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Friday, April 25, 2008

मुट्ठी भर धूप


यूनिकवि प्रतियोगिता के ७वें स्थान के विजेता देवेन्द्र कुमार पाण्डेय का परिचय हमें अब प्राप्त हुआ है। आज हम इन्हीं की पुरस्कृत कविता 'मुट्ठी भर धूप' लेकर उपस्थित हैं।

नाम- देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
जन्म तिथि- ०४-०७-१९६३
कार्यालय- कार्यालय जि०वि०नि०-वाराणसी में लेखाकार पद पर कार्यरत।
शिक्षा- बी०काम०आनर्स -एम०काम०-काशी हिन्दू विश्वविद्यालय-वाराणसी।
पता- सा-१०/६५- शांती नगर कालोनी-गंज-सारनाथ-वाराणसी।
साहित्यिक गतिविधि- न्यूनतम-----बचपन से शौकिया कविता लेखन---विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित-आकाशवाणी-दूरदर्शन से काव्य-पाठ-----मूलतः व्यंग लेखन में ही कार्य।

पुरस्कृत कविता- मुट्ठी भर धूप

एक प्रश्न करना था
बूढ़ी होती जा रही संध्या से
न कर सका।
एक प्रश्न करना था
उषा की लाली से
न कर सका।
न जाने कैसे दुष्ट सूरज
जान गया सब कुछ
किरणों से मिलकर
लगाने लगा ठहाके।
उत्तर
आइनों से निकलकर
जलाने लगे
मेरी ही हथेलियॉं।
सहज नहीं है
कैद करना
धूप को
मुट्ठियों में।



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ६॰२, ४॰५, ७॰१
औसत अंक- ५॰४५
स्थान- चौदहवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६, ६॰१, ४, ५॰४५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰३८७५
स्थान- सातवाँ


पुरस्कार- ज्योतिषाचार्य उपेन्द्र दत्त शर्मा की ओर से उनके काव्य-संग्रह 'एक लेखनी के सात रंग' की स्वहस्ताक्षरित प्रति।

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

मेनका का कहना है कि -

आपने बहुत ही गूढ़ कविता लिखी है जिसमे जीवन की सच्चाई है.जिस सच से हम सभी भागते रहते है पर वो सच है...न मिटने वाला|
कुछ पंक्तियाँ कहना चाहूंगी...

मुठ्ठी मे बंद..रेत को गिरने दो अपनी रफ़्तार मे
मुठ्ठी मे हवा न रोक पाओगे
मुठ्ठी मे धूप न बाँध पाओगे
मुठ्ठी मे बंद जिंदगी..जीने दो अपनी रवानी मे

Anonymous का कहना है कि -

bahut khub badhai

Harihar का कहना है कि -

न जाने कैसे दुष्ट सूरज
जान गया सब कुछ
किरणों से मिलकर
लगाने लगा ठहाके।
बहुत खूब देवेन्द्र जी ! कविता को कुछ और आगे
बढ़ाने का भी स्कोप था

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बहुत अच्छा |

स्वागत है |

अवनीश तिवारी

शोभा का कहना है कि -

ansalदेवेन्द्र जी
मुझे आपकी कविता बहुत ही पसंद आई-
न जाने कैसे दुष्ट सूरज
जान गया सब कुछ
किरणों से मिलकर
लगाने लगा ठहाके।
उत्तर
आइनों से निकलकर
जलाने लगे
बधाई

सीमा सचदेव का कहना है कि -

sach me jeevan roopi sooray bhi to yoo dekhate hi dekhate doob jaata hai ,aur javaani ki dhoop kab aai aur kab chali gai pata hi nahi chalta .bahut kam shabdo me aapne kadva sach aasaani se byaan kar diya. BADHAAI....SEEMA

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

एक अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें.

-राघव

Anonymous का कहना है कि -

बधाई स्वीकार करें सर जी
आलोक सिंह "साहिल"

shailesh का कहना है कि -

wish i could understand more..!!
jitna samajh aaya wo to amazing hai..
par shayad mai last ki lines ki depth tak nhi ja pa raha..!!

Sunil Kumar Pandey का कहना है कि -

एक प्रौढ़ कविता.......
साधुवाद.......

raybanoutlet001 का कहना है कि -

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