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Sunday, February 24, 2008

प्यास ही प्यास ....


चेहरे को है ,आधी-आधी रात में ,मोम की रोशनी के फीके साए के नीचे
कविता बनकर सालों जलने की प्यास ......

यंत्रणा को है, लौ की देहरी पर अग्नि शिखाएं पसार कर
चतुर्दिग से आत्मा और आयु को जलाने की प्यास ..

झूलते हुए हाथों को है, अंगार सम ह्रदय-दर्पण में
प्रतिबिम्बित आंखों पर पट्टी बांधने की प्यास ..

दृष्टि को आहत हो कर लौट जाने की तो
क्षमता को है सब कुछ अदृश्य , विस्मृत कर देने की प्यास ...

सावन को निर्मम वैशाख की और
चित्रित वसंत को है क्षुधा के रंग की प्यास ...

स्मित हास्य को है, तम्बई चांदनी रात में
ध्वनिओं की आग के साथ मौन कम्पित होंठों की प्यास....

शताब्दी के झंकार को शब्द की तो
अमृतमय परम को पिपासित आत्मा की प्यास ....


सुनीता यादव

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17 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

यंत्रणा को है, लौ की देहरी पर अग्नि शिखाएं पसार कर
चतुर्दिग से आत्मा और आयु को जलाने की प्यास ..

झूलते हुए हाथों को है, अंगार सम ह्रदय-दर्पण में
प्रतिबिम्बित आंखों पर पट्टी बांधने की प्यास ..

दृष्टि को आहत हो कर लौट जाने की तो
क्षमता को है सब कुछ अदृश्य , विस्मृत कर देने की प्यास ...
क्या खूब लिखा है सुनीता यादव जी,हम तो कायल हो गए आपके इस प्यास के
आलोक सिंह "साहिल"

रवीन्द्र प्रभात का कहना है कि -

अच्छी लगी आपकी अभिव्यक्ति !

Sajeev का कहना है कि -

दृष्टि को आहत हो कर लौट जाने की तो
क्षमता को है सब कुछ अदृश्य , विस्मृत कर देने की प्यास ...
वाह क्या बात है, हर बार की तरह इस बार चमत्कृत करने वाली रचना.....आह पढ़ कर आनंद आ गया....

seema gupta का कहना है कि -

चेहरे को है ,आधी-आधी रात में ,मोम की रोशनी के फीके साए के नीचे
कविता बनकर सालों जलने की प्यास ......
" अच्छी अभीव्य्क्ती "
Regards

Anonymous का कहना है कि -

बहुत अच्छी बधाई

रंजू भाटिया का कहना है कि -

झूलते हुए हाथों को है, अंगार सम ह्रदय-दर्पण में
प्रतिबिम्बित आंखों पर पट्टी बांधने की प्यास .

सुंदर रचना है बधाई !

Mohinder56 का कहना है कि -

सुप्रभात की ताजगी लिये है यह रचना "प्यास ही प्यास"

बधाई

मनीष वंदेमातरम् का कहना है कि -

सुनीता जी!

शायद मेरा दर्शन कमजोर है या ये मेरी कमअक्ली है जो मैं वहाँ तक पहुँच नहीं पा रहा हूँ जहाँ से आपने कविता लिखी है।पर जब इतने लोगों ने कविता पसंद की है तो जरूर ही यह बेहतरीन होगी।।।।

SahityaShilpi का कहना है कि -

माफ़ कीजियेगा सुनीता जी, मगर मैं बहुत प्रयास के बाद भी नहीं समझ पाया कि आपकी इस रचना को क्या कहूँ. क्या यह कविता है??

Alpana Verma का कहना है कि -

चेहरे को है ,आधी-आधी रात में ,मोम की रोशनी के फीके साए के नीचे
कविता बनकर सालों जलने की प्यास ......
मुझे बस यही पंक्तियाँ समझ आयीं -
कृपया इस कविता को समझायें सुनीता जी--

विश्व दीपक का कहना है कि -

झूलते हुए हाथों को है, अंगार सम ह्रदय-दर्पण में
प्रतिबिम्बित आंखों पर पट्टी बांधने की प्यास ..

उपरोक्त पंक्तियाँ विशेष पसंद आई , सुनीता जी!
एक अलग तरह की रचना लिखने की प्यास अच्छी लगी।

बधाई स्वीकारें।

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

माफ़ी चाहती हूँ अभी -अभी टिपण्णीयों से गुजर रही थी....आँखे अटक गयीं ...अल्पना जी सच कहूँ इस कविता को लिखते समय मेरे मन में प्यास के कई रूप उभर पड़े थे ..प्रथम दो पंक्तियों में दुःख को दुखी की प्यास ...चेहरा की प्यास है एक कविता बन कर सालों जले जिसमें दर्द ,घुटन हों, जिसकी अभिव्यक्ति क्षणिक समय के लिए ही हों अंधेरे में .....किसी मोम के फीके रोशनी के साए के नीचे ......
जिसका अंतस बुरी तरह से घायल हो ...पहले से ही पीडित हो ..आत्मा जिसकी खंडित हो ..जीने की वजह न हो ..उस समय यंत्रणा की भी प्यास जाग उठती है ...और... और जलाने के लिए ..और टुकडों में खंडित करने के लिए ...

दूसरी दो पंक्तियों में ...सब कुछ समझकर भी इंसान समझना नहीं चाहता है ...ह्रदय चाहे कितना भी धधके , छलिये की प्यास है कि वह उसे नासमझ ही बनाये रखे ..आंखों पर पट्टी बांधकर ...! दृष्टि को मायूस हो लौटने की तो ...कहीं अन्दर की आवाज़ और क्षमता को सबकुछ भूल जाने की या भुला देने की प्यास ...

तीसरी तीन पंक्तियों में ....सहृदय को पीडा आत्मसात करने की प्यास ....सुखी वह नहीं जिसने दुःख भोगा नहीं ....सुख -सावन को जीवन - वैशाख में सुलगते मन की ...तो तृप्त चित्रित वसंत को अतृप्त के रंग की ...स्मित हास को मौन, अबोल , कम्पित होंठों की अभिव्यक्ति की प्यास जो प्रत्युत्तर में सिर्फ़ ध्वनि ही सुना सकते हैं ...और अंत में बात कही उस प्रिय चिर परिचित परम के बारे में, जो इन सब से दूर इंसान को सब कुछ भुलाकर शब्द के जरिये अनहद तक पहुँचा देने की प्यास लिए उस पिपासित आत्मा की खोज करता है ...

मैं आप को समझा पाई हूँ या नहीं पता नहीं ...आशा है मुझ अज्ञान को आप ऐसी ही दिशा प्रदान करें ताकि मैं अगली कोशिश और सरल हो ...क्या करूँ ..मेरी लेखनी जल्दी सुधरती नहीं...सचमुच अच्छा लगेगा है अगर मैं अपनी भावना को संप्रेषित कर पाऊं ...
बहुत बहुत स्नेह व आदर के साथ

सुनीता यादव

Alpana Verma का कहना है कि -

सुनीता जी,
आप ने कविता को काफी अच्छे से आपने समझा दिया है जिस से कविता के भाव उभर कर आ गए हैं.बहुत अच्छी रचना बन पड़ी है.
यही ख़ास बात है इस साईट की कि हमें न केवल पढने को मिलता है वरन सीखने को भी मिलता है.
आप का शब्दकोष बहुत विशाल है.
आप जैसा लिखती हैं वह आप का स्टाईल/शैली है.
मेरा विचार में उसे बदलने की जरुरत नहीं है.जैसा लिखती हैं वैसे ही लिखें .अच्छा लगता है.
और पढ़ते ही मालूम हो जाता है कि सुनीता जी की लिखी' लगता है.
सरल करने के चक्कर में कहीं आप अपनी originality नहीं खों दें.
हमें [पाठकों को] जहाँ समझ नहीं आएगा आप से पूछ लेंगे.है न सही?

गीता पंडित का कहना है कि -

यंत्रणा को है, लौ की देहरी पर अग्नि शिखाएं पसार कर
चतुर्दिग से आत्मा और आयु को जलाने की प्यास ..



दृष्टि को आहत हो कर लौट जाने की तो
क्षमता को है सब कुछ अदृश्य , विस्मृत कर देने की प्यास ...

वाह .........

अच्छी अभिव्यक्ति !


शुभ-कामनाएं

स-स्नेह
गीता पंडित

समयचक्र का कहना है कि -

अच्छी अभिव्यक्ति शुभ-कामनाएं

Unknown का कहना है कि -

सुनीता जी !

प्यास पर बहुत सारे रंग और सरलार्थ भी इसीलिए मैं कहना चाहूँगा की आपकी इस नई शैली के बजाय
... मुझे है सुनीता के 'सुनीता' बने रहने की प्यास
शुभकामनाएं

arvind purohit का कहना है कि -

sunitaji
mujhe aapaki kavitaayen achhee lagateen hain
pyaas hee pyaas bhee achhee lagee

kavitaa mujhe arth ke saath agar ek nai samvedanaa ke darshan karaatee hai to mujhe wah kavitaa pyaaree lagatee hai

aapakee is kavitaa main vah nai samvedanaa hai

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