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Sunday, September 21, 2008

आजकल इंसान के ज़मीर में खमीर नहीं उठता


पुरस्कृत कविता- ज़मीर

सुधीर सक्सेना 'सुधि'
कहने को तो आदमी ज़िंदा है,
लेकिन मरा हुआ है उसका ज़मीर,
क्योंकि उसमें उठता नहीं है ख़मीर!
ख़मीर उठे तो ज़मीर में भी हलचल हो, और
हो सकता है- यह हलचल ईमानदारी की चाशनी से
लिपटा एक स्वादिष्ट पकवान बने
जिसे आदमी चखे और दूसरों को भी चखाए और
चखने का सामूहिक आनंद उठाए |
लेकिन आदमी घोर व्यक्तिगत सोचता है |
उसका आनंद निजी स्वार्थ से सराबोर है,
जहाँ साम-दाम-दंड-भेद की कुशल नीतियाँ,
उसके अपने भीतर के चाणक्य के
अलिखित संविधान के रूप में मौजूद हैं |
जिनकी पालना वह अपने सपनों में भी
हर हाल में चाहता है |
जहाँ गंगा का पानी भी प्रवेश नहीं कर सकता!
ऐसे में क्या तो करेगा आदमी और
कैसा होगा उसका ज़मीर?
हुज़ूर! यदि गौर करेंगे तो पाएंगे कि
यदि भूल से ज़मीर में ख़मीर उठ गया तो
वह हो जाता है खट्टा!
और आप यह भली-भांति जानते हैं
कि खट्टा ख़मीर काम में नहीं लेता
कोई भी समझदार हलवाई!
इसलिए मेरे भाई,
ख़मीर खट्टा न हो,
इतना भी न तनें |
हम ज़िंदा हैं तो अपने ज़मीर को भी ज़िंदा रखें और
ज़मीर वाले आदमी...!
नहीं...नहीं...ज़मीर वाले इनसान बनें!



प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ३, ४, ६॰२५, ७॰५
औसत अंक- ४॰९५
स्थान- चौबीसवाँ


द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ५, ५॰५, ४॰९५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५॰१५
स्थान- दसवाँ


पुरस्कार- मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य-संग्रह 'समर्पण' भेंट करेंगे।


दसवें स्थान के कविता के रचनाकार सुधीर सक्सेना 'सुधि' के परिचय का हमने लम्बे समय तक इंतज़ार किया लेकिन उन्होंने अपने चित्र के अलावा कोई और जानकारी नहीं भेजी।

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8 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

ज़मीर और खमीर या तो कवि जी को इनका अर्थ नही पता या फिर इनको और निर्णायकों व् नियंत्रक को कविता का अर्थ ही नही पता और तुर्रा ये की पुरस्कृत कविता गुड बाय युग्म बहुत सह लिया

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

सुधीर जी, कविता में मजा नहीं आया...
आपको काव्यपल्लवन में पढ़्ते रहे हैं..
अगली बार और अच्छी कविता की उम्मीद..

Anonymous ji, नाम पता तो छोड़ते जाइये.. :-)

Anonymous का कहना है कि -

(केवल Anonymous जी के लिए). ये काफ़ी अच्छी बात लगी कि स्तर से थोड़ी नीचे की रचना पर आपने बिना लाग लपेट के अपनी बात रखी.पर और बेहतर होता कि आप,इस स्तर को उठाने में हमारे साथियों की मदद करते,अपना योगदान देते.ऐसे ही अगर हम चीजों को छोड़ते जायेंगे तो बहुत जल्द हम जिंदगी से भी कुछ ऐसी ही शिकायत कर बैठेंगे. आगे भी अपनी प्रतिक्रिया से हमें लाभान्वित करते रहे.धन्यवाद.
(कविता के लिए) रही बात कविता की तो,क्या कहूँ थोड़ी गुन्जायिश जरुर रह गई है.उम्मीद है अगली प्रस्तुति में आप इस बार की प्रतिक्रिया को ध्यान में रखेंगे,और जरुरी बात कि प्रतिक्रिया को प्रतिक्रिया के रूप में ही लीजियेगा.शुभकामनाएं.
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

कविता अच्छी है पर थोड़े और प्रयास से और भी अच्छी होसकती थी

अभिन्न का कहना है कि -

बहुत सुंदर कविता है सुधि जी समसामयीक विषयों पर कही गई कविता ज्यादा सार्थक हो सकती है

Anonymous का कहना है कि -

कविता मैं जमीर हैं या नही लेकिन Anonymous जी मैं खमीर जरुर उठा, चलिए इसे ही कविता की उपलब्धि मान लेते हैं. जहाँ तक कविता की बात हैं, बेशक कुछ पंक्तियाँ लम्बी हो गई हैं लेकिन इससे कवि की कमजोरी नही बल्कि कविता की जरुरत कहा जाय तो ज्यादा बेहतर होगा. कविजी और आलोचकों से यही कहना हैं -'
'इसलिए
मेरे भाई,
ख़मीर खट्टा न हो,
इतना भी न तनें | '
बाकि सब ठीक हैं.

Anonymous का कहना है कि -

कविता मैं जमीर हैं या नही लेकिन Anonymous जी मैं खमीर जरुर उठा, चलिए इसे ही कविता की उपलब्धि मान लेते हैं. जहाँ तक कविता की बात हैं, बेशक कुछ पंक्तियाँ लम्बी हो गई हैं लेकिन इससे कवि की कमजोरी नही बल्कि कविता की जरुरत कहा जाय तो ज्यादा बेहतर होगा. कविजी और आलोचकों से यही कहना हैं -'
'इसलिए
मेरे भाई,
ख़मीर खट्टा न हो,
इतना भी न तनें | '
बाकि सब ठीक हैं.

Anonymous का कहना है कि -

कविता मैं जमीर हैं या नही लेकिन Anonymous जी मैं खमीर जरुर उठा, चलिए इसे ही कविता की उपलब्धि मान लेते हैं. जहाँ तक कविता की बात हैं, बेशक कुछ पंक्तियाँ लम्बी हो गई हैं लेकिन इससे कवि की कमजोरी नही बल्कि कविता की जरुरत कहा जाय तो ज्यादा बेहतर होगा. कविजी और आलोचकों से यही कहना हैं -'
'इसलिए
मेरे भाई,
ख़मीर खट्टा न हो,
इतना भी न तनें | '
बाकि सब ठीक हैं.

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