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Tuesday, December 18, 2007

मुट्ठी में एक तमंचा है अंकल..




नन्हे-मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है?
मुट्ठी में एक तमंचा है अंकल
मैंने इससे ही कत्ल किया है!!

सुनता हूँ, गाना नये दौर का है
सागर से दरिया पहाड़ों की ओर
बहता चला है, कहता चला है
पश्चिम से सूरज निकलना तय है
बिल्ली ने अपने गले ही में घंटी
बाँधी है और नाचती है छमा-छम
चूहा नशे में वहीं झूमता है।
जंगल का भी एक कानून है
शेर जियेगा, मारेगा सांभर
फिर वो दहाड़ेगा, राजा है आखिर?
लेकिन नहीं लाज आती है आदम
जो तुम जानवर बन के कॉलर उछालो
बनाते हो जो भेड़िया अपनी पीढ़ी
अभी भी समय है, संभल लो संभालो।

बच्चे नहीं बीज पैदा करो तुम
सही खाद पानी उन्हें चाहिये फिर
पानी में जलकुम्भियाँ ही उगेंगी
नहीं तो नीम की शाख ही पर
करेला चढ़ेगा, कडुवा बकेगा
ये वो दौर है जिसमें है सोच सूखी
पैसा बहुत, आत्मा किंतु भूखी
हम बन के इक डायनासोर सारे
तरक्की के बम पर बैठे हुए हैं
जडें कट गयीं, फिर भी एठे हुए हैं
मगर फूल गुलदान में एक दिन के।
तूफान ही में उखड़ते हैं बरगद
जो बचते हैं हम उनको कहते हैं तिनके।

तो आओ मेरे देश बच्चे बचाओ
उन्हें चाहिये प्यार और वो किताबें
जिनपर कि मैकाले का शाप ना हो
ये सच है कि ईस्कूल हैं अब दुकानें
“गुरूर-ब्रम्हा” के बीते जमाने
शिक्षा बराबर हो अधिकार हो
किस लिये बाल-बच्चों में दीवार हो
बंद कमरे न दो, दो खुला आंगन
झकझोर दो, गर न चेते है शासन
बादल न होंगे न बरसेगा सावन
तो एक आग सागर जला कर सवेरा
लायेगी, पूरा यकीं गर बढ़ोगे
वरना जो कीचड़ से खुश हो, कमल है
पानी घटेगा तो केवल सड़ोगे
मोबाइलों को, एसी बसों को
किनारे करो, ऐसा माहौल दो
घर से बुनियाद पाये जो बच्चा बढ़े
विद्या के मंदिर में दीपक जलें

*** राजीव रंजन प्रसाद
16.12.2007

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18 कविताप्रेमियों का कहना है :

Harihar का कहना है कि -

बहुत बढिया! मन की बात कह दी
राजीवजी

seema gupta का कहना है कि -

नन्हे-मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है?
मुट्ठी में एक तमंचा है अंकल
मैंने इससे ही कत्ल किया है!!
"एक कड़वा सच और , आज के माहोल को बयान करती एक सुंदर रचना"
regards

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

राजीव जी,

आपकी शैली ... क्या कहूँ अब..

इतने पैने शर किस तुणीर से निकलते हो
पास से गुजर जाने मात्र से बन्दा घायल..
खुद को घायल कहें या तेरे शब्दों के कायल..

बहुत बहुत बधाई

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

सारी बातें सच्ची हैं राजीव जी

मीनाक्षी का कहना है कि -

सच्ची बातें , कड़वी बातें..
तमाचे सी लगी...लेकिन सही है शायद कविता पढ़कर हम जाग जाएँ और अपने बच्चों को मज़बूत बुनियाद... अच्छे संस्कार दे सकें..

रंजू भाटिया का कहना है कि -

नन्हे-मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है?
मुट्ठी में एक तमंचा है अंकल
मैंने इससे ही कत्ल किया है!!

सच है यह आज का ..बुनियाद हिलती सी नज़र आती है कभी कभी भविष्य की ..अच्छा लिखा है आपने राजीव जी !!

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

राजीव जी,
आपकी सामाजिक चिंता की प्रशंसा करता हूँ लेकिन आप इस रचना को और बेहतर लिख सकते थे।

शोभा का कहना है कि -

आओ मेरे देश बच्चे बचाओ
उन्हें चाहिये प्यार और वो किताबें
जिनपर कि मैकाले का शाप ना हो
ये सच है कि ईस्कूल हैं अब दुकानें
“गुरूर-ब्रम्हा” के बीते जमाने
शिक्षा बराबर हो अधिकार हो
किस लिये बाल-बच्चों में दीवार हो
बंद कमरे न दो, दो खुला आंगन
झकझोर दो, गर न चेते है शासन
बादल न होंगे न बरसेगा सावन
तो एक आग सागर जला कर सवेरा
लायेगी, पूरा यकीं गर बढ़ोगे
वरना जो कीचड़ से खुश हो, कमल है
पानी घटेगा तो केवल सड़ोगे
मोबाइलों को, एसी बसों को
किनारे करो, ऐसा माहौल दो
घर से बुनियाद पाये जो बच्चा बढ़े
विद्या के मंदिर में दीपक जलें
राजीव जी बहुत सुंदर भाव भरी कविता लिखी है. इतना सामयिक और सुंदर लिखने के लिए बधाई

Anonymous का कहना है कि -

राजीव जी अद्भुत! मानो आपने मेरे दिल में छिपी बात को उजागर कर दिया.
बहुत ही प्यारी रचना. आपके प्यारे प्यारे शब्दों का टू मैं तसलीमा जी के समय से ही दीवाना रहा हूँ.
आज फ़िर आपने अपने शब्द पाश में हमें जकड लिया.
बहुत बहुत शुभकामनाएं.
आलोक सिंह "साहिल"

Sajeev का कहना है कि -

ये वो दौर है जिसमें है सोच सूखी
पैसा बहुत, आत्मा किंतु भूखी
हम बन के इक डायनासोर सारे
तरक्की के बम पर बैठे हुए हैं
जडें कट गयीं, फिर भी एठे हुए हैं
राजीव जी चिता जायज है...... शयद हम बाल उधान के मध्यम से कोई बदलाव कर पायें

Alpana Verma का कहना है कि -

इस कविता को पढ़ कर कुछ दिनों पहले की ऐसी एक ख़बर को याद आ गयी और मन दुखी हो गया.
सामयिक कविता है और प्रस्तुति भी अच्छी है.
जल्द ही हम सब को चेत जाना चाहिये ताकि भविष्य में कोई बच्चा फ़िर यह न कह सके जो कविता में कह रहा है
'मुट्ठी में एक तमंचा है अंकल
मैंने इससे ही कत्ल किया है!!'
-शुभकामनाएं.

Unknown का कहना है कि -

राजीव जी
त्वरित और सामयिक प्रस्तुतीकरण अनोखा शिल्प ........
शुभकामना

Avanish Gautam का कहना है कि -

राजीव जी
हमें इस बारे में सोचना ही चाहिये.

Unknown का कहना है कि -

राजीव जी आपकी कविता मे वो बात है जो एक कड़वे सच को सामने लाती है
आपकी ये कविता मुझे बहुत पसंद आई

RAVI KANT का कहना है कि -

राजीव जी,
आपकी पीड़ा में सहभागी हुँ।

Mohinder56 का कहना है कि -

राजीव जी,
सामायिक प्रसंग पर एक और सशक्त रचना है आप की. बच्चों में यह मानसिकता या तो अत्याधिक असुरक्षित होने की स्थिती में आती है अथवा फ़िर जब उन्हें लगता है कि वही सर्वश्रेष्ठ हैं और उसे जग जाहिर करना चाहते हैं... दोनों ही विसफ़ोटक हैं और जिम्मेदार समाज या हमारा पालन पोषण...

सुन्दर रचना के लिये बधाई

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

इस कविता की सभी पंक्तियाँ महत्वपूर्ण है। पिछले ५-६ महीनों से आप कविता में सीधी बात की शैली अपना रहे हैं और मुझे लगता है कि यही आपकी मौलिक शैली बन गई है। हमारी शुभकामना है कि साहित्य में नई शैली के रूप में प्रतिष्ठित हो।

विश्व दीपक का कहना है कि -

लेकिन नहीं लाज आती है आदम
जो तुम जानवर बन के कॉलर उछालो

जडें कट गयीं, फिर भी एठे हुए हैं
मगर फूल गुलदान में एक दिन के।
तूफान ही में उखड़ते हैं बरगद
जो बचते हैं हम उनको कहते हैं तिनके।

जिनपर कि मैकाले का शाप ना हो

किस लिये बाल-बच्चों में दीवार हो
बंद कमरे न दो, दो खुला आंगन
झकझोर दो, गर न चेते है शासन

राजीव जी,
एक अनुकरणीय रचना के लिए बधाई स्वीकारें। आपकी शैली संभाले जाने योग्य है। इसे बनाए रखें।

-तन्हा।

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