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Friday, August 01, 2008

वृत्त कविता


पेड में पत्ते
पत्तों में चिडिया
चिडिया में चोंच
चोंच में दाना
दाने में खेत
खेत में मिट्टी
मिट्टी में किसान
किसान में गाँव
गाँवों में गोबर
गोबर में औरतें
औरतों में बच्चे
बच्चों में शहर
शहर में सपनें
सपनों में बाज़ार
बाज़ार में सम्मभावनाएं
सम्मभावनाओं में ग्राहक
ग्राहक में भविष्य
भविष्य में योजनायें
योजनाओं में दफ्तर
दफ़्तर में अफ़सर
अफ़सर में रिश्वत
रिश्वत में पुलिस
पुलिस में डंडा
डंडे में बाँस
बाँस में अर्थी
अर्थी में घाट
घाट में पंडा
पंडा में धर्म
धर्म में राजनीति
राजनीति में स्वार्थ
स्वार्थ में अहित
अहित में देश
देश में शहर
शहर में गाँव
गाँव में खेत
खेत में मिट्टी
मिट्टी में दानें
दानें में चोंच
चोंच में चिडिया
चिडिया में पेड
पेंड में पत्ते
पत्तों में कम्पन.

रचना काल : 1997


---अवनीश गौतम

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10 कविताप्रेमियों का कहना है :

vipinkizindagi का कहना है कि -

padkar maza aaya

BRAHMA NATH TRIPATHI का कहना है कि -

क्या बात है अवनीश जी सारी दुनिया की सैर एक कविता में ही करा दी
एक सुन्दर कविता

शोभा का कहना है कि -

बहुत सुन्दर लिखा है। बधाई।

Smart Indian का कहना है कि -

अवनीश गौतम जी, बहुत अच्छी कविता है - और यह वृत्त का प्रयोग भी बहुत सुंदर बन पडा है. बधाई!

Sajeev का कहना है कि -

वर्तुल जीवन चक्र ....

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

अवनीश गौतम जी
आपी कविता की कोशिश अच्छी है पर.. आप इस "मै " लाने के चक्कर मै कविता का अर्थ कही कही खो बैठे है,.. जैसे कुछ बातों का तो मतलब ही नहीं निकल रहा है
जैसे
१)"चिडिया में चोंच" सही हो सकता है,, पर बिकुल सही नहीं
२) "औरतों में बच्चे" नहीं समझा?
३)"बच्चों में शहर" ??? बाप रे.. सर के ऊपर से निकल रहा है..

सादर
शैलेश

Unknown का कहना है कि -

दुनिया एक वृत्त के समान गोल है
हम जहाँ से चले वहां फ़िर पहुँच जायेंगे इस कविता में ये अहसास दिला दिया आपने
अच्छी रचना

Avanish Gautam का कहना है कि -

शैलेश जम्लोकी जी एक चीज होती है कविता में जो उसे कविता बनाती है उसे कहते हैं कहने का तरीका उससे भी आगे एक चीज होती है जिसे सलीका कहते हैं. आपसे विशेष अनुरोध है कि आप समकालीन और पूर्ववर्ती कविता का गंभीर और गहरा अध्ययन करें.

Shailesh Jamloki का कहना है कि -

अवनीश गौतम जी ,

शायद आपको मेरी टिप्पणिया अच्छी नहीं लगी.. इस के लिए माफ़ी चाहता हूँ..पर मैंने एक आम पाठक के नज़रिए से टिपण्णी दी है..और मुझे बस ऐसा ही.. महसूस हुआ.. वैसे आपने सही कहा आपकी कविता मै बस दो ही बार पढ़ पाया शायद इस लिए सही से नहीं समझ पाया...आगे से ख्याल रखूँगा...
सादर
शैलेश

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

अवनीश जी--

ऐसन चक्कर चलैला कि लोगन कs खोपड़िया घनचक्कर हो गयल।
हमें त मजा आ गयल। अंत --- पत्तों में कम्पन- से कइला एहसे कविता कs खूबसूरती बढ़ गयल हौ।
एग्यारह बरस बाद छपैला, सौ बरस बाद भी एतने नया लगी।
-देवेन्द्र पाण्डेय।

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