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Friday, March 07, 2008

कैसा गजब का है ये सम्मोहन!!?


तपन शर्मा जैसे पाठकों ने हिन्द-युग्म के वर्तमान स्वरूप को जन्म दिया है। हिन्द-युग्म के वृक्ष को फलदायी बनाने में हर सम्भव मदद करते हैं, शायद इसीलिए हर दफ़ा प्रतियोगिता में भाग लेते रहते हैं। इस बार निर्णायकों ने इनकी कविता 'सम्मोहन' को छठवा स्थान दिया है।

पुरस्कृत कविता- सम्मोहन

ज़िन्दगी का सागर
अपनी लहरों से
समय की गीली रेत को
मेरे पैरों के नीचे से
निगलता जा रहा है
समा रहे हैं उसमें,
कभी हवा में मचलते
कभी पैरों तले रौंदे जाने वाले
रेत के अनगिनत कण
निरंतर
और मैं साहिल पे खड़ा
उस अनुपम सागर की
गहराइयों में डूबा
निहार रहा हूँ
उसकी खूबसूरती को
इन सब से बेखबर
कैसा गजब का है ये
सम्मोहन!!

निर्णायकों की नज़र में-


प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक-५॰५, ६॰४, ७॰२
औसत अंक- ६॰३६६७
स्थान- पाँचवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५॰५, ५॰९, ४, ६॰३६६७(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰४४१६६७
स्थान- सोलहवाँ


अंतिम जज की टिप्पणी-
रचना में पकड़ और गहरायी है। बिम्ब और उससे जुड़ा वर्णन सजीव है।
कला पक्ष: ७॰५/१०
भाव पक्ष: ८/१०
कुल योग: १५॰५/२०
स्थान- छठवाँ


पुरस्कार- सूरज प्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक कथा-दशक'

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14 कविताप्रेमियों का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

और मैं साहिल पे खड़ा
उस अनुपम सागर की
गहराइयों में डूबा
निहार रहा हूँ
उसकी खूबसूरती को
इन सब से बेखबर
कैसा गजब का है ये
सम्मोहन!!
" वाह , बहुत सुंदर वर्णन सम्मोहन शब्द को सार्थक करती आपकी ये कवीता मन को भा गई "
Regards

रंजू भाटिया का कहना है कि -

उस अनुपम सागर की
गहराइयों में डूबा
निहार रहा हूँ
उसकी खूबसूरती को
इन सब से बेखबर
कैसा गजब का है ये
सम्मोहन!!

बहुत खूब ... सुंदर लगा आपकी इस रचना का सम्मोहन तपन जी !!बधाई

Anonymous का कहना है कि -

बहुत ही गहरी रचना है| शानदार|

anju का कहना है कि -

वाकई तपन जी आपका सम्मोहन पसंद आया

बहुत बहुत बधाई आपको
कभी हवा में मचलते
कभी पैरों तले रौंदे जाने वाले
रेत के अनगिनत कण
बहुत खूब लिखा है आपने

जीतेश का कहना है कि -

तपन जी,
बहुत खूब.......कमाल की भेदन झमता
एक्स्पेरिंस कवि की खूबी होती है उसकी पेनान्त्रशन पॉवर........

Sajeev का कहना है कि -

बिम्ब बहुत सुंदर है, मुझे भी समुद्र किनारे बीते अपने पल याद आ गए, समुद्र मुझे अपनी और खींचता है मैं भी जब भी मौका लगे उससे मिलने चला जाता हूँ, मुझे भी वो अपना सा लगता है..... आपकी कविता ने मुझे एक बार फ़िर उससे मिलवा दिया

Anonymous का कहना है कि -

और मैं साहिल पे खड़ा
उस अनुपम सागर की
गहराइयों में डूबा
निहार रहा हूँ
उसकी खूबसूरती को
इन सब से बेखबर
बहुत खूब बधाई

Sanjiv Tripathi का कहना है कि -

उस अनुपम सागर की
गहराइयों में डूबा


en line k bina poori kavita padiye
to kuchh aur hi baat hai

ज़िन्दगी का सागर
अपनी लहरों से
समय की गीली रेत को
मेरे पैरों के नीचे से
निगलता जा रहा है
समा रहे हैं उसमें,
कभी हवा में मचलते
कभी पैरों तले रौंदे जाने वाले
रेत के अनगिनत कण
निरंतर
और मैं साहिल पे खड़ा
निहार रहा हूँ
उसकी खूबसूरती को
इन सब से बेखबर
कैसा गजब का है ये
सम्मोहन!!


sorry jo maine 2 line delete ki

dr minoo का कहना है कि -

ज़िन्दगी का सागर
अपनी लहरों से
समय की गीली रेत को
मेरे पैरों के नीचे से
निगलता जा रहा है...waah tapan sharma...very nice poem...good morning...

dushyant kumar chaturvedi दुष्यन्त कुमार चतुर्वेदी का कहना है कि -

और मैं साहिल पे खड़ा
उस अनुपम सागर की
गहराइयों में डूबा

पहले तो आप यह निर्णय लें कि आप साहिल पर खङे है या गहराइयों मे डूबे हैं???
शुद्ध हिन्दी मे चलती हुई इस रचना मे आपने भाषा के मामले मे भी काफी समझौता किया है
साहिल-अनुपम सागर
खूबसूरती-बेखबर-सम्मोहन
आप स्वयं ही देख लें

Anonymous का कहना है कि -

आपके सम्मोहन ने हमें सम्मोहित कर दिया है वाकई अच्छी रचना है तपन जी मुबारक हो

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

सजीव जी, ये कविता मैंने तब लिखी जब मैं हाल ही में चेन्नई गया था। वहाँ समुद्र किनारे खड़ा होना ही बहुत सुंदर अहसास सा था। और बस वहीं खड़े खड़े ही इस कविता का जन्म हो गया।

संजीव जी, दुष्यंत जी, आप लोगों ने बिल्कुल सही कहा इन पंक्तियों की जरूरत नजर नहीं आती।
दरअसल जब कोई खुद की लिखी कविता पढ़ता है तो उसे उसमें कोई कमी नज़र नहीं आती।
मैं सागर के ख्यालों में डूब गया था। शायद इसलिये ये लाइनें लिख डाली। और कितना डूबा इसके लिये मैंने सागर की गहराइयों को चुना। जहाँ शायद चूक हो गई। खैर यही शायद युग्म का फायदा है। अपनी रचनायें जब यहाँ पोस्ट होती है तो पाठकों के सहयोग से गलती का पता चल जाता है। और यही फायदा प्रतियोगिता का है।
दुष्यंत जी, आपने बिल्कुल सही कहा सारे शब्द हिन्दी के नहीं हैं। मिले जुले से हैं। दरअसल मेरे शब्दकोश में फिलहाल शब्द कम हैं। अगली बार कोशिश करूँगा कि ऐसा न हो।
धन्यवाद।

RAVI KANT का कहना है कि -

तपन जी, बात तो सही है-
कैसा गजब का है ये
सम्मोहन!! रम्य रचना के लिए बधाई।

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सुन्दर सागर जैसा ही गहरा सम्मोहन..

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