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Wednesday, December 19, 2007

मनुज मेहता का कमरा


प्रतियोगिता से हमें हर रंग की कविताएँ मिलती हैं। माह भर में स्थाई कवियों और प्रतिभागियों की कविताओं को मिलाकर हर विविध भाव अभिव्यक्त कर पाते हैं। आज हम आपके लिए लेकर आये हैं प्रतियोगिता की चौदहवीं प्रस्तुति। इस कविता के रचनाकार मनुज मेहता पेशे से सफल फ़ोटोग्राफर हैं।

पुरस्कृत कविता- मेरा कमरा

मेरी ज़िन्दगी के मकान का एक वीरान कमरा
जिसका दरवाज़ा खुलता है कुछ यादों की तरफ
कोने की वो खिड़की
जो कितनी पसंद थी तुमको
और उस पार अपने हाथों से सजाये
तुम्हारे ख्वाबों के पर्दे
आज भी टँगें हैं वहीं
और वो आले में पड़ी किताबें
जिनका हर सफ़हा पहचानता था तुमको
आज शब्दों में उलझा सा पड़ा है
मेज़ पर तुम्हारी वो तस्वीर
याद है तुमको वो दिन
जब मेरी ऐश-ट्रे को हटा कर
अपनी तस्वीर के लिये जगह बनाई थी तुमने
और कोने का वो मंदिर
जो अपने हाथों से सजाया था तुमने
तुम्हारी जलाई जोत अब तक जल रही है उसमें
सब कुछ आज भी वैसा है
जैसा कभी चाहा था तुमने!

जजों की दृष्टि-


प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ७॰१, ६
औसत अंक- ६॰५५
स्थान- सातवाँ


द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ६॰५, ७॰१, ६॰३, ६॰५५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰६१२५
स्थान- तेरहवाँ


तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी- जावेद अख़्तर की नज़्म “वो कमरा याद आता है” से संक्रमित
मौलिकता: ४/० कथ्य: ३/१ शिल्प: ३/२॰४
कुल- ३॰४
स्थान- चौदहवाँ


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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

मनुज जी बहुत ही अच्छी प्रस्तुति रही आपकी.आपका कमरा खासा प्यारा लगा.विशेषकर आपके कमरे का ये पक्ष-
और उस पर अपने हाथों से सजाये
तुम्हारे ख्वाबों के पर्दे
आज भी टँगें हैं वहीं
और वो आले में पड़ी किताबें
जिनका हर सफ़हा पहचानता था तुमको
बहुत बहुत shubhkamnayein
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

अच्छा प्रदर्शन है.
रचना सरल और सुंदर बनी है.

बधाई
अवनीश तिवारी

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

मनुज जी,
मुझे आपकी पंक्तिया बहुत पसंद आई क्यों की,
१) आप अपने मकसद मैं कामयाब हुए हैं. वो भी बहुत सरल शब्दों मैं .. बहुत सुंदर..
२) आपने अपनी कल्पना को बहुत अच्छा तराशा है...
३) इस बात जो मुझे अच्छी लगी.. की किसी की कमी किस तरह महसूस होती है... क्या क्या इंसान सोचता है,, मैं आपकी बातों से बिल्कुल सहमत हूँ
४) आपने काव्य के हर रूप को बहुत सुंदर चित्रित किया है जैसे .. रूपक और उपमा अलंकारों का बहुत सही प्रयोग जैसे :-
" तुम्हारे ख्वाबों के पर्दे" और " ज़िन्दगी के मकान" वाह!!!
५) मुझे ये सीख मिली की अपनी मंजिल पर अपनों का साथ न हो टू . सारी चीज़ें बेकार लगती है...

बधाई हो
सदर
शैलेश

शोभा का कहना है कि -

मनुज जी
कविता कोमल भावनाओं से भरी है। दिल को छू लेने वाली है ।
तुम्हारे ख्वाबों के पर्दे
आज भी टँगें हैं वहीं
और वो आले में पड़ी किताबें
जिनका हर सफ़हा पहचानता था तुमको
आज शब्दों में उलझा सा पड़ा है
मेज़ पर तुम्हारी वो तस्वीर
एक सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई ।

RAVI KANT का कहना है कि -

मनुज जी,
मर्मस्पर्शी रचना है। बिम्ब सुन्दर बन पड़े हैं।

और कोने का वो मंदिर
जो अपने हाथों से सजाया था तुमने
तुम्हारी जलाई जोत अब तक जल रही है उसमें

बहुत खूब!!

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

मनुज जी,

आपकी रचना तो अच्छी और गहरी है ही लेकिन आपकी दूसरी कला-विधा यानी कि आपके खींचे फोटोग्राफ का इस कविता के साथ इस्तेमाल होता तो और आकर्षक प्रस्तुति होती।

*** राजीव रंजन प्रसाद

Unknown का कहना है कि -

मनुज जी
मुझे बहुत पसंद आई है यह कविता पता नहीं क्यों पर शायद लगता है की यह मेरी अपनी सी बात कर रही है ......

anuradha srivastav का कहना है कि -

मनुज जी यादों के भीने से झरोकें सी आपकी कविता पसन्द आई। बहुत पहले कुछ इसी तरह की एक कविता गौरव ने भी लिखी थी इसी मंच पर।

Alpana Verma का कहना है कि -

**भावनात्मक प्रस्तुति ,
शब्द चयन सुंदर.
खूबसूरत अभिव्यक्ति.
एक अच्छी कविता.
**'ख्वाबों के पर्दे'
और
'किताबें
जिनका हर सफ़हा पहचानता था'--
क्या खूबसूरत कल्पना की है!
वाह !वाह!
कैमरे की आंखों से दुनिया देखने वाले की कल्पनाएँ ऐसी अनूठी हों तो उसकी कविता भी भव्य चित्र बन जाती है-और यही आप की इस कविता से साबित हो जाता है.
शुभकामनाएं

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत सुंदर लिखी है मनुज जी आपने यह कविता मुझे यह बहुत पसंद आई !!

Sajeev का कहना है कि -

bahut achhe manuj bhai..... aisi hi sanvedansheel rachnaayen dete rahiye

Manuj Mehta का कहना है कि -

Maine abhi abhi aap sabhi ke comments padhe, aapka appriciation mere liye bahut mahtavpoorn hai. Main aapka tahe dil se shukriya ada karta hoon.

vipin chauhan का कहना है कि -

वाह मनुज जी वाह क्या खूब बात कही है आप ने
भई वाह आप का कमरा बहुत पसंद आया
सरल भावो में एक सफल रचना के लिए बधाई

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

कैमरे से कमरा
वो भी जबरदस्त
खयालों से भरा..
ख्वाबों के परदे
उस में भी कोई
ऐसे अनूठे रंग भरदे..
कौन होगा
जिसको दीवाना न कर दे..

बहुत बहुत बधाई
श्रीमान मनुज
- आपका अनुज

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मैं तीसरे जज की टिप्पणी से सहमत हूँ।

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