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Monday, May 19, 2008

राम भक्तों का बहुत होने लगा 'ड्रामा' यहाँ


६३ वर्षीय प्रेमचंद सहजवाला गद्य लेखन को पीछे छोड़ते हुए आजकल ग़ज़ल से प्रेम कर बैठे हैं और इस नाते हिन्द-युग्म के पाठकों का प्रेम भी पा रहे हैं। आज हम ईनामी कविता के रूप में इस माह प्रकाशित इनकी तीसरी ग़ज़ल लेकर आये हैं (प्रत्येक ग़ज़ल रु १०० के हिसाब से नकद ईनाम भी जीत रहे हैं)।

ग़ज़ल

छोटी छोटी बात पे होता है हंगामा यहाँ
चाहे कुर्ता तंग या छोटा हो पाजामा यहाँ

खौफ का माहौल है अब नींद कैसे आएगी
रोज़ सपनों में खड़ा रहता है ओसामा यहाँ

इस जग्ह मन्दिर बने और उस जग्ह सेतु रहे
राम भक्तों का बहुत होने लगा 'ड्रामा' यहाँ

लाठियों के ज़ोर पर ही हम विचरते मुल्क में
सभ्यता को हम ने ही कांधों पे है थामा यहाँ

हथकडी में तूलिका ले कर बनाओ चित्र सब
चित्रकारों से कहो लिक्खें हलफनामा यहाँ

भूख से भी है बड़ा ऐ दोस्त वंदे मातरम्
यह बताने के लिए आया हुक्मनामा यहाँ

आज पंचों ने दिया है गोत्र पर ये फ़ैसला
बाप ही कहलायेगा बेटे का अब मामा यहाँ

जल गयी मजबूर सी वह प्यार कर के भूल से
किस कदर बेबस हुई हर गांव की वामा यहाँ

-प्रेमचंद सहजवाला

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16 कविताप्रेमियों का कहना है :

दिनेशराय द्विवेदी का कहना है कि -

सत्यम् शिवम् सुन्दरम्!

Harihar का कहना है कि -

लाठियों के ज़ोर पर ही हम विचरते मुल्क में
सभ्यता को हम ने ही कांधों पे है थामा यहाँ
बहुत खूब प्रेमचन्द जी !
आपका तो एक एक शेर लाजवाब है

Unknown का कहना है कि -

प्रेमचंद जी, अब में क्या कहूं? मैं भी एक राम भक्त हूँ. मैं भी चाहता हूँ कि राम मन्दिर उसी स्थान पर बने जहाँ मेरा विश्वास कहता है. मैं यह भी चाहता हूँ कि राम सेतु को कोई नुकसान न पहुंचे. पर आपने मेरे इस विश्वास को ड्रामा ही कह दिया. और भी बहुत कुछ लिखा है आपने. शायद हिन्दुओं की हर बात आपको ग़लत लगती है. हुसैन ने शक्ति माँ की नग्न पेंटिंग बनाई. सबने उसकी बहुत तारीफ़ की. जिन्हें इस से तकलीफ पहुँची उन्हें ग़लत कहा गया. शायद आप भी उसी श्रृंख्ला की अगली कड़ी बनना चाहते हैं. स्वागत है आपका. आपकी इस कविता को इनाम भी मिला है. वधाई हो. और ग़ज़ल likhiye. इनाम जीतिये. आपकी नई रचनाओं का हमें भी इंतज़ार रहेगा.

Prem Chand Sahajwala का कहना है कि -

भाई सुरेश जी को राम भक्तों संबंधित पंक्तियों पर ठेस पहुँची है पर इस के बावजूद उन्होंने मुझे एक गज़ल्गो के रूप में शुभकामना व बधाई दी है यह निश्चित रूप से उन की विशाल हृदयता का प्रतीक है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत कोई भी रचनाकार व्यक्तिगत आक्षेप नहीं करता वरन उस दृष्टिकोण पर प्रहार करता है जो उस की अपनी दृष्टि में ग़लत हो. स्वयं हिंदू होने के नाते हिंदू धर्मं व समाज की विसंगतियों को लेखंबद्ध करना मैं अपना कर्तव्य मानता हूँ तथा यह भी बखूबी समझता हूँ की मेरे दृष्टिकोण के विरुद्ध दृष्टिकोण प्रस्तुत करने का भी अन्य विचारकों यथा गुप्ता जी को पूरा अधिकार है. आशा है श्री गुप्ता जी किसी बात का बुरा नहीं मानेंगे. धन्यवाद. ग़ज़ल आप को पसंद आयी यह भी आप की विशालता है.

Divya Prakash का कहना है कि -

मुझे ग़ज़ल के भाव बड़े अच्छे लगे ,लेकिन एक दो जगह गेयता टूट रही है ...
बाकि मुझे तो हुसैन साहब अपनी जगह सही लगते हैं और और सारे राम भक्त अपनी जगह सही है |I feel persception is reality .
मेरे विचार तो ये हैं
"चलो आज मस्जिद की घंटी बजा लें
चलो आज मन्दिर मैं अल्लाह पुकारें "
अब इससे किसी मौलवी को दिक्कत हो या किस्सी मन्दिर का धर्म भ्रष्ट हो तो उसका जिम्मेदार मैं नही क्यूंकि ये मेरी सच्चाई है |
सुरेश चंद्र जी आपकी विशाल हृदयता से मैं प्रभावित हुआ और अपने जीवन मैं ये उतारने की कोशिश करूँगा |
दिव्य प्रकाश

Divya Prakash का कहना है कि -

मुझे ग़ज़ल के भाव बड़े अच्छे लगे ,लेकिन एक दो जगह गेयता टूट रही है ...
बाकि मुझे तो हुसैन साहब अपनी जगह सही लगते हैं और और सारे राम भक्त अपनी जगह सही है |I feel perception is reality .
मेरे विचार तो ये हैं
"चलो आज मस्जिद की घंटी बजा लें
चलो आज मन्दिर मैं अल्लाह पुकारें "
अब इससे किसी मौलवी को दिक्कत हो या किस्सी मन्दिर का धर्म भ्रष्ट हो तो उसका जिम्मेदार मैं नही क्यूंकि ये मेरी सच्चाई है |
सुरेश चंद्र जी आपकी विशाल हृदयता से मैं प्रभावित हुआ और अपने जीवन मैं ये उतारने की कोशिश करूँगा |
दिव्य प्रकाश

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

सहजवाला जी,

कुछ शेर बहुत अच्छे बन पडे हैं:

हथकडी में तूलिका ले कर बनाओ चित्र सब
चित्रकारों से कहो लिक्खें हलफनामा यहाँ

आज पंचों ने दिया है गोत्र पर ये फ़ैसला
बाप ही कहलायेगा बेटे का अब मामा यहाँ

कुछ शेर जिन पर आस्थाओं के प्रश्न भी उठे हैं, ठीक-ठीक हैं, किंतु कलात्मकता से बात न कह कर सीधे कहे जाने की स्थिति में प्रश्नचिन्ह हो गये हैं..

***राजीव रंजन प्रसाद

Kavi Kulwant का कहना है कि -

एक सहज गज़ल..

Pooja Anil का कहना है कि -

प्रेमचंद जी,
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही है आपने

छोटी छोटी बात पे होता है हंगामा यहाँ
चाहे कुर्ता तंग या छोटा हो पाजामा यहाँ

हथकडी में तूलिका ले कर बनाओ चित्र सब
चित्रकारों से कहो लिक्खें हलफनामा यहाँ

ऐसे ही लिखते रहें.
शुभकामनाएं
^^पूजा अनिल

विश्व दीपक का कहना है कि -

प्रेमचंद जी,
गज़ल एवं गज़लगो की तारीफ इसलिए की जानी चाहिए,क्योंकि आप गज़ल के नियमों से वाकिफ हैं और उनकी अनदेखी नहीं करते, वरना कई सारे कवि-मित्र तो गज़ल को नज़्म या फिर साधारण कविता का नाम देकर पल्ला झाड़ लेना चाहते हैं।

अब रही भाव की बात तो.....
कुछ शेर बढिया हैं। परंतु ढेर सारे शेरों पर मेहनत की आवश्यकता है। मुझे मतला हीं नहीं जमा। कुछ अच्छा लिखा जा सकता था......पहली पंक्ति ठीक है परंतु दूसरी पढकर लगता है कि जबरदस्ती खींचा गया है। धर्म की बात सही से लाई जानी चाहिये थी, क्योंकि धर्म एक संवेदनशील मुद्दा है परंतु आपने "ड्रामा" कहकर हद हीं पार कर दी है।

आज पंचों ने दिया है गोत्र पर ये फ़ैसला
बाप ही कहलायेगा बेटे का अब मामा यहाँ

यह शेर भाव के दॄष्टिकोण से सराहनीय है,परंतु शिल्प स्तर का नहीं है।

जो शेर मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया, वह है-

लाठियों के ज़ोर पर ही हम विचरते मुल्क में
सभ्यता को हम ने ही कांधों पे है थामा यहाँ


प्रेमचंद जी!
आपसे ढेर सारी उम्मीदें है, कृप्या इसका ध्यान रखें।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

दिवाकर मिश्र का कहना है कि -

प्रेमचंद जी, आपको पुरस्कार पाने के लिए बधाई । केवल पुरस्कार पाने की बधाई ही नहीं दे रहा हूँ बल्कि ग़ज़ल की कलात्मकता की भी प्रशंसा करता हूँ । इसमें शेऽर संख्या १,२,६,७,८ के भाव भी मुझे अच्छे लगे । बाकी शेऽरों के भावों से भी मैं शायद सहमत होता यदि मुझे इनसे व्यंजित व्यक्तिगत तथ्य के बारे में न पता होता । ऊपर सुरेश जी के हृदय की उदारता की प्रशंसा तो कर दी गई पर उसकी पीड़ा को पढ़ने की कोशिश नहीं की गई । शायद पीड़ा सहते हुए ही हिन्दू तारीफ़ के काबिल लगते हैं ।

मन्दिर बनाने की जिद को आप ड्रामा कह रहे हैं । काशी (विश्वनाथ), मथुरा, अयोध्या- लगभग सभी प्रमुख आस्था केन्द्रों के मुख्य मन्दिरों को उनकी मूल जगह से हटा दिया गया । काशी और मथुरा के मन्दिर मूल जगह से कुछ दूर बन भी गए हैं । अयोध्या का मन्दिर तो उतना भी नहीं बनने पा रहा है । इतना जोर देने पर भी यह नहीं हो पा रहा है, तो क्या चुप रहने से आशा कर ली जाए कि ऊपर वाला खुद कर देगा सब ठीक । अगर ऐसा भी हो तो भी आलोचना की जाती है कि कायर हैं, जैसा सोमनाथ मन्दिर की लूट के बारे में कहा जाता है कि पुजारियों ने कुछ प्रतिरोध नहीं किया यह सोचकर कि भगवान खुद हमारी रक्षा करेंगे । यह कौन मानने को तैयार होगा कि वह मन्दिर अप्रतिरोध के कारण नहीं बल्कि भीषण जनसंहार करके लूटा गया क्योंकि उस मन्दिर की रक्षा का दायित्व निहत्थे पुजारियों (सशस्त्र सैनिक नहीं) पर था ।

धर्मवीर भारती को भी शिकायत है कि यह धर्म संकट पड़ने पर प्रतिरोध करने की नहीं बल्कि अपने को छिपा लेने की वकालत करता है । इसी कारण उन्होंने इसे कछुआ धरम (इसी नाम के निबन्ध में) नाम दे डाला । जब वही धरम अपनी आस्था पर प्रहार के विरोध में प्रतिरोध करता है, तो वह आक्रामक कहा जाता है, दकियानूसी कहा जाता है, कुंठित कहा जाता है, रूढ़िवादी कहा जाता है, साम्प्रदायिक (गाली के रूप में) कहा जाता है । यानी लोग दोनों ही तरह से जीने नहीं देना चाहते । ऐसे में यही ठीक मार्ग बचता है कि अपना रास्ता दूसरों की बातें सुनकर नहीं, अपनी अन्तरात्मा की आवाज सुनकर तय करना चाहिए, भले ही उसे कोई कितना भी गलत ठहराए, कितनी ही व्यंग्यात्मक कविताएँ या निबन्ध लिखे । ध्यान देने की बात है कि यहाँ अन्तरात्मा की आवाज कहा है, मत्त मन की आवाज नहीं । वैसे इनका आक्रामक रवैया मुझे पसन्द नहीं और मैं इनसे जुड़ा भी नहीं हूँ । परन्तु जिसे मैं पसन्द नहीं भी करता, उस पर भी गलत आरोप मुझे ठीक नहीं लगता । .

लाठियों के जोर पर विचरने वाले लोगों की बात जो कही, वह भी ध्यान देने योग्य है कि वे अपने हथियार लहराते भले ही अक्सर देखे जाते हों पर हिंसक गतिविधियों में वे प्रायः प्रयोग नहीं होते । दंगे तो असामान्य स्थितियाँ है । कहीं भी ये लाठियों वाले बम विस्फोट करते नहीं पाए जाते । कहीं भी आतंकवादी संगठनों हो हथियार, धन, अपहृत व्यक्ति आदि उपलब्ध कराते नहीं पाए जाते । कभी अपने लिए देश का एक अलग टुकड़ा माँगते हुए नहीं पाए जाते । देश पर आक्रमण करने को किसी विदेशी ताकत को समर्थन-सहयोग करने नहीं दिखाई देते (जैसे कारगिल युद्ध के समय बड़े पैमाने पर पड़ोसी देश को अनुदान के बहाने पैसा भेजना और चीन द्वारा भारत पर हमला किए जाने पर red army comes to liberate us कहकर उनका स्वागत करना) । यह सही है कि धर्म और संस्कृति के इकलौते संरक्षक होने का दावा मुझे भी पसन्द नहीं है ।

छठे शेऽर में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को हथकड़ियाँ लगाने वाले की अच्छे से खिंचाई की गई है, जैसे जो जोधा-अकबर को इसलिए नहीं चलने देते कि इसमें (उनके अनुसार) तथ्य ऐतिहासिक नहीं हैं । बहुत सही कहा गया है । पर “तूलिका” शब्द से साफ साफ आप बसन्ती की धन्नो के प्रशंसक एम एफ़ हुसैन का पक्ष लेते हुए लग रहे हैं । इसपर मैं कहूँगा कि हुसैन सौभाग्यशाली है कि उसने विश्व की सबसे सहिष्णु जाति की आस्था पर प्रहार किया है । ... आप सभी चौंक गए न, ‘सहिष्णु’ शब्द देखकर ? यकीन नहीं आता ? तो तुलना करके देख लीजिए, डेनमार्क के कार्टूनिस्ट के कामों को हुसैन के कामों में शामिल कर लीजिए । अरे वह तो उसका घरेलू मामला है, अपने ही धर्म के अन्दर अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता दिखा रहा है । मैने वे विवादित कार्टून इंटरनेट पर देखे हैं । उनमें परम्परा में प्रसिद्ध घटनाओं को ही चित्रित किया गया है और उनमें अश्लीलता भी नहीं है । यहाँ तो यह भी आरोप नहीं बनता कि ईश्वर निराकार है उसको साकार क्यों बनाया, क्योंकि यहाँ ईश्वर के दूत को साकार बनाया गया है, ईश्वर को नहीं । या दूसरा उदाहरण ले लीजिए, ईसाई धर्म के प्रति ही वह अपराध करता जो हमारे धर्म के प्रति किया है, तो फिर शायद इस कलाकार को बुढ़ापा नहीं देखना पड़ता (या देखने को नहीं मिलता) । और उदाहरण लीजिए, तालिबान ने सोचा था कि गायों को काटकर बोरों में भरेंगे, बुद्ध की प्रतिमाएँ तोड़ेंगे तो जग जीत लेंगे, इसी जोश में उसने अमेरिका की दो इमारतें भी ध्वस्त कर डालीं । वह देश भारत नहीं अमेरिका था और उसका धर्म वैदिक, जैन या बौद्ध नहीं, ईसाई था (भले ही घोषित रूप से धर्म निरपेक्ष हो) । उसने अच्छा प्रतिरोध किया । और उदाहरण लें, वेद-मन्त्रों को निरर्थक कह देने वाले कौत्स मुनि को भी ऋषियों में स्थान मिलता है, वहीं बाइबिल में केवल दो व्याख्याएँ हुई हैं (old testament and new testament) और आगे कोई अपने अनुसार अर्थ नहीं ले सकता । ऐसे ही क़ुरान में भी संशोधन तो दूर, अपने हिसाब से कोई व्याख्या भी नहीं कर सकता । वेद के तो समय समय पर भाष्य होते रहे हैं, और वेद स्वयं ही एक व्यक्ति के विचार न होकर कई लोगों के दर्शन हैं और सभी भागों पर यह धर्म श्रद्धा रखता है, और श्रद्धा के बावजूद सभी विचार के लिए खुले हैं, उनकी आलोचना भी की जा सकती है । लेकिन इस उदारता का लाभ लोग निन्दा और बेइज्जती करके उठाना चाहते हैं, इतना तो बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, चाहे कितनी ही कविताएँ या निबन्ध इस पर व्यंग्य कर लें ।

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

गजल का मतला अच्छा है। मेरी समझ में सुरेशजी की टिप्पणी उन हिदुओं की वेदना को व्यक्त करती है जो राम भक्त हैं---मेरी समझ में यह एक शालीन कटाक्ष है जिसे तारीफ समझा गया।

सीमा सचदेव का कहना है कि -

प्रेमचंद जी आपकी ग़ज़ल अच्छी लगी |बधाई ........सीमा सचदेव

SahityaShilpi का कहना है कि -

तन्हा जी की विश्लेषणात्मक टिप्पणी के बाद और कुछ कहने को मेरे पास नहीं रह जाता. आशा है कि आगे आपकी और बेहतर रचनायें पढ़ने को मिलेंगी.

Anonymous का कहना है कि -

हथकडी में तूलिका ले कर बनाओ चित्र सब
चित्रकारों से कहो लिक्खें हलफनामा यहाँ
बहुत खूब

Anonymous का कहना है कि -

इश ब्लॉग में भाग लेने सभी भद्रजनों को मेरा आतंरिक बधाई.... सतीश गुप्ता और दिव्यप्रकाशजी का भब्यो आचारों सें में बहुत प्रभावित हूँ. ...
इस घजल या कविता कुछ राम भक्तो का दिल दुखा सकता हैं, मगर में सोचता हूँ कवि ने राम का नाम लेकर आम आदमी को भरकाने के खिलाफ में संका जताया हैं. .परन्तु में राजीव रंजन प्रसाद जी का बिचार से भी संमत हूँ..." कुछ शेर जिन पर आस्थाओं के प्रश्न भी उठे हैं, ठीक-ठीक हैं, किंतु कलात्मकता से बात न कह कर सीधे कहे जाने की स्थिति में प्रश्नचिन्ह हो गये हैं.." ::
श्यामल बरुआ

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