणें जमीं पर उतरी मगर,
वो किरण, जो कल शाम
धरती से उठी थी -
वो किस खला में खो गयी ?


खोखली है बुँलन्दियाँ,
दिखावे की सब रौनक है,
ये वो इमारत है,
जिसकी नींव तले
कई ख्वाब दफ़न हैं ।

Sanjeevji....kya baat hai...bahut nazaakat hai aapki lekhni me.....best wishes

विश्व दीपक का कहना है कि -

कांप रहा है एक दर्द सीने में,
किसी ने दुखती रग पर,
हाथ धरा होगा ।

वो किरण, जो कल शाम
धरती से उठी थी -
वो किस खला में खो गयी ?

अपने ही मुक़दमे की,
कैसे करूं पैरवी,
या मुंसिफ बनकर,
कोई फैसला लिखूं

ये वो इमारत है,
जिसकी नींव तले
कई ख्वाब दफ़न हैं ।

आज भी पत्थर हैं ऑंखें,
आज भी भिंचे हैं हाथ,
आज भी दिन था खोखला,
आज भी बाँझ है रात,
आज भी बांधी थी होश की गिरह,
एक एहेद के साथ,
आज भी तोड़ रहा हूँ - एक गुनाह पर ।

सजीव जी,
आप भी इस क्षेत्र में घुस गएँ। मतलब कि हमारा एक नया प्रतिद्वंदी आ गया है :)
बहुत हीं सुंदर एवं उम्दा क्षणिकाएँ हैं। निहित अर्थ गूढ एवं शब्दावली संतुलित हैं, इसलिए खासी पसंद आई।
बधाई स्वीकारें।

रंजू भाटिया का कहना है कि -

सजीव जी आप भी आ गए इस विधा में और आए भी तो इतने धमाके के साथ .बहुत ही सुंदर हर क्षणिका:) ख्वाब, शाख,किरण बहुत ही ज्यादा पसंद आई !!बधाई !!

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

और जो अंत दिखता है,
वही शुरुवात है,
जीवन एक कविता समान है-
वर्तुल ।

चुभते हैं अब भी आँखों में,
वो कांच के दाने ।

कांप रहा है एक दर्द सीने में,
किसी ने दुखती रग पर,
हाथ धरा होगा ।

वो किरण, जो कल शाम
धरती से उठी थी -
वो किस खला में खो गयी ?

या मुंसिफ बनकर,
कोई फैसला लिखूं
अपने ही नाम...

शायद कोई शगुन गलत था,
जब सफर शुरू किया था ।

दिखावे की सब रौनक है,
ये वो इमारत है,
जिसकी नींव तले
कई ख्वाब दफ़न हैं

जाने कितनी सदियों से-
कुछ भी याद नही,
सब भूल रहा हूँ ।

आज भी बांधी थी होश की गिरह,
एक एहेद के साथ,
आज भी तोड़ रहा हूँ - एक गुनाह पर ।

सजीव जी बेहतरीन क्षणिकायें।

*** राजीव रंजन प्रसाद

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

हर क्षणिकायें। बहुत सुंदर है |
बधाई
अवनीश तिवारी

Anonymous का कहना है कि -

सारथी जी आपकी क्षणिकाएँ फकत क्षणिक प्रभाव उत्पन्न करने वाली ही नहीं वरन दीर्घकालिक प्रभाव वाली रहीं.विशेषकर ख्वाब और इमारत वाले प्रसंग में टू आपने कहर ही धा दिया साहब.
अत्यन्त प्यारी रचना.
अलोक सिंह "साहिल

Avanish Gautam का कहना है कि -

सजीव भाई बधाईयाँ स्वीकारें ये भी वर्तुल हैं!

शोभा का कहना है कि -

सजीव जी
भुत सुंदर लिखा है.
कांप रही है शाख,
अभी अभी कोई पंछी उडा होगा,
कांप रहा है एक दर्द सीने में,
किसी ने दुखती रग पर,
हाथ धरा होगा ।
बधाई

पंकज सुबीर का कहना है कि -

अच्‍छी क्ष्‍णिकाएं हैं सजीव जी आपके भाव अच्‍छी तरह से व्‍यक्‍त हो गए हैं । क्षणिकाएं हैं या मानो खंडित जीवन का कोलाज़ है । हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्‍हें हम दर्द के सुर में गाते हैं । अपनी पीड़ा को शब्‍दों में ढाल देना कठिन होता है पर अप सफल रहे हैं । कुछ क्षणिकाएं विचारों के दोहराव का शिकार हो रही हैं पर उसमें हम कुछ ज्‍यादा इसलिये नहीं कर सकते कि हमसे पहले वालों ने इतना लिख दिया है कि हम दोहराव से बच नहीं सकते । शगुन और किरण अच्‍छी हैं । पुन: बधाई

Manish Kumar का कहना है कि -

शगुन और सफ़र बहुत अच्छे लगे। बधाई..

Shastri JC Philip का कहना है कि -

प्रिय सजीव,

इन क्षणिकाओं को पढ कर मन बहुत प्रसन्न हो गया. अपने मन की भावनाओं को एक हजार शब्दों में कोई भी व्यक्त कर सकता है, लेकिन उसी भावना को सौ शब्दों में सिर्फ एक कवि लिख सकता है.

लेकिन यदि उसी भावना को 40 से कम शब्दों में लिखने को कहा जाये तो अच्छे से अच्छे कवि का भी पसीना छूट जाये. कारण यह है कि जहां कविता में कई शब्द प्रतीक का कार्य करते हैं वहां क्षणिकाओं में शब्द प्रतीकों की एक बडी पृष्ठभूमि तय्यार करते हैं. यह बहुत कठिन कार्य हैं एवं सिर्फ बिरले ही लोग यह कार्य कर पाते हैं.

क्षणिका की रचना की कोशिश में रत अधिकतर रचनाकार क्षणिका के ही समान चार छ: पंक्तियों के बाद इस क्षेत्र से कूच करना बेहतर समझते हैं. लेकिन आपका प्रवेश देखकर मुझे बहुत खुशी है.

आपका पहला प्रयास बहुत सफल रहा. आगे भी इस विधा में जरूर लिखते रहें -- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??

Nikhil का कहना है कि -

"कब तलक भटकता रहूंगा
इन अंधेरों में मैं,
कब सहर होगी - कुछ पता नही,
शायद कोई शगुन गलत था,
जब सफर शुरू किया था ।"

"कांप रही है शाख,
अभी अभी कोई पंछी उडा होगा,
कांप रहा है एक दर्द सीने में,
किसी ने दुखती रग पर,
हाथ धरा होगा ।"

"खोखली है बुँलन्दियाँ,
दिखावे की सब रौनक है,
ये वो इमारत है,
जिसकी नींव तले
कई ख्वाब दफ़न हैं ।"

मैं बिना कवि का नाम पढे अनुमान लगा रहा था,,कवितायेँ पढ़ कर अनुमान लगा रहा था.....एक-दो पंक्तियों के बाद ही मेरा अनुमान सच निकला......
यही आपकी खासियत है....
अब और क्या कहूँ....

निखिल आनंद गिरि

shivani का कहना है कि -

सजीव जी,आपने तो हर क्षेत्र में महारत हासिल कर ली है!ये क्षणिकाएँ तो कमाल की हैं!आप शब्दों के जादूगर हैं!आपकी कलम से शब्द नहीं जिंदगी का तजुर्बा लिखा जाता है!साधारण भाषा शैली में लिखी ये क्षणिकाएँ अंतर्मन छू गयी!आपका ये प्रथम प्रयास प्रशंसनीय है!हमारी और से ढेर सारी बधाई स्वीकार करें!

Anonymous का कहना है कि -

-"वर्तुल" अपने आप मै बहुत गहरे लिए हुए है..
वर्तुल = वृत्ताकार शब्द चुना गया है.. बहुत सोच समझ कर..
(की किसी को जल्दी से समझ न आये - मुझे ऐसा लगा )
-उपमा अच्छी दी हुई है.. जीवन कविता और वर्तुल.. कारन स्वतः समझ आ जाता है
ख्वाब
- ये भी अपने आप मै काफी गहराई लिए हुए है
- यहाँ भी अच्छी उपमा दी हुई है.. ख्वाब= नींद का टूटा दर्पण
- "बिखर गए थे कभी,
चुभते हैं अब भी आँखों में,
वो कांच के दाने ।" नकारात्मकता दर्शाता है.. ख्वाब तो हसीब भी होते है..
शाख
-े शाख से पंछियों का उड़ना को इस तरह समझा है जैसे दुखती नस पर किसी ने हाथ रखा हो..
अच्छी कल्पना है.. सचमुच पेड़ की शाख पर पंछियों का घोंसला और चाह्चाह्त बताती है की पेड़ अभी
पूरे शबाब मै है..

सारी क्षणिकाएँ" अच्छी है पर सब से अच्छी है
"खोखली है बुँलन्दियाँ,
दिखावे की सब रौनक है,
ये वो इमारत है,
जिसकी नींव तले
कई ख्वाब दफ़न हैं ।"

और अंत मै मैंने एक बात गोर की है..आपके लगभग सारे क्रिश्निकाओ मै उदासी छलक रही है, कोई ख़ास वजह?
और क्षनिकाओ का मतलब मै अभी समझने की कोशिश कर रहा हू...
सादर
शैलेश चन्द्र जम्लोकी

अभिषेक पाटनी का कहना है कि -

वो किरण, जो कल शाम
धरती से उठी थी -
वो किस खला में खो गयी ?

अपने ही मुक़दमे की,
कैसे करूं पैरवी,
या मुंसिफ बनकर,
कोई फैसला लिखूं
ye kuchh aisee pantiyan hai jinhe baar baar pada phir bhi man nahi bhara....laga ise meri kalam se nikalna chahiye tha...kuchh anya bhi dil ko chu gayee par in dono ka jawab nahi....kuchh kashannikayein aur kam shabdon me bhi utani hi maarak rahatee par shayad gaurav jyada sahi bata paaye....pahala prayaas hai to Qabile taariff hai bhai..hardik badhai

अभिषेक पाटनी का कहना है कि -

वो किरण, जो कल शाम
धरती से उठी थी -
वो किस खला में खो गयी ?

अपने ही मुक़दमे की,
कैसे करूं पैरवी,
या मुंसिफ बनकर,
कोई फैसला लिखूं
ye kuchh aisee pantiyan hai jinhe baar baar pada phir bhi man nahi bhara....laga ise meri kalam se nikalna chahiye tha...kuchh anya bhi dil ko chu gayee par in dono ka jawab nahi....kuchh kashannikayein aur kam shabdon me bhi utani hi maarak rahatee par shayad gaurav jyada sahi bata paaye....pahala prayaas hai to Qabile taariff hai bhai..hardik badhai

Alpana Verma का कहना है कि -

१-वर्तुल ---बहुत सुंदर और सही कथन और उपमा है!वाह!
२--ख्वाब-- साधारण सी लगी.
३-शाख--बहुत अच्छी है! भावपुरण है..मन को हिला गयी-
४-किरण--ठीक है -एक नाराजगी सी झलक रही है!
5-सफर--उत्तम! वाह! क्या बात कह गए आप भी! जवाब नहीं!
६-शगुन--ठीक ही है-उदासी झलक रही है.
७-इमारत--बहुत कुछ कह गयी आप की यह क्षणिका-
८-पेंडुलम --बहुत खूब!
९---दिनचर्या---बहुत अच्छी बन पड़ी है--बधाई सजीव जी -
--

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

कुछ क्षणिकाएँ बेहद खूबसूरत हैं-

ख़वाब, शाख, किरण, सफर, इमारत ॰॰॰॰ शेष नई तरीके से बात नहीं रखतीं।

बुँलन्दियाँ= बुलंदियाँ, या बुलन्दियाँ

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)