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Thursday, January 31, 2008

मंजिल



सुबह की उजली ओस
और गुनगुनाती भोर से
मैंने चुपके से ..
एक किरण चुरा ली है
बंद कर लिया है इस किरण को
अपनी बंद मुट्ठी में ,
इसकी गुनगुनी गर्माहट से
पिघल रहा है धीरे धीरे
मेरा जमा हुआ अस्तित्व
और छंट रहा है ..
मेरे अन्दर का
जमा हुआ अँधेरा
उमड़ रहे है कई जज्बात,
जो क़ैद है कई बरसों से
इस दिल के किसी कोने में
भटकता हुआ सा
मेरा बावरा मन..
पाने लगा है अब एक राह
लगता है अब इस बार
तलाश कर लूंगी मैं ख़ुद को
युगों से गुम है ,
मेरा अलसाया सा अस्तित्व
अब इसकी मंजिल
मैं ख़ुद ही बनूंगी !!
--

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

उमड़ रहे है कई जज्बात,
जो क़ैद है कई बरसों से
इस दिल के किसी कोने में
भटकता हुआ सा
मेरा बावरा मन..
पाने लगा है अब एक राह
लगता है अब इस बार
तलाश कर लूंगी मैं ख़ुद को
" बहुत खूब, मंजिल तलाशती और उम्मीद से भरी एक सुंदर रचना "
Regards

सुनीता शानू का कहना है कि -

सबसे पहले स्वर्ण कलम के विजेता को बधाई...
बहुत सुन्दर और सच्ची रचना है...अगर आप चाहेंगी तो मुश्किले खुद-ब-खुद आसान हो जायेंगी...मेरी शुभ कामनाएं सदैव आपके साथ है...:)

Mohinder56 का कहना है कि -

रंजना जी,

आशावाद का सूरज चमकता रहे तो हर अंधेरा अपने आप मिट जाता है... इस आशावादी सुन्दर रचना के लिये बधाई

Sanjeet Tripathi का कहना है कि -

क्या बात है, चलिए राह पाई तो सही आपने ।
बढ़िया भाव!!

स्वर्ण कलम पाने के लिए बधाई

गीता पंडित का कहना है कि -

रंजना जी,

सुंदर भाव

स्वर्ण कलम पाने के लिए
बधाई

राज भाटिय़ा का कहना है कि -

रंजना जी,स्वर्ण कलम पाने के लिए
बधाई,

Anonymous का कहना है कि -

bahut sundar kavita hai,badhai ho

शोभा का कहना है कि -

ranjana जी
बहुत ही सुंदर लिखा है -
पाने लगा है अब एक राह
लगता है अब इस बार
तलाश कर लूंगी मैं ख़ुद को
युगों से गुम है ,
मेरा अलसाया सा अस्तित्व
अब इसकी मंजिल
मैं ख़ुद ही बनूंगी !!
शुभ कामनाएं और बधाई

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

रंजू जी,
मंजिल सुन्दर है.. रास्ते कठिन है तो क्या हुआ..
रास्ते कट जायेंगे आसानी से यकीं मानिये..
गुनगुनाकर चलते रहिये बस कलम का लिखा हुआ..

और हाँ बधाई स्वर्ण कमल के लिये..

वैसे रंजना जी "पोल" मे हमने भी हिस्सा लिया था तो "पोला" (कैप) पर तो अपना भी हक़ बनता है ना..
जेब में लगा लो तो पोला(कैप) की क्लिप ही नज़र आती है किसी को क्या पता अन्दर पेन है कि नहीं....
ही ही.. माफ कीजियेगा.. उंगलियाँ कंट्रोल से बाहर हो जाती है कभी कभी और ना लिखने की बात भी लिख जाती है..
- पुनः बधाई..

RAVI KANT का कहना है कि -

रंजना जी,
प्यारी रचना है। हालांकि-
बंद कर लिया है इस किरण को
अपनी बंद मुट्ठी में

इस किरण कॊ बंद करने की ख्वाहिश क्यों? क्या ये मुक्त होती तो और प्रेमपूण नही होती??? वैसे ये मेरा निजि विचार है। कविता अच्छी है, मैं इससे इनकार नही करूँगा।

Anonymous का कहना है कि -

रंजू जी मंजिल की तरफ उन्मुख आपका काव्य सराहनीय है.
स्वर्ण कमल के लिए विशेष तौर से मुबारकबाद
आलोक सिंह "साहिल"

मीनाक्षी का कहना है कि -

किरण तो आपके हाथ में पहले से ही थी.. जो स्वर्ण कलम बन गई... बहुत बहुत बधाई.. ठंडे पड़ते वजूद को गरमाहट देने वाली सुन्दर रचना....

Divya Prakash का कहना है कि -

"युगों से गुम है ,
मेरा अलसाया सा अस्तित्व
अब इसकी मंजिल
मैं ख़ुद ही बनूंगी !!"

ह्रदय को छू गयी ये कविता , बहुत बहुत बधाई आपको

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