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Friday, April 25, 2008

कभी यूं भी आ


कभी यूं भी आ,

मिलने मुझे,

जैसे खिली धूप मे बरसात आए,

भीनी सी एक खुशबू जगे,

सौंधी सी एक सौगात लाये.

कभी यूं भी आ....

कभी यूं भी आ....

बरस जा मुझ पे ऐसे,

पर्वत पे जैसे, काली घटायें,

बिखर जा मुझ पे ऐसे,

सागर पे जैसे, ठंडी हवायें,

रात भर दो जिस्म यूहीं,

चाँदनी मे घुलते रहें,

कतरा कतरा, पिघले हर पल,

लम्हा लम्हा जलते रहें,

कभी यूं भी आ, मिलने मुझे,

जैसी खुली पलकों तले,

सपना कोई चुपचाप आए,

परदे गिरे जब होश के,

बेखुद सा एक एहसास छाए,

कभी यूं भी आ....

कभी यूं भी आ....

सिमट जा मुझ में ऐसे,

हो बूँद जैसे सीपों मे सिमटी,

लिपट जा मुझ से ऐसे,

हो बेल जैसे पेडों से लिपटी,

सर्दियों की सुबहें हो तो,

धुंध में ओढे हुए,

एक दूजे के बदन को,

देर तक सोये रहें,

कभी यूं भी आ, मिलने मुझे,

जैसे घने कोहरे को एक,

नूरे किरण महका दे आके,

हो ओस में भीगी कली,

और खुशी से नम हो ऑंखें,

कभी यूं भी आ...

कभी यूं भी आ...


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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Divya Prakash का कहना है कि -

बहुत अच्छा संजीव जी , इसका तो फटा फट गाना बना दीजिये ... रेकॉर्डिंग कर लीजिये अच्छा है |
दिव्य प्रकाश

shivani का कहना है कि -

क्या बात है सजीव जी ......बहुत खूब ....आपकी ये रचना काबिल-ए-तारीफ है....इस गीत को संगीत में ढाल दीजिये .....हमें इंतज़ार रहेगा ....

nesh का कहना है कि -

bhaut achha likha hai

शोभा का कहना है कि -

सजीव जी
बहुत सुन्दर लिखा है-
जैसे खिली धूप मे बरसात आए,

भीनी सी एक खुशबू जगे,

सौंधी सी एक सौगात लाये.

कभी यूं भी आ....

कभी यूं भी आ....



बधाई।

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

वाह ! सुंदर है |

बधाई
अवनीश तिवारी

Anita kumar का कहना है कि -

उम्दा गीत है सजीव जी बधाई

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत ही सुंदर गीत हैं संजीव जी ..बधाई इतना सुंदर लिखने के लिए

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

सुंदर सजीव जी। दिव्य प्रकाश जी की बात पर ध्यान दीजियेगा।

Anonymous का कहना है कि -

जैसे खिली धूप मे बरसात आए,
भीनी सी एक खुशबू जगे,
सौंधी सी एक सौगात लाये.
कभी यूं भी आ....
bahut aacha likha hai

Harihar का कहना है कि -

कभी यूं भी आ....

बरस जा मुझ पे ऐसे,

पर्वत पे जैसे, काली घटायें,

सुन्दर गीत है संजीव जी

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

मुझे उतना मज़ा नहीं आया सजीव जी। नयापन नहीं दिखा।

सीमा सचदेव का कहना है कि -

पढ़कर लगा कि पुराने गीतों मी से इधर उधर से भाव लेकर कविता गढ़ दी

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

सुन्दर गीत बना हैं..

कभी यूं भी आ....कभी यूं भी आ....

बढिया..

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