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Wednesday, April 23, 2008

गज़ल - लबों पे


लबों पे ये हल्की सी लाली जो छायी ।
हमारी है लगता तुम्हे याद आयी ॥

खुदा ने नवाजा करम से है हमको,
हमारी इबादत है उसको तो भायी ।

हथेली पे सच रख मै चलता हूँ लेकर,
न भाती जहां को ये सच से सगाई ।

धरा है पटी पापियों के कदम से,
कहां है खुदा जिसने दुनिया बनाई ।

बशर हर यहां बोल मीठा ही चाहे,
भले चाशनी में हो लिपटी बुराई ।

हमें कह के अपना न तुम यूं सताओ
चले जाते तुम हमको आती रुलाई ।

गिरे शाख से फूल जब कोई टूटे,
जुड़े कैसे कुलवंत जग हो हसाई ।

कवि कुलवंत सिंह

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

Kavi Deependra का कहना है कि -

आदरणीय कुलवंत जी ,
जिस संजीदगी और सादगी के साथ आपने अपनी ग़ज़ल मे शब्दों को पिरोया है वह काबिले तारीफ़ है ! आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा मे !
कवि दीपेंद्र

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

इस बार ग़ज़ल अच्छी बनायी है |
पसंद आयी |

अब आप गज़लाकार भी हो ऐसा मुझे लगाने लगा है |
-- अवनीश तिवारी

Anonymous का कहना है कि -

bahut khub bahdai,sundar gazal

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

वाह, कुलवंत जी

बहुत ही सुन्दर गजल बनी है..

बधाई...

Harihar का कहना है कि -

धरा है पटी पापियों के कदम से,
कहां है खुदा जिसने दुनिया बनाई ।
बहुत खूब कुलवंत सिंह जी!

रंजू भाटिया का कहना है कि -

धरा है पटी पापियों के कदम से,
कहां है खुदा जिसने दुनिया बनाई ।

बहुत ही सुंदर गजल लिखी है आपने कवि जी ..हर शेर दिल को छू लेने वाला है !!

विश्व दीपक का कहना है कि -

कवि जी!
अच्छी गज़ल है। कुछ शेर और भी बढिया हो सकते थे। कहा जाता है कि वही शेर दिल को छूता है, जिसकी दूसरी पंक्ति "punch line" जैसी हो। मुझे आपके मतले ,छठे और अंतिम शेर में इस punch line की कमी लगी । बाकी शेर अच्छे हैं।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

Kavi Kulwant का कहना है कि -

आप सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद..

सीमा सचदेव का कहना है कि -

कुलवंत जी आपकी ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी |बधाई

Anonymous का कहना है कि -

कवि कुलवंत जी , अच्छी ग़ज़ल लिखी है , शुभकामनाएँ

^^ पूजा अनिल

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