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Friday, February 08, 2008

एक प्रेम कविता


जब वे प्रेम करते थे
तब उनके आस-पास हिलकती थी नदी
दोनों इतने पारदर्शी थे
कि न तो वे दिखते थे न दिखती थी नदी

हवा में हिलते हुये धूप
उनके कपडों पर तितली की तरह मंडराती थी
इतने हल्के थे उनके वस्त्र
जैसे मछली की नर्म पूँछ होती है
बस उतनी ही सलवटें, उतनी ही धारियाँ,
उतनी ही नमी होती थी उन पर

जब वे प्रेम करते थे
तब मुस्कुरातीं थी मछलियाँ
मछलियों के मुस्कुराने पर
मछुए भी मुस्कुराते थे
मछुओं की मुस्कान काँटे की तरह
तिरछी हुआ करती थी
जिसे न वे जानते थे
न जानती थीं मछलियाँ

वे दोनों नदी के भीतर रहते थे
जैसे उन दोनों के भीतर रहती थी नदी

जब वे मरे...
तब जमीन स्वंय ले कर गई उन्हें श्मशान-भूमि
पेड चल कर आए उनकी चिता बनने
अग्नि की लपटों की तरह
पेडों से निकली पत्तियाँ हरहरा कर
जिसमें चिडियों ने अपने घोसले का एक तिनका
और अपने डैनों का एक पंख
उनकी अंतिम यात्रा के लिए रखा
हवा एक गिलहरी की साँसों मे शोकगीत गाने लगी
जिसका कोरस मैने अपनी साँसों में भी सुना

पानी जब उनकी अस्थियाँ लेने आया
तो मिट्टी का एक पात्र
लकडी की एक नाव
और सूत का वस्त्र
चुपचाप उसके साथ चला आया

यूँ हुआ उनका अंतिम-संस्कार
जो करते थे प्रेम
कि उनके बाद मछलियों ने
अपने बच्चों के नाम रखे उनके नाम पर
और उस दिन मछुआरों ने नहीं डाला
नदी में जाल.

-अवनीश गौतम

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25 कविताप्रेमियों का कहना है :

पारुल "पुखराज" का कहना है कि -

oh! pataa nahi kaun si duniyaa me kheench le gayi aapki ye panktiyaan,ajab sii anubhuuti,..jaisey chitr saamney kheench gayaa ho...adhbhut

seema gupta का कहना है कि -

जब वे प्रेम करते थे
तब उनके आस-पास हिलकती थी नदी
दोनों इतने पारदर्शी थे
कि न तो वे दिखते थे न दिखती थी नदी
" एक सपनों का मायाजाल, एक जलपरी की सी कल्पना , अथाह समंदर की शायद एक प्रेम कहानी , और भी पता नही क्या क्या , एक अनोखी रचना"
Regards

Pratyaksha का कहना है कि -

बहुत सुंदर !

अमिताभ मीत का कहना है कि -

Simply superb. Incredible.

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बहुत ही लाजवाब लिखा है..

सुन्दर सृजन, बहुत बहुत बधाई

रजनी भार्गव का कहना है कि -

बहुत खूब.

naina का कहना है कि -

yeh kahan pe aa gayi main... padte padte

शोभा का कहना है कि -

अवनीश जी
प्रेम उत्सव की दस्तक हिन्द-यग्म पर सुनाई दे रही है । अच्छा लिखा है आपने ।
जब वे प्रेम करते थे
तब मुस्कुरातीं थी मछलियाँ
मछलियों के मुस्कुराने पर
मछुए भी मुस्कुराते थे
मछुओं की मुस्कान काँटे की तरह
तिरछी हुआ करती थी
जिसे न वे जानते थे
न जानती थीं मछलियाँ
प्रेम के इस स्वरूप का दर्शन कराने के लिए बधाई

Anonymous का कहना है कि -

बहुत भावुक बना दिया आपकी कविता ने,कुछ पारदर्शक शब्ध,कुछ दर्द,कुछ प्रेम की गाथा
बहुत खूबसूरत रचना है,बधाई.

अनूप भार्गव का कहना है कि -

बहुत सुन्दर कविता है .....

RAVI KANT का कहना है कि -

जब वे मरे...
तब जमीन स्वंय ले कर गई उन्हें श्मशान-भूमि
पेड चल कर आए उनकी चिता बनने
अग्नि की लपटों की तरह
पेडों से निकली पत्तियाँ हरहरा कर
जिसमें चिडियों ने अपने घोसले का एक तिनका
और अपने डैनों का एक पंख
उनकी अंतिम यात्रा के लिए रखा
हवा एक गिलहरी की साँसों मे शोकगीत गाने लगी
जिसका कोरस मैने अपनी साँसों में भी सुना

बहुत सुन्दर अवनीश जी!! मजा आ गया।

Divya Prakash का कहना है कि -

Alag sii duniya main le gayii ye kavita , maza aa gaya !!badhaii

Sajeev का कहना है कि -

निशब्द हो गया हूँ अवनीश जी आपकी इस कविता के बाद, क्या कहूँ, चुप ही रहूँगा पर मेरे मौन का हर हर्फ़ आपकी इस कविता पर कुर्बान ....

विश्व दीपक का कहना है कि -

बहुत हीं कोमल प्रेम कहानी है अवनीश जी। परंतु समझने में थोड़ा वक्त लगा,थोड़ा आसान लिखते तो और मज़ा आ जाता।
रही बात कविता की, तो प्रेम की कविता है , अच्छी लगेगी हीं।
बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तनह’

Anonymous का कहना है कि -

एक स्वर्गीय भाव का अद्भुत कथन ... क्या कहने हैं अवनीश जी ! आपको विनम्र अभिवादन और बधाईयाँ.

Nikhil का कहना है कि -

हिन्दयुग्म पर प्रकाशित सर्वश्रेष्ठ कविताओं में से एक....बल्कि, कहें कि समकालीन श्रेष्ठ कविताओं में से एक...
अवनीश जी कि लेखनी ने ग़ज़ब ढा दिया इस बार......मैं घायल हो गया..
निखिल

गीता पंडित का कहना है कि -

बहुत सुंदर रचना |

अवनीश जी
निशब्द हूँ...

बहुत बहुत बधाई |

Alpana Verma का कहना है कि -

एक अनोखी प्रेम गाथा पर चिरपरिचित सी---
कविता में इस का ऐसा रूप पढ़ना अद्भुत लगा.
सुंदर कविता है.

Anonymous का कहना है कि -

अवनीश जी आपकी कविता के विषय में इतना कुछ पहले ही कहा जा चुका है की मेरे कुछ भी कहने का कुछ मतलब नहीं रह जाता.
शुभकामनाओं सहित
आलोक सिंह "साहिल"

Avanish Gautam का कहना है कि -

सभी का बहुत-बहुत आभार जो आपने इस कविता को इतना दुलार दिया!

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

यह हिन्द-युग्म पर प्रकाशित सुंदरतम कविताओं में से एक है। अवनीश जी आप कवि की जिम्मेदारी समझते हैं। हम आपके सानिध्य को अपना सौभाग्य मानते हैं।

Rakesh Kumar Singh का कहना है कि -

प्रेम की इतनी सुंदर व्याख्या! मज़ा आ गया.

Unknown का कहना है कि -

Aisa laga jaise saari bhaag-daur, sara shor-sarba kuch samay ke liye ruk gaya ho.
Yaad aa gayi ek talash!

रंजू भाटिया का कहना है कि -

यह कविता दिलो दिमाग पर छा गई है .बहुत सुंदर रचना !! बधाई आपको कविता की भी और वर्षगांठ की भी :)

Avanish Gautam का कहना है कि -

बहुत-बहुत धन्यावाद रंजू जी!

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