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Saturday, February 16, 2008

मैने उसको जीत लिखा


जब-जब अश्रु नयन में आए
मैने तब-तब गीत लिखा

ना मंदिर से ना मस्जिद से
ना हाथों की लकीरों से
मेरा परिचय कभी पूछना
उन गुमनाम फ़कीरों से
दिए फूल के बदले काँटे
उनको भी मैने मीत लिखा

जो पूरी ना कर पाई
कुछ शर्तें रीति-रिवाजों की
डिगा न पाई सूली भी
पहचान हुँ उन आवाजों की
हार लिखा सारी दुनिया ने
मैने उसको जीत लिखा

कवि हुँ, लेखन का बस
इतना ही मर्म समझता हुँ
अंजामो की फ़िक्र बिना
सच कहना धर्म समझता हुँ
उन्मादी खत के उत्तर में
मैने निश्छल प्रीत लिखा

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

शोभा का कहना है कि -

रवि जी
बहुत सुंदर गीत लिखा है अपने.-
ना मंदिर से ना मस्जिद से
ना हाथों की लकीरों से
मेरा परिचय कभी पूछना
उन गुमनाम फ़कीरों से
दिए फूल के बदले काँटे
उनको भी मैने मीत लिखा
badhayi

seema gupta का कहना है कि -

कवि हुँ, लेखन का बस
इतना ही मर्म समझता हुँ
अंजामो की फ़िक्र बिना
सच कहना धर्म समझता हुँ
उन्मादी खत के उत्तर में
मैने निश्छल प्रीत लिखा
" बहुत बहुत बहुत सुंदर रचना , सुबह सुबह पढ़ कर दिल को अच्छा लगा"
Regards

रंजू भाटिया का कहना है कि -

कवि हुँ, लेखन का बस
इतना ही मर्म समझता हुँ
अंजामो की फ़िक्र बिना
सच कहना धर्म समझता हुँ

बहुत सुंदर रचना रवि कान्तजी !!

Sunny Chanchlani का कहना है कि -

फकीरों शब्द का प्रयोग दिल को छु गया

Anonymous का कहना है कि -

कवि हुँ, लेखन का बस
इतना ही मर्म समझता हुँ
अंजामो की फ़िक्र बिना
सच कहना धर्म समझता हुँ
उन्मादी खत के उत्तर में
मैने निश्छल प्रीत लिखा
रविकांत जी बहुत ही प्यारी कविता,पढ़ कर आनंद आ गया.बधाई हो साहब जी
आलोक सिंह "साहिल"

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

क्या गीत है |

बहुत सुंदर


अवनीश तिवारी

mehek का कहना है कि -

मेरा परिचय कभी पूछना
उन गुमनाम फ़कीरों से
दिए फूल के बदले काँटे
उनको भी मैने मीत लिखा
बहुत भावुक सुंदर पंक्तियाँ है,कविता भी khubsurat badhai.

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

वाह कांत जी वाह

बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने

Unknown का कहना है कि -

कवि हुँ, लेखन का बस
इतना ही मर्म समझता हुँ
अंजामो की फ़िक्र बिना
सच कहना धर्म समझता हुँ
उन्मादी खत के उत्तर में
मैने निश्छल प्रीत लिखा

रवि जी ..!
इन पंक्तियों में कवि के धर्म और मर्म दोनों को आप समझा रहे हैं .... सुंदर

विपुल का कहना है कि -

वाह रवि जी क्या सुंदर पंक्तियाँ हैं.. बात सिर्फ़ सुंदरता की ही नहीं सच्चाई की भी है..

कवि हुँ, लेखन का बस
इतना ही मर्म समझता हुँ
अंजामो की फ़िक्र बिना
सच कहना धर्म समझता हुँ

सुंदर रचना के लिए बधाई...

Sajeev का कहना है कि -

कवि धर्म निभाते रहें, यूहीं....

SahityaShilpi का कहना है कि -

रवि कांत जी! आपने लेखन का मर्म एकदम सही समझा है और खूबसूरती से संप्रेषित करने में भी आपकी लेखनी सफल रही है. काश कि सभी इस मर्म को समझ पाते!

विश्व दीपक का कहना है कि -

ना मंदिर से ना मस्जिद से
ना हाथों की लकीरों से
मेरा परिचय कभी पूछना
उन गुमनाम फ़कीरों से

बहुत हीं खूबसूरत पंक्ति है यह रवि जी।

कवि हुँ, लेखन का बस
इतना ही मर्म समझता हुँ
अंजामो की फ़िक्र बिना
सच कहना धर्म समझता हुँ

वाह! सच में कवि का धर्म यही है। बस आप गुमसुम से शब्दों को अपनी आवाज देते रहें, कवि का धर्म निबहता रहेगा।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

Alok Shankar का कहना है कि -

कविता अच्छी है, और संतुलित हो सकती थी ।
बार बार 'ना ' का प्रयोग कविता को ढीला करता है ।
जो पूरी ना कर पाई , जैसी पंक्तियों की जगह और संतुलित रचा जा सकता था । कविता को लिखने के बाद एक बार फ़िर से तराशने की कोशिश करें ।

Alpana Verma का कहना है कि -

अच्छा गीत है

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

बढ़िया गीत के गुण हैं इस कविता में। हुँ नहीं होता 'हूँ' लिखा कीजिए। अनुस्वार, अर्द्धानुस्वार का भी ध्यान रखा कीजिए।

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