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Sunday, July 06, 2008

जल रहे थे जिस्म दोनों प्यार की ही आग में


प्यार की हर दास्ताँ क्यों जुर्म में लिपटी हुई
पूछती थी कल फज़ा से रूह इक भटकी हुई

प्रार्थना के बाद महबूबा अगर परसाद दे
क्या पता परसाद में ही मौत हो लिखी हुई

किस कदर मगरूर थे रिश्तों पे हम दुनिया में कल
आज है परिवार में मासूमियत सहमी हुई

सैंकड़ों टुकड़ों में कट कर एक आशिक मर गया
मौत थी उसके ही एक रकीब ने सोची हुई

एक आशिक ने परोसी प्रेमिका गिद्धों पे कल
प्रेमिका की लाश फिर छत पर मिली लटकी हुई

कोई भी देता नहीं दिल इस शह्र में दोस्तो
क्या बताएं किस कदर है जिंदगी बिखरी हुई

खूब पी ली मय अगरचे प्यार की तेरे मगर
क्यों न थी आवाज़ थोडी भी मेरी बहकी हुई

जल रहे थे जिस्म दोनों प्यार की ही आग में
फिर न जाने किस लम्हे वो आग भी ठंडी हुई

रुख बदल कर सब हवाएं यक-ब-यक चलने लगी
साजिशे-मौसम थी क्या सोची हुई समझी हुई

कौन था ये कैस जी और कौन थी लैला यहाँ
आज है सारी फजा इस प्रश्न में उलझी हुई

( फ़ज़ा = वातावरण, रूह = आत्मा, रकीब = प्रेमिका का दूसरा प्रेमी या शत्रु, मय = शराब, अगरचे = हालाँकि, कैस = मजनू, यक-ब-यक = सहसा, साजिश = षडयंत्र )


ग़ज़लकार - प्रेमचंद सहजवाला

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

Smart Indian का कहना है कि -

वीभत्स रस?

vivek "Ulloo"Pandey का कहना है कि -

wah aap ne to premika ke wastavik swroop ki kafi achi parikalpana ki hai bahut hi acha likha hai

Unknown का कहना है कि -

प्रेमचंद सहजवाला जी
आपकी ये गजल भी अच्छी है काफिया रदीफ दोनो अच्छी तरह निभा रखे है पर आपकी पिछली गजलो के मुकाबले मे कुछ कमजोर लगी।

सुमित भारद्वाज

Sajeev का कहना है कि -

प्रेम जी आपकी ग़ज़लों में अखबार झांकता है, आज के दौर के प्रेम रिश्तों पर करारा प्रहार

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

एक सामान्य रचना !!

BRAHMA NATH TRIPATHI का कहना है कि -
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BRAHMA NATH TRIPATHI का कहना है कि -

सैंकड़ों टुकड़ों में कट कर एक आशिक मर गया
मौत थी उसके ही एक रकीब ने सोची हुई

कोई भी देता नहीं दिल इस शह्र में दोस्तो
क्या बताएं किस कदर है जिंदगी बिखरी हुई

जल रहे थे जिस्म दोनों प्यार की ही आग में
फिर न जाने किस लम्हे वो आग भी ठंडी हुई

रुख बदल कर सब हवाएं यक-ब-यक चलने लगी
साजिशे-मौसम थी क्या सोची हुई समझी हुई

बहुत अच्छे शेर और बहुत अच्छी ग़ज़ल
आज समाज का जो स्तर गिर रहा है उसको आपने बखूबी अपनी ग़ज़ल में चित्रित किया है
बहुत ही अच्छा
साजिशे-मौसम थी क्या सोची हुई समझी हुई

रंजना का कहना है कि -

यह भी एक सच्चाई है जो लोगों को सुनने में शायद अच्छी न लगे,पर कटु भी है तो भी सत्य तो है.बहुत ही अच्छी लगी आपकी rachna.

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