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Sunday, May 11, 2008

बस स्टैंड में ..


बसें आतीं -जातीं रहतीं
मिलतीं एक -दूसरे से
जीवन के उत्तीर्ण संध्या में
किसी परिचित सहेलियों की भाँति...

एक सम्मिलित वैषम्य
प्रस्थान-आगमन व अपेक्षा-खिन्नता का
आनंद-उत्तेजना व विरक्ति-शून्यता का
क्षणिक सम्बन्ध व अश्लील इतरता का .....

कहीं मालिक की दृष्टि से बँधी
फालतू संपत्ति की गठरी
पालतू कुत्ते की भाँति सो जातीं हैं तो
कहीं आधी राह तय करनेवाले अदूरदर्शी मुसाफिर
टिकट के टुकडों को मुट्ठी में जकड़े
आधी नींद में ऊँघ रहे होते हैं .....

सस्ते सामग्री से भरे दुकानों में
दूकानदार निर्विकार ....
बचे - कुचे समय बिताने के लिए
ग्राहकों की मांग उन वस्तुओं के लिए जो
उसकी दूकान की शोभा बढ़ाने में असमर्थ ..
सामयिक पत्रिका के पन्नों में छपे
पारंपरिक अक्षर मौन ...
एकाध दुस्साहसी पाठक की निगाह खोज लेती हैं
रोमांचक घटनाओं को ..

और रात में ?
तीन गहरी साँस...
शहर भिन्न दिखाई देता ,
परिचित बन जाता पुराना चाँद,
और खो जाते हैं
हजारों परिचित पते ...
थोडी देर और ...
हवा के हाथों में एक नई कहानी
शीर्षक...
नर्क आलोकित या फ़िर
पता नहीं स्वर्ग है या नहीं .....

सुनीता यादव

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

Prabhakar Pandey का कहना है कि -

सुंदरतम एवं यथार्थ रचना।

शोभा का कहना है कि -

सुनीता जी
बहुत ही सुन्दर लिखा है। बधाई।

ममता पंडित का कहना है कि -

सामयिक पत्रिका के पन्नों में छपे
पारंपरिक अक्षर मौन ...
एकाध दुस्साहसी पाठक की निगाह खोज लेती हैं
रोमांचक घटनाओं को ..

सुनीता जी बहुत ही गहरी बात कही है आपने, इस सुंदर रचना के लिए बधाई |

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

भाव पहले जैसे गहरे लेकिन शब्द शैली पहले से सरल |
Good effort
-- अवनीश तिवारी

Sajeev का कहना है कि -

सुनीता मेरी नज़र में ये तुम्हारी अब तक की सबसे अच्छी रचना है, अब तुम पुराने शब्दों से बाहर आकर अपने ख़ुद के शब्द रच रही हो, ये बहुत अच्छा संकेत है..... यूहीं और बढ़िया लिखती रहो... बहुत बहुत बधाई

Harihar का कहना है कि -

ग्राहकों की मांग उन वस्तुओं के लिए जो
उसकी दूकान की शोभा बढ़ाने में असमर्थ ..
सामयिक पत्रिका के पन्नों में छपे
पारंपरिक अक्षर मौन ...
एकाध दुस्साहसी पाठक की निगाह खोज लेती हैं
रोमांचक घटनाओं को ..

बहुत सुन्दर ! सुनीता जी

सीमा सचदेव का कहना है कि -

हवा के हाथों में एक नई कहानी
शीर्षक...
नर्क आलोकित या फ़िर
पता नहीं स्वर्ग है या नहीं .....

बहुत अच्छा लगा

Pooja Anil का कहना है कि -

सुनीता जी,

बहुत ही सुंदर,शब्द सामंजस्य खास तौर पर अच्छा लगा, इसी तरह लिखती रहें,ढेरों शुभकामनाएँ

^^पूजा अनिल

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

लिखा तो सागर से हटकर
परंतु सागर फिर भी समाये हैं
एक एक शब्द में लहर है
और भाव, बे-भाव तलहटी से टकराये हैं
जी हाँ अभी अभी ली है
आपकी कलम कमल की खुशबू
और टिप्पणी के जरिये
बस आपको नमन करने आये हैं

Rama का कहना है कि -

डा. रमा द्विवेदी....

गहन भावों की अभिव्यक्ति...गहन चिंतन को दर्शाती यह कविता बहुत कुछ कह जाती है....बधाई व शुभकामनाएँ ....

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