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Friday, January 11, 2008

दीपक मगर जलता रहा


था अंधेरा, रात भर तूफान भी चलता रहा
इक भोर की उम्मीद में दीपक मगर जलता रहा

उसके हाथों की पहुँच से चाँद तारे दूर थे
फूल-पत्तों से ही अपने आप को छलता रहा

यूँ तो भरोसा है उसे अब भी खुदा के न्याय पर
सोचता है किसलिये हर फैसला टलता रहा

गाँधी भगत सिंह नाम ले वो देश को लूटा किये
विवश आज़ादी का सपना हाथ ही मलता रहा

’अजय’ न था शैतान हरगिज़ जबकि वो पैदा हुआ
ज़िंदगी की ठोकरों से खुद-ब-खुद ढलता रहा

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

था अंधेरा, रात भर तूफान भी चलता रहा
इक भोर की उम्मीद में दीपक मगर जलता रहा

उसके हाथों की पहुँच से चाँद तारे दूर थे
फूल-पत्तों से ही अपने आप को छलता रहा

यूँ तो भरोसा है उसे अब भी खुदा के न्याय पर
सोचता है किसलिये हर फैसला टलता रहा
"कमाल की कविता है , मुझे बहुत अच्छी लगी, ये कुछ प्न्क्तीयाँ बहुत अच्छी बन पडी हैं."
Regards

दिवाकर मणि का कहना है कि -

अजय जी,
आपकी लेखनी से उद्भूत ये पंक्तियाँ पढ़कर बस "वाह" कहने को जी चाहता है.
क्या बात कही है !!!
था अंधेरा, रात भर तूफान भी चलता रहा
इक भोर की उम्मीद में दीपक मगर जलता रहा

लगे रहिए......

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

था अंधेरा, रात भर तूफान भी चलता रहा
इक भोर की उम्मीद में दीपक मगर जलता रहा
--- बिल्कुल मन को बहने वाली रचना है |
सुंदर
- अवनीश तिवारी

रंजू भाटिया का कहना है कि -

उसके हाथों की पहुँच से चाँद तारे दूर थे
फूल-पत्तों से ही अपने आप को छलता रहा

बहुत अच्छी है यह पंक्तियाँ बाकी भी अच्छी लगी !!

Anonymous का कहना है कि -

behad sundar panktiyan hai,tha andhera raat bhar,bhor ke umed mein deepak jalta raha,badhai ho.

परमजीत सिहँ बाली का कहना है कि -

बहुत बढिया रचना है।बधाई।

Alpana Verma का कहना है कि -

निराशा के तारों में उलझी है आप की यह ग़ज़ल.
'उसके हाथों की पहुँच से चाँद तारे दूर थे
फूल-पत्तों से ही अपने आप को छलता रहा'
में ख्याल प्रस्तुति अच्छी है.

लिखते रहिये.शुभकामनाएं.

गीता पंडित का कहना है कि -

था अंधेरा, रात भर तूफान भी चलता रहा
इक भोर की उम्मीद में दीपक मगर जलता रहा

उसके हाथों की पहुँच से चाँद तारे दूर थे
फूल-पत्तों से ही अपने आप को छलता रहा

वाह.....
अच्छी ग़ज़ल |

लिखते रहिये

RAVI KANT का कहना है कि -

अजय जी,
बढ़िया प्रस्तुति है।

था अंधेरा, रात भर तूफान भी चलता रहा
इक भोर की उम्मीद में दीपक मगर जलता रहा

Anonymous का कहना है कि -

अजय भाई बहुत pyari प्रस्तुति
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

Mohinder56 का कहना है कि -

अजय जी,

सुन्दर रचना.. सभी शेर दमदार हैं
उसके हाथों की पहुँच से चाँद तारे दूर थे
फूल-पत्तों से ही अपने आप को छलता रहा
’अजय’ न था शैतान हरगिज़ जबकि वो पैदा हुआ
ज़िंदगी की ठोकरों से खुद-ब-खुद ढलता रहा

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