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Tuesday, December 18, 2007

कृति पीड़ा


उठ… रे...!
ओ मूर्तिकार !
जुट जा. फ़िर तलाश में
पाषाण खण्डों की
तुझे तेरा मीत मिल जायेगा
क्या हुआ … ?
जो तेरा शिल्प
तेरी गढ़ी हुयी मूर्ति
बिक गयी बाजार में
अरे ओ भोले नादान.
ये ..
यही तो है
‘आज की प्रतिष्ठा’

भूल गया तू
उस कुम्हार को
घाट पर बैठे पण्डे को
तेरी मूर्ति भी
तेरी बनायी है
पर तेरी नहीं है
भूल जा ...
उस पीड़ा को
बस जुट जा
अपने निर्माण में
कभी कोई कृति
तेरा मीत बन जायेगी
मत पाल यह भ्रम
तू मत बैठ
धरे हाथ पर हाथ

ले उठा ...
अपने चिर साथी
छेनी और हथौड़ा
चीर दे वक्ष पर्वतों का
उकेर दे कुछ
नूतन रेखायें
काल के भाल पर
लिख डाल फिर
शिलालेख ..
कोई गीत नया,
चित्र बना डाल तू
पाषाण उर पर
थाम कर ...
ले झुका काल
कालजयी रचना शक्ति से

बेड़ियां नैराश्य की
देख ...
कब की हैं टूट चुकी
लौकिक संसार से बस
देह ही तो जाती है
अमर है कवि
अजर रचना संसार है

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17 कविताप्रेमियों का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

बेड़ियां नैराश्य की
देख ...
कब की हैं टूट चुकी
लौकिक संसार से बस
देह ही तो जाती है
अमर है कवि
अजर रचना संसार है
" कितना सच कहा है कवी ने, सच मे सुब कुछ नश्वर है मगर कवी और उनकी रचना अमर है" एक उत्क्र्ष्ट रचना.
regards

Ashish Maharishi का कहना है कि -

बड़ी सुंदर और आशावादी रचना है.
बहुत खूब
आशीष

Anonymous का कहना है कि -

यह रचना पढ़ कर मुझे गुप्त जी की रचना "नर हो न करो निराश मन ko" याद आ गयी |
मन की निराशा को दूर करनी वाली यह सुंदर रचना है |
बधाई
अवनीश तिवारी

रंजू भाटिया का कहना है कि -

भूल जा ...
उस पीड़ा को
बस जुट जा
अपने निर्माण में
कभी कोई कृति
तेरा मीत बन जायेगी
....
लिख डाल फिर
शिलालेख ..
कोई गीत नया,
चित्र बना डाल तू
पाषाण उर पर

....
लौकिक संसार से बस
देह ही तो जाती है
अमर है कवि
अजर रचना संसार है

बहुत सुंदर रचना लगी आपकी यह श्रीकांत जी ....बधाई आपको !!

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

श्रीकांत जी,

आपकी संस्कृतनिष्ठ रचनाशैली में यह आशावादी रचना खूब निखर कर आयी है चूंकि आपके बिम्बों के साथ आपके शब्दचयन नें पूरा न्याय किया है।

बेड़ियां नैराश्य की
देख ...
कब की हैं टूट चुकी
लौकिक संसार से बस
देह ही तो जाती है
अमर है कवि
अजर रचना संसार है

आशावादी रचना।

*** राजीव रंजन प्रसाद

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

कांत जी,

सचमुच एक शानदार आशावादी रचना
एक खूबसूरत प्रवाहपूर्ण अभिव्यक्ति

उठ… रे...!
ओ मूर्तिकार !
जुट जा. फ़िर तलाश में
पाषाण खण्डों की..........
..............
..............देह ही तो जाती है
अमर है कवि
अजर रचना संसार है

Anonymous का कहना है कि -

श्रीकांत जी
आपकी कविताये सच में दिल को छू जाती है आप इतना अच्छा और अलग लिखते है की वाकई खुशी होती है पढ़ कर, मैंने पहले भी कई कविताये पढी है पर आपकी कविताओ में जो गहराई होती है वो कही नही मिलती आजकल
रेखा

शोभा का कहना है कि -

श्रीकान्त जी
बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना । विशिष्ट भाषा और गम्भीर भाव लिए ।
बेड़ियां नैराश्य की
देख ...
कब की हैं टूट चुकी
लौकिक संसार से बस
देह ही तो जाती है
अमर है कवि
अजर रचना संसार है
आशा से भरा सन्देश देने के लिए आभार । सस्नेह

Anonymous का कहना है कि -

श्रीकांत जी
आपकी कविता काफी आशावादी है
कविता इतनी सुंदर है की दिल को सीधे छूती है मैंने पहली बार हिन्दयुग्म पे कविता पढी पर आपकी रचना ने मुझे काफी आकर्षित किया आप काफी अच्छा लिखते है मेरी शुभकामनाएं ......

श्रीकांत जी
आपकी कविता काफी आशावादी है
कविता इतनी सुंदर है की दिल को सीधे छूती है मैंने पहली बार हिन्दयुग्म पे कविता पढी पर आपकी रचना ने मुझे काफी आकर्षित किया आप काफी अच्छा लिखते है मेरी शुभकामनाएं ......

ताशु

Anonymous का कहना है कि -

श्रीकांत जी बहुत बहुत बधाई,क्या मर्म उत्पन्न किए हैं आपने,बिल्कुल दिल को चीरने वाले.
धन्य है आपकी कृति जो कृति पीड़ा को भी इतना सहज और सरल बना देती है.
आलोक सिंह "साहिल"

Sajeev का कहना है कि -

गजब शब्दावली है आपकी, बहुत ही सुंदर रचना , एक एक क\हित्र सामने उभर आता है, शब्द हैं या जादू ... बधाई

Alpana Verma का कहना है कि -

'कभी कोई कृति
तेरा मीत बन जायेगी
मत पाल यह भ्रम'
वाह!एक सच इतनी आसानी से कह दिया .
शिल्पकार की आशाओं को जिंदा रखने की सुंदर कोशिश इस रचना में दिखी.
शब्द चयन ,कविता का गठन, इसका प्रवाह ,इसमें छिपी गहराई और प्रस्तुति आकर्षक और अति उत्तम लगी.
एक उत्क्र्ष्ट रचना के लिए बधाई और धन्यवाद.

Avanish Gautam का कहना है कि -

श्रीकान्त जी बढिया कविता. आशावादी कविता. बधाई स्वीकारें

RAVI KANT का कहना है कि -

श्रीकांत जी,
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए साधुवाद। आशा का नवसंचार करती कविता प्रभावी बन पड़ी है।

Mohinder56 का कहना है कि -

श्रीकान्त जी,

कृति और कलाकार को माध्यम बना कर आपने एक बहुत बडे सत्य को उजागर किया है.. संसार में उद्यम ही सर्वश्रेष्ठ है जिसे ये दो हाथ जन्म देते हैं और समस्त बाधाओं को पार करते हुये इस स्थान को जीने लायक बनाते हैं...
सुन्दर रचना के लिये बधाई

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रा नंदन पंत इस तरह की शैली में लिखा करते थे। किसी भी कलमकार को अपने तेवर, अपनी शैली जल्द ही तय कर लेनी चाहिए।

Anonymous का कहना है कि -

हे मूर्तिकार
तू इसी तरह पुरी निष्ठा के साथ अपना कर्म किए जा और अपनी पीड़ा को जिंदा रख . अगर तेरी पीड़ा खत्म हो गई टू तेरी कृति भी पुरान नहीं हो पायेगी. सदा सर्वदा शुभ कामनाओं के साथ
नीर

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