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Monday, August 11, 2008

अंग सभी पुखराज तुम्हारे


मेरे मन के ताजमहल में
निशि-दिन गूँजें साज तुम्हारे

खजुराहो के बिम्ब सरीखे
अंग सभी पुखराज तुम्हारे

डर कर भागे चाँद सितारे
जब देखे आगाज़ तुम्हारे

अपने दिल में हमने छुपाये
पगली कितने राज़ तुम्हारे

सुनना भूले गीत-ग़ज़ल हम
सुन मीठे अल्फ़ाज तुम्हारे

कल थे हम, हां कल भी रहेंगे
जैसे हम हैं आज तुम्हारे

जब तक दिल में 'श्याम' रखो तुम
हैं तब तक सरताज तुम्हारे

-यूनिकवि श्याम सखा 'श्याम'

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17 कविताप्रेमियों का कहना है :

नीरज गोस्वामी का कहना है कि -

श्याम जी
बहुत सार्थक प्रयास किया है आपने...कहीं कहीं अनावश्यक शब्द रचना की रवानी में बाधा पहुंचाते हैं...फ़िर भी बहुत अच्छा लगा पढ़ कर...
नीरज

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

बिकुल ले में लगा |
सुंदर रचना है |

अवनीश तिवारी

Pritishi का कहना है कि -

Ati sundar rachana. Khaaskar ye pnktiyaan
अपने दिल में हमने छुपाये
पगली कितने राज़ तुम्हारे

सुनना भूले गीत-ग़ज़ल हम
सुन मीठे अल्फ़ाज तुम्हारे

कल थे हम, हां कल भी रहेंगे
जैसे हम हैं आज तुम्हारे

शोभा का कहना है कि -

कल थे हम, हां कल भी रहेंगे
जैसे हम हैं आज तुम्हारे
श्याम सखा जी
बहुत ही सुन्दर लिखा है। आनन्द आगया। बधाई स्वीकारें।

Dr. Amar Jyoti का कहना है कि -

गीत की सुकुमारता,और ग़ज़ल का सौष्ठव- दोनों का अद्भुत संगम। हां!'जब देखे आग़ाज़ तुम्हारे'से क्या मंतव्य है समझ नहीं पाया।

Anonymous का कहना है कि -

अद्भुत!आनंद आ गया पढ़कर.गजब की रवानी है मानो कविता न पढ़कर कोई गीत पढ़ रहे हों.मन मस्त हो गया.बधाई स्वीकार करें.
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

aap ki kavita hamesha ki tarah sunder hai
saader
rachana

Anonymous का कहना है कि -

एक कहानी कोमा भी पोस्ट हुई है आज ही.नजर डालें ,मुझे आशा है आपको पसन्द आयेगी
श्यामसखा

Anonymous का कहना है कि -

मित्रो वज्न है फ़ेलुन-फ़ेलुन फ़ाल फ़ऊलुन
22 22 21 122
श्यामसखा श्याम

Anonymous का कहना है कि -

महोदय
आपके द्वारा लिखित व प्रेषित ग़ज़ल की बहर
२२२२, २११२, २
होने में शंका है कृपया समाधान करें
क्योकि आपके काफिया "तुम्हारे" का वज्न २२२ निकलता है.....
सादर ......आकाश

Anonymous का कहना है कि -

गज़ल को पसन्द करने के लिये धन्यवाद।
गोस्वामी जी वज्न लिखा है अगर कहीं अटक लगी है तो बतलाएं उसे दुरुस्त क लूंगा मेरे ख्याल से तो ठीक है बहर पर।
आकाश-तुम्हारे= को तुमारे के वज़्न पर पढ़ाजाता है याने १२२ न कि २२२ ।श्यामसखा

Anonymous का कहना है कि -

आगाज=आमद =आना=पदार्पण

Anonymous का कहना है कि -

koun si pagli ke raaz?

Kavi Kulwant का कहना है कि -

ati sundar.. wah wah..samaj ke dukh dard peeda me hum log jaise prem ko bhul hi baithe the..

Kavi Kulwant का कहना है कि -

गर भूलोगे तो भी रहेंगे
बनकर दिल में ताज तुम्हारे

Nikhil का कहना है कि -

वाह..बहुत पसंद आया आपका यह अंदाज़......पढ़कर मज़ा आ गया...पूरी रचना एक ही प्रवाह में पढ़ गया..

bhawna का कहना है कि -

बहुत सुंदर रचना

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