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Saturday, August 02, 2008

निवेदन


मेरे शब्द प्रतीक्षारत हैं स्वर अपने दे जाना तुम

मन-मंदिर का तम मिट जाए ऐसा दीप जलाना तुम


नील गगन सी विस्तृत आँखें

सजते जिसमे स्वप्न-सितारे

मैं पीड़ा की महानिशा में

चक्रवाक ज्यों नदी किनारे

दग्ध-हृदय कुछ तो शीतल हो मिलन-सुधा बरसाना तुम

मेरे शब्द…………………………………………………


रिश्तों की शुष्क लता जी जाए

स्नेह-वारियुत सावन हो

छूते ही स्वर्ण बना दोगे

तुम तो पारस से पावन हो

मैं दूँ पत्थर को मूर्त्तरूप, मूर्त्ति में प्राण बिठाना तुम

मेरे शब्द……………………………………………


----रविकांत पाण्डेय

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

Smart Indian का कहना है कि -

मैं पीड़ा की महानिशा में
चक्रवाक ज्यों नदी किनारे
दग्ध-हृदय कुछ तो शीतल हो मिलन-सुधा बरसाना तुम

अति सुंदर!
भावों की गहराई, शब्दों की सुन्दरता, भाषा की मधुरता, संगीत की लय, सभी का समन्वय है इस कविता में.

अमिताभ मीत का कहना है कि -

मैं दूँ पत्थर को मूर्त्तरूप, मूर्त्ति में प्राण बिठाना तुम
मेरे शब्द……………………………………………

अच्छी कविता है रविकांत जी. लिखते रहें. बधाई.

BRAHMA NATH TRIPATHI का कहना है कि -

मैं दूँ पत्थर को मूर्त्तरूप, मूर्त्ति में प्राण बिठाना तुम

मेरे शब्द……………………………………………

एक पवन अहसास बहुत सुंदर अभिव्यक्ति रविकांत जी

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

रविकांत पाण्डेय जी,

आपकी कविता..
१) को पढ़ कर मन से एक ही बात निकली... वाह!!! बहुत ही सुन्दर गेय काव्य...
इसे अपनी आवाज़ जरूर दीजिये...
२) भावः इतने सुन्दर की दिल मै घर कर गए हैं...
३) बहुत ही अच्चे रूपक,और उपमा अलंकार का प्रयोग किया है मसलन "पीड़ा की महानिश" और "नील गगन सी विस्तृत आँखे"
४)वाकई आपको अपने शब्दों को स्वर देने का बार बार मन कर रहा है..अति स्जुन्दर

PS : - हिंद युग्म के नियंत्रकों से निवेदन है.. की टिप्पणियों वाले पेज मै कविता का सारा प्रस्तुतीकरण ख़राब हो जाता है.. कृपया ध्यान दें

सादर
शैलेश

seema gupta का कहना है कि -

मैं पीड़ा की महानिशा में

चक्रवाक ज्यों नदी किनारे

दग्ध-हृदय कुछ तो शीतल हो मिलन-सुधा बरसाना तुम

मेरे शब्द…………………………………………………

"bhut sunder, bhavnatmak rachna"

शोभा का कहना है कि -

रिश्तों की शुष्क लता जी जाए

स्नेह-वारियुत सावन हो

छूते ही स्वर्ण बना दोगे

तुम तो पारस से पावन हो

मैं दूँ पत्थर को मूर्त्तरूप, मूर्त्ति में प्राण बिठाना तुम
रवि जी
बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़ा पर सारी कसर पूरी हो गई। अति सुन्दर। संस्कृत निष्ठ भाषा का सुन्दर समायोजन हुआ है। बधाई स्वीकारें।
बहुत सुन्दर ।

Unknown का कहना है कि -

i love u

Anonymous का कहना है कि -

bahut sunder
badhai
saader
rachana

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

रविकांत जी---

आपका गीत बहुत मीठा है। मेरे पास स्वर का अभाव है। मैं अच्छा गा नहीं सकता । फिर भी कई बार गाने का प्रयास किया। गाते- गाते ऐसा लगा कि गीत कुछ ऐसा होता तो गाने में सुविधा होती----

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मन मंदिर का तम मिट जाए, दीप जलाना तुम
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दग्ध-हृदय कुछ तो शीतल हो, अमृत बरसाना तुम
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मैं दूँ पत्थर को मुर्त रूप, प्राण बिठाना तुम
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--मुझे पहली पंक्ती में -ऐसा, दूसरी में -मिलन, तथा तीसरी में -मूर्ति में,-- शब्दों का प्रयोग खटक रहा है। क्या मैं गलत हूँ ? आशा है मेरी धृष्टता के लिए आप मुझे माफ करेंगे । ----देवेन्द्र पाण्डेय।

Divya Prakash का कहना है कि -

वह रवि भाई बहुत दिनों दिनों पढा आपको और सारी शिकायत मिट गयी |मज़ा आगया पढ़ के !!
मेरे ख्याल मैं ओशो अगर जिंदा होते तो ये कविता जरुर अपने किसी व्यख्यान मैं रखते ...
बहुत गहरे भावः !!!
बधाई
सादर
दिव्य प्रकश

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