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Monday, April 28, 2008

कवि


हर रोज़ की तरह
आज भी
उसने सुबह के नाश्ते में
कल के बासी चाँद पर
चुपड़ ली थोडी ताजी धूप
घी की तरह

किसी ने उसे नही टोका
जब वो भरी दोपहर
शहर की सबसे तेज़ सड़क पर खड़े होकर कहने लगा
कि
दरअसल ये सड़क एक नदी है
जो बहती है खिड़की वाले पहाड़ों के बीच

उन्हीं खिड़किओं से झांकते सन्नाटे से
काफी देर तक बातें की उसने
और
कई बातें बचाकर ले आया अपनी कलम में
शाम के नाश्ते के लिए

वो
रोज़ की तरह आदतन रुक गया
उस दुकान पर
जहाँ रोज़ बिकती थी ज़िंदगी टके सेर
दिन भर के कमाए दुःख से
आज फ़िर
सपनों के शहर में उसने शब्द ख़रीदे
और भूखा सो गया .

रचनाकार- पावस नीर (मार्च २००८ अंक यूनिकवि)

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18 कविताप्रेमियों का कहना है :

गौरव सोलंकी का कहना है कि -

ऐसी कविताएं ही होती हैं, जिन्हें बार बार पढ़ने को जी चाहता है। हिन्द-युग्म आपको पाकर धन्य है।

सीमा सचदेव का कहना है कि -

कहते है कवि कविता नही लिखता
लिखती है कविता कवि को अकसर
आ जाती यह जब भी चाहे
न देखे यह कोई अवसर
आपकी कविता भी एक सच्चे कवि को व्यक्त कर रही है .....सीमा

नेहा का कहना है कि -

behad sunadar kavita!!!

शोभा का कहना है कि -

पावस नीर जी
बहुत सुन्दर बिम्द लिए हैं-
हर रोज़ की तरह
आज भी
उसने सुबह के नाश्ते में
कल के बासी चाँद पर
चुपड़ ली थोडी ताजी धूप
घी की तरह

स ुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

उन्हीं खिड़किओं से झांकते सन्नाटे से
काफी देर तक बातें की उसने
और
कई बातें बचाकर ले आया अपनी कलम में
शाम के नाश्ते के लिए
-- एक विशिष्ट शैली है आपकी |
सुंदर |

अवनीश तिवारी

Sajeev का कहना है कि -

वाह... gauarv से सहमत हूँ १०० फीसदी

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

दिन भर की मेहनत का बाद---तपती धूप से बचते-बचाते--जब आया घर--तो अंतरजाल में दिखे------पावस नीर-----कवि--- वाह। क्या कविता है।-------पढ़ते ही भींग गया अपना मन-----अंगुलियॉ थिरकने लगीं बधाई देने के लिए---बधाई पावस नीर---धन्यवाद-- हिन्द-युग्म-।-devendrambika@gmail.com

विश्व दीपक का कहना है कि -

क्या कहूँ पावस!!!

एक अलग हीं स्तर की कविता है,जिसे पढने पर कवि होने का फख्र होता है। यार!! तुम युग्म के लिए एक धरोहर हो।

बधाई स्वीकारो।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

Anonymous का कहना है कि -

bahut sundar badhai

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

पावस जी, आपकी अब तक की हर कविता उम्दा है। आप ऐसे ही लिखते रहें। युग्म को व समाज को आपकी जरुरत है।
धन्यवाद

Dinesh Singh का कहना है कि -

It is really a very nice poem. The last few lines touched my heart. Great gooing Pawas and keep posting. I am eager to read your next one. cheers, dinesh.

Harihar का कहना है कि -

आज भी
उसने सुबह के नाश्ते में
कल के बासी चाँद पर
चुपड़ ली थोडी ताजी धूप
घी की तरह
पावस नीर जी
आपकी कविता पढ़ कर
जो आनन्द आया उसे मैं बयान नहीं कर सकता

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

वाह !

मोह लिया आपकी लेखनी ने
मन करता है कि सुबह के नाश्ते से
रात के भोज तक..
यही आचमन करता रहूँ
और प्यास बरकरार रहे..

Anonymous का कहना है कि -

पावस जी , आपकी कविताएँ जिंदगी के बहुत करीब होती हैं, ऐसी ही यह कविता भी है, बहुत सुंदर लिखा है --

वो
रोज़ की तरह आदतन रुक गया
उस दुकान पर
जहाँ रोज़ बिकती थी ज़िंदगी टके सेर
दिन भर के कमाए दुःख से
आज फ़िर
सपनों के शहर में उसने शब्द ख़रीदे
और भूखा सो गया .

बधाई स्वीकारें

^^पूजा अनिल

Unknown का कहना है कि -

दिन भर के कमाए दुःख से
आज फ़िर
सपनों के शहर में उसने शब्द ख़रीदे
और भूखा सो गया .

बहुत ही अच्छे विचार है

सुमित भारद्वाज

Anonymous का कहना है कि -

बहुत खूब पावस,बेहतरीन
आलोक सिंह "साहिल"

विपुल का कहना है कि -

अनूठे बिंबों और उपमानों से सजी एक़ अद्भुत कविता .... कवि की क़हानी कवि की ज़ुबानी ...
बहुत अच्छा लगा पढ़कर...

pinki vajpayee का कहना है कि -

kaffi sunder likhte hain aap....man ko bhitar tak chhujati hain aap ki kavitayen...........

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