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Wednesday, July 23, 2008

तब जाकर विजय शंकर चतुर्वेदी इंसान बने हैं


Vijay Shankar Chaturvediहिन्द-युग्म के जून माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में १०वें स्थान का कवि हिन्दी साहित्य जगत में जाना पहचाना नाम है। स्थापित समकालीन युवा कवियों में से एक विजय शंकर चतुर्वेदी 'पहली कविता' सीरिज के अंतर्गत 'बीड़ी सुलगाते पिता' के माध्यम से हमारे संपर्क में आये थे। इनकी कलम इतनी धार रखती है कि अधिकतर पाठकों को यह विश्वास नहीं हुआ था कि 'बीड़ी सुलगाते पिता' इनकी प्रथम कविता है। 15 जून, 1970 को मध्य प्रदेश के सतना जिले की नागौद तहसील के आमा गाँव में जन्मे विजय शंकर चतुर्वेदी की कविताएँ पहल, वसुधा, वागर्थ, वर्तमान साहित्य, पंकज बिष्ट के संपादन में निकले 'आजकल' युवा कविता विशेषांक, स्वर्गीय सफदर हाशमी की संस्था 'सहमत' की साप्रादयिकता विरोधी कविता-पुस्तक तथा जनसत्ता, दिल्ली में प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रिंट मीडिया में काम करने की बात करें तो, विजय ४ वर्ष तक जनसत्ता, मुम्बई के उप-संपादक रह चुके हैं।
अखबारी लेखन- लोग हाशिये पर (सबरंग पत्रिका), गलियारा और घूमते-फिरते (संझा जनसत्ता) स्तम्भ. कई कवर स्टोरियां और अनगिनत फीचर आलेख।

टीवी लेखन- 'प्लस चैनल' में चार वर्ष बतौर लेखक रहे। डीडी, स्टार, ज़ी और सोनी टीवी आदि चैनलों के लिए पटकथा लेखन।

पुरस्कृत कविता- गुरुजन

चींटी हमें दयावान बनाती है
बुलबुल चहकना सिखाती है
कोयल बताती है क्या होता है गान
कबूतर सिखाता है शांति का सम्मान.

मोर बताता है कि कैसी होती है खुशी
मैना बाँटती है निश्छल हँसी
तोता बनाता है रट्टू भगत
गौअरैया का गुन है अच्छी संगत.

बगुले का मन रमे धूर्त्तता व धोखे में
हंस का विवेक नीर-क्षीर, खरे-खोटे में
कौवा पढ़ाता है चालाकी का पाठ
बाज़ के देखो हमलावर जैसे ठाठ.

मच्छर बना जाते हैं हिंसक हमें
खटमल भर देते हैं नफ़रत हममें
कछुआ सिखा देता है ढाल बनाना
साँप सिखा देता है अपनों को डँसना.

उल्लू सिखाता है उल्लू सीधा करना
मछली से सीखो- क्या है आँख भरना
केंचुआ भर देता है लिजलिजापन
चूहे का करतब है घोर कायरपन.

लोमड़ी होती है शातिरपने की दुम
बिल्ली से अंधविश्वास न सीखें हम
कुत्ते से जानें वफ़ादारी के राज़
गाय से पायें ममता और लाज.

बैल की पहचान होती है उस मूढ़ता से
जो ढोई जाती है अपनी ही ताकत से
अश्व बना डालता है अलक्ष्य वेगवान
चीता कर देता है भय को भी स्फूर्तिवान.

गधा सरताज है शातिर बेवकूफ़ी का
ऊँट तो लगता है कलाम किसी सूफी का
सिंह है भूख और आलस्य का सिरमौर
बाकी बहुत सारे हैं कितना बताएं और...

सारे पशु पक्षी हममें कुछ न कुछ भरते हैं
तब जाकर हम इंसान होने की बात करते हैं.


प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५॰४, ५
औसत अंक- ५॰२
स्थान- आठवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ८, ४॰५, ४, ५॰५, ५॰२(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰४४
स्थान- दसवाँ


पुरस्कार- मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य-संग्रह 'मौत से जिजीविषा तक' भेंट करेंगे।

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

Smart Indian का कहना है कि -

पुरस्कार के लिए बधाईयाँ.

Yunus Khan का कहना है कि -

विजय भाई बड़े भाई हैं । उनसे मिलना जुलना और बातचीत भले कम हुई हो, एक ही शहर में रहते हुए भी, पर उन्‍हें लगातार पढ़ता रहा हूं । एक बेहतरीन कवि और मित्र को शुभकामनाएं ।

विश्व दीपक का कहना है कि -

विजय जी,
क्षमा चाहता हूँ,मुझे यह कविता कुछ खास नहीं लगी।
कविता में बातें बहुत अच्छी कही गई हैं, लेकिन कहने का ढंग देखकर ऎसा लगा मानो मैं प्रथम या द्वितीय वर्ग का पाठ्य-पुस्तक पढ रहा होऊँ।

आपकी पहली कविता देखकर आपसे उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं। कृप्या ध्यान रखिएगा।

-विश्व दीपक ’तन्हा’

सीमा सचदेव का कहना है कि -

इंसान की कमजोरियों के साथ-साथ आपने पशु-पक्षियों के गुण-दोष भी बता दिए |सीधे-सपष्ट शब्दों में कविता अच्छी लगी |

Smart Indian का कहना है कि -

तनहा जी से सौ-फीसदी सहमत हूँ. सच्चाई यह है कि यह ग़ज़ल एक पुरानी क़व्वाली "कैसे बेशर्म आशिक हैं" की एक सस्ती नक़ल दीख रही है. परन्तु निर्णायकों ने अवश्य ही कुछ अच्छा देखा होगा जो हमें नहीं दिख पा रहा है - इसीलिये बधाई.

करण समस्तीपुरी का कहना है कि -

बहुत खूब !
मौजूदा इंसानियत की पोल ही खोल दिया आपने !! संतुलित एवं सुंदर !! बधाई !!!

BRAHMA NATH TRIPATHI का कहना है कि -

विजय जी तन्हा जी बात से मै सहमत हूँ आप अच्छे कवि है मैंने बीड़ी सुलगाते पिता पढ़ी काफी अच्छी लगी पर इस कविता में पता नही क्यों वो रस नही है
उम्र और अनुभव में आपसे छोटा हूँ बस इससे ज्यादा आप ख़ुद समझ लीजिये

Anonymous का कहना है कि -

थोड़े दम की दरकार थी,पर बधाई स्वीकार करें
आलोक सिंह "साहिल"

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

कविता अच्छी है |
बधाई |
प्रतियोगिता के नज़रिए से तो इतनी प्रभावी भी नही है | इसका अर्थ शंकर जी की गुणवता की कमी नही है |
युग्म को ऐसा अनुभवी शख्स मिलना गौरव की बात है |

-- अवनीश तिवारी

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी का कहना है कि -

सारे पशु पक्षी हममें कुछ न कुछ भरते हैं
तब जाकर हम इंसान होने की बात करते हैं.

सीधी सच्ची बात सरल भाषा में कही है, शिल्प की दृष्टि से भले ही सामान्य लग रही हो किन्तु प्रत्येक कविता में विशिष्टता हो ये जरूरी नहीं.

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

शुरू में बाल-कविता जैसी लगनी वाली पंक्तियाँ, अंत में ग़ज़ब का सटायर मारती हैं।

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