फटाफट (25 नई पोस्ट):

Friday, March 07, 2008

दर्द के घर में किया फिर से बसेरा हमने


गौहर-ए-ज़ीस्त सर-ए-राह बिखेरा हमने
दर्द के घर में किया फिर से बसेरा हमने

अब भी इक याद की शमा सी कहीं जलती है
लाख चाहा था भुलावे का अँधेरा हमने

हर वक्त वही सूरत थी शीशे में नज़र के
कैनवस पर जब कोई अक्स उकेरा हमने

रात की आँख से बहती रही अश्कों की नमी
तब कहीं पाया ये शबनमी सवेरा हमने

'अजय' ये ज़िंदगी नासूर बन गई तब से
जब किया था तेरी गलियों का फेरा हमने


गौहर-ए-ज़ीस्त : जीवन का मोती

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

13 कविताप्रेमियों का कहना है :

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

क्या बात है अजय भाई, दिल को छू गए शे'र।

अब भी इक याद की शमा सी कहीं जलती है
लाख चाहा था भुलावे का अँधेरा हमने

बस गौहर-ए-ज़ीस्त का मतलब समझ नहीं आया। आप से गुजारिश है कि मुश्किल शब्दों के यदि अर्थ भी लिख दिया करें तो अच्छा रहेगा।

anju का कहना है कि -

बहुत खूब अजय जी
में भी तपन जी से सहमत ह मुश्किल शब्दों का अर्थ लिखें तो अच्छा होगा क्योंकि मुझे सम्न्झ नही आया

यह अच्छा लगा
रात की आँख से बहती रही अश्कों की नमी
तब कहीं पाया ये शबनमी सवेरा हमने
बहुत खूब

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

क्या बात है अजय जी..

एक एक शे'र जबर्दस्त
मजा आ गया

seema gupta का कहना है कि -

रात की आँख से बहती रही अश्कों की नमी
तब कहीं पाया ये शबनमी सवेरा हमने

'अजय' ये ज़िंदगी नासूर बन गई तब से
जब किया था तेरी गलियों का फेरा हमने
" दिल को बरबस कुरेदती सी ये पंक्तीयाँ बहुत अच्छी लगीं , सुंदर अभीव्य्क्ती

रंजू भाटिया का कहना है कि -

हर वक्त वही सूरत थी शीशे में नज़र के
कैनवस पर जब कोई अक्स उकेरा हमने

बहुत खूब अजय जी ..एक और बेहतरीन रचना है यह आपकी ,बधाई

Sajeev का कहना है कि -

हर वक्त वही सूरत थी शीशे में नज़र के
कैनवस पर जब कोई अक्स उकेरा हमने
डेड के घर में बसर करती यह ग़ज़ल बेहद सुंदर है अजय जी......

Anonymous का कहना है कि -

रात की आँख से बहती रही अश्कों की नमी
तब कहीं पाया ये शबनमी सवेरा हमने
बहुत खूब बधाई

Anonymous का कहना है कि -

बेहतरीन गज़ल मज़ा आ गया अजय जी
कौन कहता है गज़लकारों की कमी हो रही है आप जैसे गज़ल कार अभी मौज़ूद है हिन्दी युग्म पर उर्दू पर भी आपकी अच्छी है आपकी अगली गज़ल का इंतजार रहेगा
ये शेर बहुत ही लाजवाब है........
रात की आँख से बहती रही अश्कों की नमी
तब कहीं पाया ये शबनमी सवेरा हमने

RAVI KANT का कहना है कि -

रात की आँख से बहती रही अश्कों की नमी
तब कहीं पाया ये शबनमी सवेरा हमने

बहुत सुन्दर अजय जी।

dr minoo का कहना है कि -

ajay ji sunder ghazal likhi hai...badhai...

Alok Shankar का कहना है कि -

ajay ji
gazal achchi hai

विश्व दीपक का कहना है कि -

उम्दा गज़ल है , अजय जी।
बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

Mohinder56 का कहना है कि -

एक बार बस अंधेरों की तारीफ़ क्या कर दी
फ़िर उसके बाद कभी न देखा सवेरा हमने

:)

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)