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Monday, January 07, 2008

रूदन


वह कुत्ता
मेरी आत्मा की आवाज़ लिये
रो रहा है !
मैंने भी भूख से
कितनी पूस की रातें
रोते गुजारी थी
पर...
वह मेरी लाचारी थी
मेरे पेट में आग तो थी
किन्तु हाथ छोटे थे
फिर मैंने समय की तान पर
अपने रूदन को ढाला
यक़ीं मानिये
वहाँ मेरी आत्मा नहीं थी
मेरे उस लयबद्ध रूदन को
लोगों ने सराहा-खरीदा-पूजा
मैं भी रोना छोड
अपनी भूख मिटाने लगा ।
हाय !
ये मेरी भूख
न जाने कैसे
हवस हो गई ?
मैं अब नहीं रोता
बिल्कुल नहीं
अब मेरी आत्मा रोती है
वैसे ही
जैसे वह कुत्ता
पूस की इस रात को
रो रहा है ।

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

abhishek ji atma ki rudan ko behad achho tarikese bhapa jana aur pesh kiya hai,badhai
mehek

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

मैं अब नहीं रोता
बिल्कुल नहीं
अब मेरी आत्मा रोती है
वैसे ही
जैसे वह कुत्ता
पूस की इस रात को
रो रहा है ।
-- उत्तम !!!

अवनीश

शोभा का कहना है कि -

अभिषेक जी
बहुत अच्छी कविता लिखी है अपने. दिल की पीड़ा को बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी है.
वह कुत्ता
मेरी आत्मा की आवाज़ लिये
रो रहा है !
मैंने भी भूख से
कितनी पूस की रातें
रोते गुजारी थी
पर...

Anonymous का कहना है कि -

paatni जी बहुत ही acchhi प्रस्तुति. क्या खूब कहा-
न जाने कैसे
हवस हो गई ?
मैं अब नहीं रोता
बिल्कुल नहीं
अब मेरी आत्मा रोती है
आलोक सिंह "साहिल"

Sajeev का कहना है कि -

गहरी चोट है
हाय !
ये मेरी भूख
न जाने कैसे
हवस हो गई ?

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

अभिषेक जी,

बहुत ही सुन्दर शब्दमाला पिरोयी है आपने..
अंतर्मन की व्यथा बहुत ही मार्मिक तरीके से..

बहुत बहुत बधाई

रंजू भाटिया का कहना है कि -

अच्छी अभिव्यक्ति है.....

Alpana Verma का कहना है कि -

''मेरे उस लयबद्ध रूदन को
लोगों ने सराहा-खरीदा-पूजा''
और--
मैं अब नहीं रोता
बिल्कुल नहीं
अब मेरी आत्मा रोती है
-बहुत अच्छे!
'पूस की रात रुदन'!
कम शब्दों में बहुत कुछ कह रही है आप की कविता पाटनी जी.
और ऐसा कर पाना एक अच्छे कवि की निशानी है--बधाई..

Mohinder56 का कहना है कि -

पटनी जी,

सुन्दर भाव लिये कविता है...
जीवन में किसी भी वस्तु की कमी या अधिकता दुखदायी ही होती है.

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

वह मेरी लाचारी थी
मेरे पेट में आग तो थी
किन्तु हाथ छोटे थे
फिर मैंने समय की तान पर
अपने रूदन को ढाला
यक़ीं मानिये
वहाँ मेरी आत्मा नहीं थी
मेरे उस लयबद्ध रूदन को
लोगों ने सराहा-खरीदा-पूजा
मैं भी रोना छोड
अपनी भूख मिटाने लगा ।
अद्भुत आत्म प्रकाशन है ......आत्मिक पीडा की अभिव्यक्ति
सुनीता यादव

सुनीता शानू का कहना है कि -

क्या कहूँ शब्द ही नही है मेरे पास...अद्भुत कविता है...बधाई...

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

आपकी कविताओं का क्राफ्ट बहुत अच्छा होता है।

mona का कहना है कि -

Great poem. The style of writing is good.

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